Kota: कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी अब तकनीक के क्षेत्र में नित नए आयाम स्थापित कर रही है. अब तक आपने तरह तरह की दवाइयां और कैप्सूल देखें होंगे, जो कैल्शियम, आयरन जैसे न्यूट्रिएंट होने का दावा करते हैं. लेकिन क्या आपने कभी गाजर,पालक,लहसुन,सहजना,चुकंदर के कैप्सूल देखें है? कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की लैब में आप सब्जियों के कैप्सूल देख सकते हैं, जो रोजमर्रा के खानपान का हिस्सा है. कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने पालक, लहसुन, सहजन,चुकंदर और गाजर के कैप्सूल बनाए है, इनमें वो सारे गुण मौजूद हैं, जो इन सब्जियों में रहते हैं.


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कई बीमारियों में असरकारक है ये कैप्सूल


अगर आप इन कैप्सूल को प्रयोग में लेते है तो ये आपको उतना ही पोषण देते हैं, जितना आपको कोई सब्जी या फल खाने से होता है. कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की इंचार्ज डॉ गुंजन सनाढ्य बताती है कि इसके लिए उनकी पूरी टीम काम करती हैं, सबसे पहले इन सब्जियों की प्रोसेसिंग की जाती हैं और फिर इन्हें पाउडर फॉर्म में तैयार कर कैपूल में भरा जाता है और इनकी लैब टेस्टिंग के बाद इन्हें बाजर में भेजा जाता है. एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की साइंटिस्ट डॉ गुंजन सनाढ्य के मुताबिक ये कैप्सूल कुपोषण से लड़ने में भी बेहद कारगर है,खासकर उन इलाकों में जहां ऐसे पौष्टिक सब्जियां जमीन और जलवायु के अभाव में नहीं उगती है या बहुत महंगी मिलती है. उन इलाकों में इन कैप्सूल के जरिये पोषण की कमी को दूर किया जा सकता है. गर्भवती स्त्रियों, बुजुर्गों, बच्चों के लिए इनकी स्पेशल किट भी तैयार की गई है जैसे आर्थराइटिस किटजो अर्थराइटिस में, जोड़ों के दर्द में कामगर है, वहीं प्रेग्नेंसी किट जो गर्भ के समय आयरन और कैल्शियम की कमी को दूर करने में कामगर है. इतना ही नहीं त्वचा से लेकर बालों, पाचन तंत्र ,शुगर जैसी बीमारियों में भी ये काम करती हैं. कई बार बच्चे चुकंदर,गाजर ,लहसुन जैसे पदार्थों को खाने से परहेज करते हैं, लेकिन इन कैप्सूल के जरिये उन्हें सब्जी से मिलने वाले पोषक तत्व आसानी से दिए जा सकते हैं.


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यूनिवर्सिटी देती है कैप्सूल बनाने की ट्रेनिंग


यूनिवर्सिटी इन कैप्सूल को नहीं बेचती है, बल्कि लोगों को इन कैप्सूल को बनाने की ट्रेनिंग देती है. ऐसी कई महिलाओं के स्वयं सहायता समूह इन कैप्सूल को तैयार करने में जुटे हुए हैं, जो इन्हें बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमा रहें हैं. ऐसे में महिलाएं आत्मनिर्भर भी बन रही है तो, साथ में उनकी आमदनी भी बढ़ रही है. यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि ये बेहद कम दाम की है, यह लगभग 3 रुपये प्रति कैप्सूल की दर पर लोगों के लिए बाजार में उपलब्ध है, और यदि कोई इस तकनीक को सीखना चाहता है तो यूनिवर्सिटी द्वारा उसे निशुल्क ट्रेनिंग और सहयोग दिया जाता है, जिससे वे अपना स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं और आत्मनिर्भर बन सकते हैं.


Reporter - KK Sharma


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