Lok Sabha Election 2024: सीकर सीट पर चुनावी मुकाबले की तस्वीर साफ, BJP के सुमेधानंद सरस्वती से होगा अमराराम का मुकाबला
Rajasthan Lok Sabha Election 2024: राजस्थान में सीकर की सीट पर चुनावी मुकाबले की तस्वीर साफ हो गई है. यहां से बीजेपी के सुमेधानन्द सरस्वती के सामने माकपा के अमराराम चुनाव लड़ेंगे. अमराराम चार बार के विधायक रहे हैं और लोकसभा चुनाव भी लड़ते रहे हैं लेकिन अभी तक दिल्ली की संसद में बोलने का उनका सपना पूरा नहीं हुआ.
Rajasthan Lok Sabha Election 2024: सीकर सीट कांग्रेस ने माकपा के लिए छोड़ दी है और इसके साथ ही माकपा ने अमराराम के रूप में अपने प्रत्याशी का भी ऐलान कर दिया है. वैसे तो पार्टी ने बैठक गुरूवार को ही कर ली थी और अमराराम का चुनाव लड़ना तय हो गया था लेकिन आधिकारिक ऐलान कांग्रेस की तरफ़ से सीट पर गठबंधन का बात कहने के बाद ही हुआ.
अमराराम साल 1993 में पहली बार विधायक बने. उसके बाद से प्रत्येक विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन दिल्ली स्थित देश की संसद में कभी भी अमराराम की आवाज़ नहीं गूंजी ऐसे में सवाल यह है कि क्या इस बार अमराराम का दिल्ली जाने का ख्वाब पूरा हो सकेगा?
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सीकर की सीट पर चुनावी मुकाबले की तस्वीर साफ हो गई है. यहां से बीजेपी के सुमेधानन्द सरस्वती के सामने माकपा के अमराराम चुनाव लड़ेंगे. अमराराम चार बार के विधायक रहे हैं और लोकसभा चुनाव भी लड़ते रहे हैं लेकिन अभी तक दिल्ली की संसद में बोलने का उनका सपना पूरा नहीं हुआ. साल 1979 में छात्र राजनीति में जीत के साथ कदम बढ़ाने वाले अमराराम अपने गांव के सरपंच भी रहे और राजस्थान की विधानसभा में भी पहुंचे लेकिन सवाल यह है कि क्या इस बार अमराराम जीत का परचम फहरा पाएंगे?
कौन हैं अमराराम?
सीकर से माकपा के प्रत्याशी अमराराम का चेहरा संसदीय क्षेत्र के लोगों के लिए जाना-पहचाना हैं. सीकर के मूंडवाड़ा गांव के अमराराम को पूरे शेखावाटी में कामरेड नेताओं का सिरमौर माना जाता है. अगस्त 1955 में जन्मे अमराराम सीकर के श्री कल्याण कॉलेज में पढ़े और 1979 में छात्र संघ के अध्यक्ष से राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की. छात्र राजनीतिक के बाद पंचायतीराज में सक्रियता बनाए रखी और 1983 में अपने गांव मूंडवाड़ा में सरपंच बने. इसके बाद अमराराम ने विधानसभा की राह पकड़ने की कोशिश की. शुरूआती विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखने के बाद अमराराम ने पहली बार 1993 में जीत दर्ज की. पहली जीत के बाद लगातार 1998, 2003 और 2008 में अमराराम जीते और कुल चार बार विधानसभा पहुंचे हालांकि 2008 के चुनाव में परिसीमन के बाद उन्हें सीट बदलनी पड़ी और वे धोद से दांतारामगढ़ शिफ्ट हो गए लेकिन उसके बाद माकपा के राज्य सचिव अमराराम पिछले तीन चुनाव लगातार हारे हैं.
लोकसभा चुनाव में रही उपस्थिति, लेकिन हर बार मिली हार -
कामरेड अमराराम ने 1993 में विधायक बनने के बाद लगभग प्रत्येक लोकसभा चुनाव में अपनी दावेदारी जताई, चुनाव भी लड़ा लेकिन जीते कभी नहीं. पिछले चार चुनाव की बात करें तो साल 2004 से 2019 तक के चुनाव में अमराराम का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन साल 2009 में ही रहा. इस साल अमराराम तीसरे नम्बर पर भले रहे हों लेकिन उन्होंने 1 लाख 61 हज़ार 590 वोट मिले. जो पूरी वोटिंग का 22 फीसदी से ज्यादा ठहरता है. इस बार अमराराम के वोट में 13.78 फ़ीसदी यानि तकरीबन पौने चौदह फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई. इससे पहले साल 2004 में अमराराम को 66 हज़ार 241 वोट मिले जो कुल वोटिंग का 8.50 फ़ीसदी था. इस बार अमराराम के खाते के वोट में 2.24 फ़ीसदी की गिरावट हुई.
