Mahishmardini Temple: भारत के उत्तराखंड में भगवान शिव के बहुत सारे मंदिर हैं, जहां बाबा भोलेनाथ माता पार्वती के साथ विराजमान हैं लेकिन देवभूमि की केदारघाटी में माता सती का एक ऐसा मंदिर भी है, जहां बाबा भोलेनाथ की एंट्री नहीं हो सकती है. भगवान शिव को इस मंदिर में आने से रोकने के लिए रास्ते में कंडाली (बिच्छू घास) रखी जाती है. 


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रुद्रप्रयाग जिले के गौरीकुंड से 4 किलोमीटर दूर महिषखंड नामक पर्वत है. यहां पर मां महिष मर्दिनी का मंदिर है. इस मंदिर में बाबा केदार की डोली को देहरी यानी दहलीज से अंदर आने से रोकने के लिए बिच्छू घास रास्ते में रखी जाती है. 


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जानकारी के मुताबिक, बाबा केदारनाथ की डोली को मंदिर में आने नहीं दिया जाता है, जिसके लिए रास्ते में बिच्छू घास लगाई जाती है. इसको लेकर कहा जाता है कि अगर ऐसा नहीं करेंगे, तो बाबा भोलेनाथ यहीं स्थायी रूप से बैठ जाएंगे. यह स्थल गुप्तकाशी फाटा से 500 मीटर दूरी पर है. 


पौराणिक कथाओं के मुताबिक, माता ने महिषासुर राक्षस का वध किया था. इसके बाद माता महिषमर्दिनी कहलाईं. इसको लेकर माना जाता है कि महिषासुर के वध के बाद जब माता लौटी थी, तो उन्होंने इस जगह पर आराम किया था. वहीं, इसी वजह से यहां माता महिषमर्दिनी का मंदिर बना. 9 दिन तक चले इस युद्ध में 10वें दिन माता दुर्गा विजयी हुई थी. इसी के कारण 9 दिनों की नवरात्रि के बाद 10वें दिन विजयादशमी मनाई जाती है.


माता के इस मंदिर से कुछ दूर पांगरी नाम का स्थान है. यहां पर 6-7 गते बैशाख को विशेष पूजा का आयोजन होता है.  इस पर्वत पर व्यास गुफा और दक्षिण माता गायत्री देवी के देवालय भी हैं. यहां के रहने वाले लोग प्रतिवर्ष नवरात्रि का भव्य आयोजन करते हैं, जिसमें कालरात्रि का विशेष महत्व है. 


यहां रहने वाले लोगों ने बताया कि पहले केदारनाथ जाने का मुख्य मार्ग महिषासुर मर्दिनी मंदिर से ही था. वहीं, अब सड़क मार्ग बनने के बाद भी बाबा केदार को डोली केदारनाथ आते और वापस ओंकारेश्वर मंदिर जाते हुए माता महिषमर्दिनीके मंदिर में आराम करती है. 


(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. ज़ी मीडिया किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)



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