Ramayana : लंकापति रावण ने ब्रह्मा जी घोर तपस्या की थी. जिसके बाद ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान उसने मांगा था. लंकापति रावण ने वरदान में मांगा था कि मुझे सुर, असुर ,पिशाच, नाग, किन्नर या अप्सरा कोई ना मार सकें. 


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वरदान मिलते ही रावण ने सबको मारना शुरू कर दिया. जो भी उसके रास्ते में आता वो मारा जाता. एक दिन रावण जब दंडकारण्य पहुंचा तो वहां बहुत से ऋषि मुनियों को भी मारा और फिर उनके रक्त को वहीं रखें एक कमंडल में भरकर ले गया. 


ये कमंडल गृत्समद ऋषि का था. ये ऋषि माता लक्ष्मी को पुत्री के रूप में जन्म लेने के लिए प्रार्थना करते थे और पूजा पाठ कर इसी कमंडल में दूध की कुछ बूंद डाल देते थे.


रावण इसी कमंडल में रक्त भरकर लंका पहुंचा और अपनी पत्नी मंदोदरी को इसे संभालकर रखने को कहा. रावण ने पत्नी मंदोदरी से कहा कि ये रक्त विषैला है, इसे किसी को मत देना.


कुछ बाद जब रावण वापस नहीं लौटा तो मंदोदरी ने अपने प्राण देने की इच्छा से उस कमंडल के रक्त को पी लिया. लेकिन उसे पीते ही कुछ समय बाद मंदोदरी गर्भवती हो गयी. गर्दन कटने से ज्यादा शेखचिल्ली को थी बेगम के पैर चूमने की चिंता


रावण के वापस आने से पहले मंदोदरी ने तीर्थ यात्रा का नाम लेकर कुरुक्षेत्र जाने की योजना बनाई. जहां मंदोदरी ने एक बच्ची को जन्म दिया लेकिन लोक लाज के डर से बच्ची को कलश में रखकर जमीन में दबा दिया.


इधर संतान प्राप्ति के इच्छा से गुरुओं के कहने पर जब राजा जनक ने जमीन में हल चलाया तो उनको ये कलश मिल गया जिसमें मंदोदरी ने बच्ची को रखा था. जैसे ही राजा जनक ने बच्ची को कलश से निकाला चारों तरफ से फूल बरसने लगे और आकाशवाणी  हुई. 


हल के नुकीले भाग जिसे की सीत कहा जाता है से कलश के टकराने पर मिली पुत्री का नाम राजा जनक ने सीता रखा और बस यहीं से रावण के जीवन के उल्टे दिन शुरू हो गये...


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