Lok Sabha Chunav 2024:लोकसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत कम रहने का कारण वोटरों की उदासीनता को तो माना ही जा रहा है.अब इसमें राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता का कारण भी जुड़ गया है.


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मतदान के बाद सामने आई संवीक्षा की समेकित रिपोर्ट से इसका खुलासा कर रही है.रिपोर्ट के मुताबिक 7 फीसदी मतदान केन्द्रों पर मॉकपोल के दौरान प्रत्याशी के अभिकर्ता मतदान केन्द्र में मौजूद ही नहीं थे.इनमें कुछ केन्द्रों पर केवल एक प्रत्याशी के अभिकर्ता की उपिस्थति दर्ज हुई है.


प्रदेश में दो फेज में मतदान हो चुका हैं.इस बार मतदाताओं की उदासीनता ने 2019 की तुलना में प्रतिशत घटा दिया,लेकिन मतदान के बाद सामने आई संवीक्षा की समेकित रिपोर्ट खुलासा कर रही है की अकेले वोटर ही उदासीन नहीं रहे बल्कि प्रत्याशियों के अभिकर्ता भी 7 फीसदी मतदान केन्द्रों पर मॉकपोल के दौरान नदारद रहे.


जयपुर जिले की जयपुर ग्रामीण और जयपुर शहर लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल को वोटिंग हुई,लेकिन इन दोनों सीट पर वोटिंग के दिन कई ऐसे बूथ रहे जहां किसी भी प्रत्याशी का एजेंट पोलिंग शुरू होने के समय नहीं पहुंचा यानी उन बूथों पर बिना एजेंटों के पोलिंग पार्टियों ने ही वोटिंग की प्रक्रिया करवाई.ये तब है जब बीजेपी और कांग्रेस के दिग्गज नेता हर बूथ स्तर पर अपनी पकड़ होने का दावा कर रहे थे.


दरअसल जयपुर जिला निर्वाचन ने जयपुर शहर और जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल को वोटिंग के लिए 4217 पोलिंग बूथ बनाए थे.जिसमें से वोटिंग वाले दिन 296 ऐसे पोलिंग बूथ थे, जहां किसी भी प्रत्याशी का एजेंट मॉक पोलिंग के दौरान मौजूद नहीं था.इसमें 140 जयपुर शहर लोकसभा सीट के बूथ है.जबकि जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट के 156 बूथ हैं.इसी तरह 4217 बूथों में से 14.25 फीसदी यानी 296 बूथ ऐसे रहे जहां मॉक पोलिंग के समय केवल एक प्रत्याशी का एजेंट मौजूद था.



इनमें से 361 बूथ तो शहरी लोकसभा सीट के है,जबकि 240 बूथ ग्रामीण लोकसभा सीट के हैं.ये हालात तब हैं जब बीजेपी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले हर बूथ पर एक-एक वोटर को टच करने या कहे उनसे संपर्क करने के लिए पन्ना प्रमुखों की टीम बनाई थी.हर पन्ना प्रमुख को 100 के करीब वोटर्स की जिम्मेदारी दी थी,लेकिन लोकसभा की वोटिंग वाले दिन की ये रिपोर्ट जमीनी हकीकत कुछ और ही बता रही है.


चुनाव आयोग की गाइडलाइन के अनुसार प्रत्येक पोलिंग बूथ पर वोटिंग वाले दिन मतदान दल (निर्वाचन आयोग के अधिकारियों-कर्मचारियों की टीम) के अलावा प्रत्येक प्रत्याशी अपने प्रतिनिधि के रूप में प्रत्येक बूथ पर अभिकर्ता तैनात करता है.मतदान शुरू करने से 90 मिनट पहले पहले मॉकपोल (दिखावटी मतदान) होता है.


इसमें अभिकर्ता की मौजूदगी में ईवीएम पर 50 वोट पोल कर उसकी वीवीपैट में पर्ची भी दिखाई जाती है.उन्हें मौके पर ही डिलिट किया जाता है.इससे ईवीएम मशीन के ठीक से काम कर रहे होने की भी जांच हो जाती है.साथ में एजेंट की निगरानी में पोलिंग बूथ पर वोटिंग शुरू करने से मॉकपोल करवाकर ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता का सत्यापन करवाया जाता है.


मतदान के दौरान भी अभिकर्ता मौजूद रहकर वोटर डालने आने वाले की पहचान सत्यापन पर नजर रखते है.जिससे कोई फर्जी मतदान नहीं कर सके.दरअसल मतदान के लिए निर्धारित समय से 90 मिनट पूर्व मॉक पोल करवाया जाता हैं.


मॉकपोल के समय कोई भी पोलिंग एजेंट उपस्थित न होने या एक ही पोलिंग एजेंट आने पर 15 मिनट इंतजार किया जाता हैं.अभिकर्ता की उपस्थिति नहीं होने की स्थिति में पंद्रह मिनट इंतजार के बाद अन्यथा की स्थिति में मतदान केन्द्र पर उपस्थित मतदान अधिकारी और कर्मी द्वारा ही मॉक पोल का कार्य आरंभ कर दिया जाता हैं.


बहरहाल, भाजपा की पन्ना प्रमुख से लेकर बूथ प्रभारी तक पूरी टीम है.संगठन की ओर से मतदान के दिन पार्टी प्रत्याशी के अभिकर्ता तैनात किए जाते है.इसके लिए कई दिन पहले से कसरत शुरू हो जाती है.कांग्रेस का भी संगठनात्मक ढांचा गांव-ढाणी तक होने के दावे किए जाते है.अब मतदान के दौरान अभिकर्ता के मौजूद नहीं होने वाले बूथों के नाम सामने आ गए है.जो भाजपा और कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी और जिला संगठन के लिए चिंतन का विषय बना हुआ है.


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