Ratan Tata: टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार आज गुरुवार को वर्ली के श्मशान घर में किया जाएगा. रतन टाटा पारसी समुदाय से ताल्लुक रखते थे, जिनकी अंतिम संस्कार परंपरा अन्य समुदायों से भिन्न है.
 


पारसी समुदाय में शवों का अंतिम संस्कार

पारसी समुदाय में शवों का अंतिम संस्कार "दोख्मा" नामक स्थान पर किया जाता है, जहां शव को चीलों के लिए छोड़ दिया जाता है, जो शव को खा जाती हैं. यह परंपरा पारसी धर्म के अनुसार शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है. आइए जानते हैं पारसी समुदाय में शवों का अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है. 

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भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा

भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति और टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया. पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत खराब थी. उनके पार्थिव शरीर को वर्तमान में कोलाबा स्थित उनके घर ले जाया गया है और गुरुवार को वर्ली श्मशान घर ले जाया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. 


 

हालांकि अभी तक यह पता नहीं चला है कि उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाज से होगा या नहीं. लेकिन पारसी समुदाय की अंतिम संस्कार परंपरा अन्य धर्मों से भिन्न है, जिसमें शव को "दोख्मा" नामक स्थान पर चीलों के लिए छोड़ दिया जाता है, जो शव को खा जाती हैं. यह परंपरा पारसी धर्म के अनुसार शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है.


 


 

3 हजार साल पुरानी है अंतिम संस्कार परंपरा

पारसी समुदाय की अंतिम संस्कार परंपरा लगभग 3 हजार साल पुरानी है और यह हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्मों से भिन्न है. पारसियों के कब्रिस्तान को "दखमा" या "टावर ऑफ साइलेंस" कहा जाता है, जो एक गोलाकार खोखली इमारत होती है. जब कोई व्यक्ति मरता है, तो शव को शुद्ध करने की प्रक्रिया के बाद उसे "टावर ऑफ साइलेंस" में खुले में छोड़ दिया जाता है, जहां मांसाहारी पक्षी, विशेष रूप से गिद्ध, शव को खा जाते हैं. 

 


आकाश में दफनाया जाता है शव 

इस प्रक्रिया को "दोखमेनाशिनी" कहा जाता है, जिसे आकाश में दफनाने या "स्काई बरियल" के रूप में भी जाना जाता है. यह परंपरा पारसी धर्म के अनुसार शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है. गौरतलब है कि बौद्ध धर्म के अनुयायी भी इसी तरह का अंतिम संस्कार करते हैं, जहां शव को गिद्ध के हवाले कर दिया जाता है.

 



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