Sangod: बारापाटी वन क्षेत्र की तलहटी में विराजित चामुंडा माता की महिमा अपरंपार है. यहां पर मां चामुंडा सहित सातों बहने विराजमान है. नवरात्रि के दिनों में माता के दरबार में नौ दिन तक मेला लगता है. सष्ठमी और अष्ठमी का यहां पर अलग ही महत्व माना गया है. 


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करीब 17 सौ 5 वर्ष प्राचीन भोजपुरा चामुंडा माता के मंदिर पर नवरात्रि के दिनों में सुबह से शाम तक सैकड़ो श्रद्वालु दर्शन को आते-जाते रहते हैं. वहीं, अन्य दिनों में भी यहां पर हर रविवार को भक्तों का तांता लगा रहता है. राजस्थान ही नहीं समीप के राज्यों से भी श्रद्वालु नवरात्रि के मौके पर अष्ठमी के दिन माता के दर्शन और पूजन को आते हैं. यहां पर सष्ठमी की रात को माता कई लोगों की शारिरिक पीड़ा दूर करती है. मोईकलां कस्बे से 3 किमी दूर वन क्षेत्र की पहाड़ी की तलहटी में स्थित माता के मंदिर के आसपास भले ही पक्की धर्मशाला, रसोई घर, गार्डन, स्नान घर आदि का पक्का निर्माण हो गया हो लेकिन माता के मंदिर का उपरी हिस्सा अभी भी कवेलु पोश ही है. 


कुछ वर्ष पहले एक बार माता के मंदिर के ऊपरी हिस्से का पक्का निर्माण कार्य कराने का प्रयास किया था तब ऐसा कुछ घटित हुआ कि निर्माण कार्य पूरा कराया ही नहीं जा सका. वहीं, तब से आजतक माता के मंदिर का ऊपरी हिस्सा कवेलु पोश ही है. सदियों से यहां पर ऐसी मान्यता है कि अष्ठमी के दिन माता के ज्वारा तोड़ने के बाद कोई भी श्रद्वालु घर जाते समय पीछे मुडकर नहीं देखता और न ही आज तक कोई श्रद्वालु अष्ठमी की रात को माता के मंदिर पर रात को रुका है. 


चामुंडा माता मंदिर पुजारी प्रकाश भील बताते है कि सच्चे मन से माता के समाने शीश झुकाने वाले की हर मुराद पूरी हुई है. अष्ठमी के दिन यहां पर करीब 20 हजार से भी अधिक श्रद्वालु माता के दर्शन को आते हैं. नवरात्रि के दिनों में माता को किसी पकवान का नहीं बल्कि गेहूं के आटे से बने मीठे पुए का ही भोग लगाया जाता है. 


भर देती है माता सूनी गोद
माता के द्वार आने वाली कई महिलाओं की वर्षो से सूनी गोद भर चुकी है. बताया जाता है कि नवरात्रि के दौरान अष्ठमी के दिन माता का वरदान स्वरूप दिया नारियल बिन औलाद महिलाओं के लिए वरदान साबित होता है. कई महिलाओं की सूनी गोद माता के आशीर्वाद से भर चुकी है. 


माता की पुजाई है पीठ
भोजपुरा स्थित चामुंडा माता के मंदिर के बारे में पुराने लोग बताते है कि यहां पर माता की पीठ पुजाई है. माता के मंदिर पर बताया गया कि छटे नवरात्रि के मौके पर माता का श्रृंगार बदला जाता है,  जिसके बाद अष्ठमी के दिन माता का विशेष श्रृंगार किया जाता है. 


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