Sangod: गांवों के विकास के सरकार के तमाम दावों के बीच आज भी बारिश के दिनों में ग्रामीणों की आवागमन की राह आसान नहीं है. क्षेत्र के नदी-नालों पर बनी बरसों पुरानी कम उंचाई की रपटों पर बारिश में आज भी ग्रामीण जान जोखिम में डालकर आवागमन करने को मजबूर है. बरसों पुरानी रपटों की उंचाई कम होने से नदी और बरसाती नालों में पानी की आवक होते ही कई गांवों का संपर्क बड़े कस्बों से कट जाता है.  


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वहीं, ज्यादा जरूरत पर लोग जान जोखिम में डालकर आवागमन करते हैं. रोलाना, किशनपुरा और करिरिया में उजाड़ नदी और की रपट पर महीनों तक पानी की चादर चलती रहती है. थूनपुर में कालीसिंध नदी पर बनी बालाजी की थाक रपट पर पानी आने से बारिश में बार-बार आवागमन बंद होता है.  


कई बार तो एक-एक माह तक मार्ग बाधित रहता है. कुंदनपुर में उजाड़ नदी पर की रपट की हालत भी कुछ ऐसी ही है. हालांकि यहां नई पुलिया स्वीकृत है, लेकिन फिलहाल आवागमन पुरानी रपट से होने से उजाड़ नदी में पानी की जरा सी आवक होते ही नदी पार बसे मंडाप, किशनपुरा, घाटोलिया, थेहरोली, घटाल, अतरालिया, आमली आदि गांवों का संपर्क बार-बार बाधित होता है. 


होती है परेशानी
नदी-नालों पर रपटों पर पानी आने के बाद ग्रामीणों को जरूरत पर मार्ग बदल-बदल कर आवागमन करना पड़ता है. सांगोद से चारचौमा जाने के लिए कैथून होकर तो मंडाप, घाटोलिया और इससे जुड़े गांवों तक आने-जाने के लिए ग्रामीणों को सांगोद से घानाहेड़ा मार्ग पर आवागमन करना पड़ता है. ऐसे में लोगों की समय के साथ धन की भी बरबादी होती है. कई गांव तो ऐसे है कि जहां रपटों पर पानी होने से आवागमन का विकल्प ही नहीं है. 


खजूरी ओदपुर गांव के लोग भी बरसों से इस समस्या से जूझ रहे हैं. लक्ष्मीपुरा-पनवाड़ मुख्य मार्ग से खजूरी ओदपुर के रास्ते पर बरसाती नाला आता है.  हालांकि इस पर रपट बनी हुई है, लेकिन बारिश में रपट पर कई दिनों तक पानी रहता है. मजबूरन लोगों को रपट पर बहते पानी के बीच आवागमन करना पड़ रहा है. ग्रामीण कुलदीप नागर ने बताया कि ज्यादा बारिश में नाले में पानी की ज्यादा आवक होने से गांव टापू बन जाता है. 


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