Science Facts: कोहरे से बुझ सकती है राजस्थान की 7 करोड़ जनता की प्यास, जानें कैसे
Fog Harvesting in Rajasthan: उत्तर भारत में पारा गिरने के साथ ही कोहरा भी बढ़ने लगा. विजिबलिटी कम होने लगती है. हर साल कोहरा हमारे लिए मुसीबत लेकर आता है, वहीं दुनिया के कई देश ऐसे भी हैं, जो कोहरे की खेती कर रहे हैं. फॉग हार्वेस्टिंग.
Fog Harvesting in Rajasthan: कड़ाके की ठंड और फिर कोहरा जिसके बाद से शुरू होती है इंसान की मुसीबत. दिसंबर में उत्तरी भारत में कड़ाके की ठंड पड़ने के साथ साथ ही कोहरे की मार भी लोगों पर पड़ने लगती है. इसकी के साथ रेल और वायु यातायात पर भी गहरा असर पड़ने लगता है, लोगों को कहीं घूमने जाने के लिए काफी सोच समझकर घर से निकलना पड़ता है. क्योंकि घने कोहरे की वजह से भारतीय रेल विभाग और हवाई उड़ाने भारी संख्या में रद्द हो जाती है.
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घने कोहरे की स्थिति से निपटने के लिए सरकार कई इंतजाम करती चली आती है पर सब काफी नहीं होते है. पर विश्व में कई ऐसे देश है जिन्होंने कोहरे को अपना जीने का साधन बना दिया है. सोच के अजीब लगता है ना की कोहरा किसी को जीविकोपार्जन का साधन बन गया है. क्योंकि यह देश कोहरे से पानी बनाते है और अपने यहां पानी की कमी को भी पूरा करने की कोशिश कर रहे है.
कैसे बनता है कोहरे से पानी
जी हां कोहरे से पानी कैसे बनाते हैं, ये समझने के लिए पहले ये जान लें कि कोहरा क्या है और कैसे बनता है. कोहरा एक प्राकृतिक स्थिति है, जो तब आती है, जब नम हवा ठंडी होकर जमा होने लगती है. ये पानी की बहुत ही छोटी-छोटी बूंदें होती हैं, जिसमें दिखाई देने की क्षमता कम होती है. यही स्थिति बड़े शहरों में धुंध या स्मॉग के रूप में सामने आती हैं. ये कोहरे और धुएं का मेल है.
कैचिंग या हार्वेस्टिंग कर रहे पानी को जमा
वहीं पानी की कमी झेल रहे देशों के लिए ये कोहरा वरदान से कम नहीं है. ये देश कोहरे का इस्तेमाल कर कैचिंग या हार्वेस्टिंग कर रहे हैं. इसमें लोग बड़े ड्रम या बर्तन में कोहरे को भरकर रख लें रहे है. यही काम कई देशों में सूखा झेलते इलाकों में भी हो रहा है.
इस तरह से आता है काम में
नॉर्थ अफ्रीका के देश मोरक्को में कोहरे से पानी की खेती होती है. यहां हवाओं की नमी को इकट्ठा किया जाता है. जिसका इस्तेमाल कर लोगों ने रेगिस्तान की भूमि को पानी से सींचने का काम किया है. इस अनूठी तरकीब से मोरक्को के पांच गांवों के 400 लोगों को पीने का पानी मिल रहा है.
फॉग के पर-क्यूबिक-मीटर में लगभग 0.5 ग्राम पानी होता है. ये पानी के साथ बहते हुए नीचे की ओर आता है, जब उसे धातु के बारीक बुने जाल में पकड़ा जाता है और वहां से नीचे जमा किया जाता है. इसके बाद पानी की प्रोसेसिंग होती है ताकि वो शुद्ध हो सके. अगर इस प्रकिया को रोजाना किया जाता है तो 200 से लेकर 1000 लीटर पानी तक जमा किया जा सकता है. पर यह नेट लोकेशन और सीजन के हिसाब से ही इकट्ठा किया जाता है.
बता दें कि 150 करोड़ से ज्यादा लोग पानी की किल्लत से जझ रहे है. इसकी के कारण फोग हार्वेस्टिंग को 20 से ज्यादा देशों ने अपनाया है. भारत का पड़ोसी राज्य नेपाल भी इसी फॉग हार्वेसिटंग से पानी इक्टिठा कर रहा है.पूर्वी नेपाल के पाथिभारा देवी मंदिर में हर औसत 500 लीटर पानी की स्पलाई कोहरे से ही की जाती है. एक अनुमा के मुताबिक भारत में 1250 करोड़ लीटर पानी फॉग कैपचरिंग के जरिए इक्टठा किया जा सकता है. इस प्रोसेस को गुजरात और उत्तराखंड में भी प्रयोग में लाया गया है. यह टेकनॉलॉजी इको फ्रैडली होने के साथ ही कम निवेश वाली भी है.
वही अगर इस फॉग हार्वेसिटिंग का राज्सथान में भी गुजरात और उतराखंड की तरह ही प्रयोग में लाया जाए तो गर्मी के दिनों में किसानों और प्रदेशवासियों को सूखे और पानी की किल्लत से काफी हद तक राहत मिल सकती है. क्योंकि इसमें कम निवेश के साथ साथ ज्यादा लाभ है.
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