Kota: राज्य सरकार के फैसले से संकट, 400 करोड़ की मशीनरी हो जाएंगी कबाड़, जानें कैसे
प्रदेशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंध के आदेशों के बाद पेपर कप और पेपर प्लेट को इसका विकल्प माना जा रहा था, लेकिन सरकार ने मूल आदेशों के करीब 1 साल बाद हाल में जारी संशोधित आदेशों में अब पेपर कप को भी सिंगल यूज प्लास्टिक श्रेणी में वर्गीकृत 19 उत्पादों के साथ शामिल कर लिया गया हैं.
Kota News: प्रदेशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंध के आदेशों के बाद पेपर कप और पेपर प्लेट को इसका विकल्प माना जा रहा था, लेकिन सरकार ने मूल आदेशों के करीब 1 साल बाद हाल में जारी संशोधित आदेशों में अब पेपर कप को भी सिंगल यूज प्लास्टिक श्रेणी में वर्गीकृत 19 उत्पादों के साथ शामिल कर लिया गया हैं. इसके बाद उन हजारों कारोबारियों और श्रमिकों की चुनौतियां बढ़ गयी हैं, जो प्लास्टिक प्रतिबंध के बाद पेपर कप इंडस्ट्री के कारोबार में आए थे.
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दावा किया जा रहा हैं कि, केवल 15 दिन में भंडारण और उत्पादन शून्य करने के सरकारी आदेशों से कोटा समेत पूरे प्रदेश में 400 करोड़ की मशीनरी-करीब 600 करोड़ के रॉ मैटेरियल तो कबाड़ हो ही जायेंगे, लेकिन इस कारोबार से प्रत्यक्ष रुप से जुड़े करीब 30 हजार और अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े लगभग 70 हजार लोगों के सामने बेरोजगार होने का संकट भी खड़ा हो गया हैं.
इसकी के साथ यह प्रदूषण से लेकर स्वास्थ्य संकट का पर्याय बन चुके है. जहां एक तरफ सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के सरकारी आदेशों का चौतरफा स्वागत हो रहा हैं, लेकिन इसी महीने जारी एक संशोधन आदेशों के विरोध में स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन कोटा समेत कई व्यापारिक संगठनों ने मोर्चा खोल दिया हैं.
दरअसल, अगस्त 2021 में नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण मंडल की तरफ से जारी सिंगल यूज प्लास्टिक बैन आदेशों में 19 उत्पाद प्रतिबंध सूची में थे. ऐसे में प्लास्टिक कारोबार को पेपर कप-प्लेट इंडस्ट्री की तरफ शिफ्ट कर दिया गया. लेकिन मूल आदेश जारी होने के करीब सालभर बाद जुलाई 2022 में जारी संशोधित आदेशों में पेपर कप-प्लेट को भी इसी प्रतिबंधित सूची में शामिल कर दिया गया.ऐसे में कारोबारियों से लेकर श्रमिकों तक में हड़कंप का माहौल हैं क्योंकि जारी आदेश एक पखवाड़े में रॉ मैटेरियल नष्ट करने से लेकर भंडारण-उत्पादन तक रोक देने के हैं .
पेपर कप में भी प्लास्टिक का इस्तेमाल तो होता हैं लेकिन 3 से 5 फीसदी
स्माल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के संस्थापक गोविन्दराम मित्तल ने बता कि, इन कारोबारियों का दावा हैं कि, पेपर कप पर केवल पतली प्लास्टिक कोटिंग परत चढ़ती है और ये स्वास्थय के लिये नुकसानदायक नहीं हैं और साथ में रिसाइक्लेबल भी हैं.
इस बारे में पेपर कप मैन्युफैक्चर्स का कहना है कि, जब 100 फीसदी प्लास्टिक वाले नमकीन-बिस्टिक के पैक,गुटखा-सुपारी,कुरकुरे,चिप्स,दूध प्लास्टिक पैकिंग को प्रतिबंधों से छूट हैं, तो केवल 5 फीसदी प्लास्टिक मिक्सिंग वाले पेपर कप को क्यों प्रतिबंधित किया जा रहा हैं? जबकि संकट ये भी हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक का विकल्प पेपर कप माना जा रहा था.
पेपरकप का तो फिलहाल कोई विकल्प भी बाजार में नहीं हैं और जो कारोबारी सालभर में प्लास्टिक छोड़कर पेपर इंडस्ट्री में आ गए. उनका और उनकी करोड़ों की मशीनरी का क्या होगा और फिर व्यापार वाइन्डअप करने को समय भी महज 15 दिन का दिया जा रहा हैं,जो कम से कम 3 साल होना चाहिए.
बहरहाल, पेपर कप मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों पर गहराये इस संकट से इस कारोबार की 3000 इकाइयों का भविष्य संकट में हैं. जिनमें लगी लगभग 400 करोड़ रूपये की मशीनरी के कबाड़ होने और लगभग 600 करोड़ के कागज भण्डारण के शून्य हो जाने का खतरा भी उत्पन्न हो गया हैं.
सिंगल यूज प्लास्टिक बैन का पेपर कप इंडस्ट्री भी वेलकम कर रही हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि बिना कोई समुचित विकल्प सुझाए बाजार से पेपरकप भी हटा दिये जायेंगे तो आखिर काम चलेगा कैसे ? लगता हैं कि सरकारी स्तर पर नहीं सुलझने के बाद ये मामला कोर्ट तक भी जा सकता हैं.
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