साल 2014 के चुनावी आंकड़े
साल 2014 में सुभाष महरिया बीजेपी के बागी हो गए और निर्दलीय चुनाव लड़े. ऐसे में महरिया तीसरे नम्बर पर रहे और उन्होंने कामरेड अमराराम को चौथे नम्बर पर धकेल दिया. अमराराम इस बार 53 हज़ार 134 वोट पर ही सिमट गए जबकि महरिया को 1 लाख 88 हज़ार 841 वोट मिले. अमराराम का वोट प्रतिशत 5 पर ही अटक गया. इस चुनाव में मोदी फैक्टर हावी रहा और बीजेपी ने वोटों में तकरीबन 23 फ़ीसदी (22.93 फ़ीसदी) की बढ़ोतरी करते हुए 47 फ़ीसदी से ज्यादा वोट लिए तो भारी जीत भी दर्ज की. इस बार बीजेपी के वोट कांग्रेस के मुकाबले लगभग दुगुने रहे.
पिछले चुनाव यानि साल 2019 में भी अमराराम कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों के खिलाफ़ चुनावी मैदान में उतरे लेकिन वोटों का आंकड़ा महज 2.37 फीसदी रहा. पिछले चुनाव में तीसरे नम्बर पर रहे अमराराम को केवल 31 हज़ार 462 वोट मिले. लगातार दूसरी बार सांसद बने सुमेधानन्द सरस्वती को 7 लाख 72 हज़ार 104 वोट मिले. जो 58 फ़ीसदी से ज्यादा था.
साल 2019 के चुनाव में-
बीजेपी के सुमेधानन्द सरस्वती को 7 लाख 72 हज़ार 104 वोट मिले. जो कुल वोटिंग का 58.19 फ़ीसदी था.
कांग्रेस के सुभाष महरिया को 4 लाख 74 हज़ार 948 वोट मिले. यह कुल वोटिंग का 35.79 फ़ीसदी रहा.
सीपीएम के अमराराम को 31 हज़ार 462 वोट मिले. माकपा का वोट प्रतिशत 2.37 रहा.
2004 में अमराराम को 66 हज़ार 241 वोट मिले जो कुल वोटिंग का 8.50 फ़ीसदी था. इस बार अमराराम के खाते के वोट में 2.24 फ़ीसदी की गिरावट हुई. 2009 में माकपा को 1 लाख 61 हज़ार 590 वोट मिले.. जो पूरी वोटिंग का 22 फीसदी से ज्यादा ठहरता है. इस बार अमराराम के वोट में 13.78 फ़ीसदी यानि तकरीबन पौने चौदह फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई.
कामरेड अमराराम को चौथे नम्बर पर धकेला
साल 2014 में सुभाष महरिया बीजेपी के बागी हो गए और निर्दलीय चुनाव लड़े. ऐसे में महरिया तीसरे नम्बर पर रहे और उन्होंने कामरेड अमराराम को चौथे नम्बर पर धकेल दिया. अमराराम इस बार 53 हज़ार 134 वोट पर ही सिमट गए जबकि महरिया को 1 लाख 88 हज़ार 841 वोट मिले. अमराराम का वोट प्रतिशत 5 पर ही अटक गया. इस चुनाव में मोदी फैक्टर हावी रहा और बीजेपी ने वोटों में तकरीबन 23 फ़ीसदी (22.93 फ़ीसदी) की बढ़ोतरी करते हुए 47 फ़ीसदी से ज्यादा वोट लिए.
सवाल यह उठता है कि आखिर अमराराम को टिकट क्या सोचकर दिया गया? क्या कांग्रेस सिर्फ गठबंधन का धर्म निभाना चाहती है या फिर पार्टी के मन में बीजेपी को पटखनी देने की सोच चल रही है? सवाल यह भी है कि सीकर की सीट गठबंधन में छोड़ी तो क्या कांग्रेस की अगली पीढ़ी के नेता यहां तैयार हो सकेंगे?