ओसियां में शुष्क क्षेत्रों में सतत कृषि विकास के लिए आयोजित हुई राष्ट्रीय कार्यशाला
भारतीय किसान संघ व भारतीय एग्रो इकोनॉमिक रिसर्च सेंटर द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से शुष्क क्षेत्र में सतत कृषि विकास विषय को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला का सोमवार को शुभारंभ हुआ.
Osian: भारतीय किसान संघ व भारतीय एग्रो इकोनॉमिक रिसर्च सेंटर द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से शुष्क क्षेत्र में सतत कृषि विकास विषय को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला का सोमवार को शुभारंभ हुआ. इस दौरान केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत, कृषि व किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, सूरसागर रामद्वारा के परमहंस 108 श्री रामप्रसाद महाराज, भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी, उपनिदेशक आईसीएआर एस के चौधरी, काजरी डायरेक्टर ओपी यादव मौजूद रहे.
कार्यशाला को संबोधित करते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि खेती के प्रति व्यक्ति घटते रकबे के चलते सांझा खेती की आवश्यकता है. इसी को लेकर कृषक उतपादक संगठनों के गठन पर जोर दिया जा रहा है. किसानों को फसल विविधिकरण अपनाते हुए सरप्लस उत्पादन वाली फसलों से वैश्विक मांग अनुसार उत्पादन की ओर बढ़ना होगा. देश में तिलहन का आयात किया जा रहा है. तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है. शुष्क क्षेत्र के सतत विकास हेतु जल सरक्षण और पेड़ लगाकर टिकाऊ खेती को बढ़ाया जा सकता है.
कार्यशाला में केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री कैलाश चौधरी ने कृषि प्रसंस्करण और मोटे अनाज के उत्पादन को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया. मोटे अनाज से पोषण की उपलब्धता बढ़ेगी, वही फसल विविधिकरण को अपनाना आसान होगा. चौधरी ने बताया कि भारत शुष्क क्षेत्र में अधिकतर उत्पाद प्राकृतिक रूप से उत्पादित होते है, ऐसे में इसके सही विपणन की जरूरत है. इसके लिए भारत सरकार कृषि के ढांचागत विकास हेतु अनेक योजनाएं चल रही है.
इस दौरान परमहंस रामप्रसाद महाराज ने देश के 75वें अमृत महोत्सव वर्ष में अमृत के रूप में बरसे अच्छे मानसून से शुष्क क्षेत्र हरा भरा है. बदलते मौसम परिस्थितियों के अनुसार शुष्क क्षेत्र में सतत कृषि विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों को सरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया. कार्यशाला के आरंभ में भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी ने पांच महाभूत की परिकल्पना को लेकर देशभर में चल रही कार्यशालाओं और सुफलाम सुमंगलम कार्यक्रम की प्रकल्पना पर प्रकाश डाला.
इस दौरान डीडीजी आईसीएआर एस के चौधरी ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद शुष्क क्षेत्र में सतत कृषि विकास में कई आयाम स्थापित किए. क्षेत्र में सूखे से अनुकूल वनस्पति और फसलों को प्रोत्साहित किया, जिससे मरू क्षेत्र का दृश्य को बदलने में कामयाबी मिलने लगी है.
भारतीय किसान संघ के प्रदेश मंत्री और कार्यशाला की आयोजन समिति के सचिव तुलछाराम सिंवर व एग्रो इकोनॉमिक के प्रदेश प्रमुख सुहास मनोहर ने बताया कि कार्यशाला के पहले दिन दो तकनीकी सत्र आयोजित हुए. वहीं, काजरी में लगे फसल प्रदर्शन को देखने हेतु क्षेत्र भ्रमण का कार्यक्रम रहा. तकनीकी सत्रों में भारतीय शुष्क क्षेत्र में मरुस्थलीकरण, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, उत्पादकता बढ़ाने के लिए पशुधन प्रबधन विषय पर परिचर्चा हुई.
कार्यशाला के प्रथम सत्र में डॉ पीसी मोहराणा ने मरुस्थलीकरण, मृदाक्षरण एवं इसके प्रबंधन पर प्रकाश डाला. इसी सत्र में डॉ पी सातरा शुष्क क्षेत्र में जैविक कार्बन की स्थिति एवं मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर विस्तृत जानकारी दी. इसके साथ-साथ उन्होंने शुष्क क्षेत्र में नहरीकरण का किसानों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव के बारे में बताया कि कृषि वोल्टिक प्रणाली के द्वारा मरू प्रदेश में सौर ऊर्जा से अधिक लाभ लिया जा सकता है. द्वित्तीय सत्र में डॉ एन वी पाटिल ने पशु नस्ल सुधार एवं आवास प्रबंधन का विस्तार से विवरण दिया और बताया कि कैसे इन से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है.
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इसी सत्र में डॉ त्रिभुवन शर्मा ने पोषण प्रबंधन के विभिन्न की किफायती उपायों पर प्रकाश डाला. इसी सत्र में डॉ सुभाष कच्छावाह ने वर्तमान समय में पशुओं पर लंपी वायरस से बचने के विभिन्न उपायों की जानकारी दी. डॉ आर एन कुमावत ने शुष्क क्षेत्र में चारा जैसे नेपियर, शहजन, काटे रहित थोर व नागफनी, धामण, सेवण, रिजका, जिंझुआ, शंखपुस्पी के अधिक उत्पादन के संदर्भ में विस्तार से बताया. इस दौरान मरू क्षेत्र से जुड़े विभिन्न कृषि संस्थानों के कृषि विशेषज्ञ और प्रगतिशील किसान उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन एन पंवार, महेश शर्मा, आर बी दुबे ने किया.
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