Nagaur news : बीमारी ने बना दी एक परिवार तीन भाई - बहन को जिंदा लाश
Nagaur news : डीडवाना जिले के ग्राम खरेश के एक परिवार के 3 सदस्य लाचारी का जीवन जीने को मजबूर है.इस परिवार के तीन भाई - बहन पिछले कई सालों से ऐसी बीमारी से जूझ रहे हैं,जिसने इन्हें न केवल लाचार बना दिया, बल्कि उनकी जिदंगी को भी बदरंग बना दिया.
Nagaur news : डीडवाना जिले के ग्राम खरेश के एक परिवार के 3 सदस्य लाचारी का जीवन जीने को मजबूर है.इस परिवार के तीन भाई - बहन पिछले कई सालों से ऐसी बीमारी से जूझ रहे हैं,जिसने इन्हें न केवल लाचार बना दिया, बल्कि उनकी जिदंगी को भी बदरंग बना दिया. इस बीमारी ने ना केवल उन्हें जिदंगी भर के लिए मोहताज बना दिया, बल्कि अपने मां बाप के लिए भी उन्हें बोझ बना दिया. जिन जवान बेटों के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आनी थी, अब उनकी ही जिम्मेदारी बूढ़े मां-बाप के कंधों पर आ पड़ी है. बीमारी भी ऐसी कि आज तक कोई भी डॉक्टर इस बीमारी का इलाज नहीं कर सके हैं.
दरअसल, डीडवाना के ग्राम खरेश के रहने वाले भंवरलाल बेहद गरीब है. उनकी तीन संताने है. सबसे बड़ा उनका लडक़ा मुकेश है. जिसकी उम्र अब 39 साल हो चुकी है.उनकी इकलौती बेटी प्रिया भी 35 साल की हो चुकी है.वहीं सबसे छोटा बेटा पुखराज 33 का साल का हो चुका है. इन तीनों को ही एक अजीब बीमारी ने घेर रखा है.लंबे समय तक तो इस बीमारी का कोई पता नहीं चल पाया है, और जब बीमारी का पता चला, तो उसका कोई इलाज ही अब तक नहीं मिला है.
भंवरलाल प्रजापत की संतानों को दुर्लभ बीमारी है. इस बीमारी में जैसे ही यह बच्चे जवानी की दहलीज पर कदम रखते हैं, तभी यह बीमारी उन्हें जकड़ लेती है और उन्हें जवानी में ही लाचार बना देती है.
21 साल की उम्र में कदम रखते ही बीमारी ने घेरा
इस दास्तान में सबसे बड़ी दिल दहलाने वाली बात यह है कि तीनों भाई बहन जैसे ही 21 साल की उम्र में कदम रखते हैं, तभी उन्हें यह दुर्लभ रोग जकड़ लेता है. करीब 18-19 साल पहले मुकेश इसकी चपेट में आया. उस समय अचानक उसके पैरों में कंपन होने लगा. धीरे-धीरे बढ़ता हुआ यह रोग इतना फैल गया कि उसके पैरों ने जवाब देना बंद कर दिया और मुकेश खड़ा होने में भी असमर्थ हो गया.अंतत: लाचार होकर उसे खटिया पकड़नी पड़ी.यह वो समय था जब भंवरलाल प्रजापत को मुकेश से काफी उम्मीदें थीं कि वो मां-बाप के बुढापे का सहारा बनेगा, लेकिन तकदीर का खेल कि जिस उम्र में मां-बाप को सहारा चाहिए वो खुद जवान बेटा मां-बाप का सहारा बना है.
बीमारी के वजह से पति ने छोड़ा
समय बीतता गया और कुछ सालों पहले भंवरलाल ने अपनी बेटी प्रिया के हाथ पीले कर दिए. शादी के 2 साल बाद प्रिया ने बेटी को जन्म दिया, लेकिन जैसे ही प्रिया 21 वर्ष की हुई, वैसे ही उसे भी भाई की तरह इस दुर्लभ बीमारी ने जकड़ लिया.ससुराल में वो भी उसी हालातों में चली गई, जिसका दंश उसका भाई मुकेश झेल रहा था.दिक्कतें यहीं नहीं थमी, उसकी बीमारी और बढ़ती लाचारी देखकर प्रिया के पति और ससुराल वाले प्रिया को उसके ससुराल छोड़ गए, तबसे प्रिया अपने पिता के घर पर खटिया पर बैठी अपनी नन्ही बेटी के बारे में सोचती रहती है.
कुछ सालों बाद भंवरलाल का तीसरा बेटा पुखराज ने भी जवानी की दहलीज पर कदम रखा और वह भी इस अज्ञात बीमारी की चपेट में आ गया.कभी स्कूल में दौड़ने-कूदने वाले उसके पैर भी अब लडख़ड़ाने लगे और वह भी खाट पर लेटने को मजबूर हो गया.
कही भी इलाज नही
भंवरलाल ने अपने संतानों के इलाज के दूर दूर तक के इलाकों से इलाज करवाया, लेकिन कही भी ना तो बीमारी समझ में आई और ना ही किसी भी प्रकार के इलाज से फायदा हुआ. भंवरलाल ने डीडवाना, जयपुर, अहदाबाद, अजमेर, मुम्बई आदि जगहों पर अपने बच्चों का इलाज करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बल्कि रोग अपने पैर पसारता गया.या यू कहें कि विकराल रूप धारण करता गया।
प्रशासन और सरकार से कोई सहायता नहीं
बीते 15 सालों में भंवरलाल ने अपने बच्चों के इलाज के लिए जगह जगह ठोकरे खाई. खूब पैसा बहाया, जमीन तक बिक गई.धार्मिक अनुष्ठानों के भी चक्कर लगाए.इलाज के लिए दर-दर भटकने के बावजूद कोई सुधार नहीं होने से अब भंवरलाल भी मायूस होकर बैठ गए है. किस्मत तो भंवरलाल और उसके परिवार से रूठी है.
लेकिन प्रशासन और सरकार को भी इन लाचारों की परवाह नहीं है. उन्हें सरकार से अब तक कोई सहायता नहीं मिली है, हालांकि पंचायत स्तर पर पिछले दिनों उन्हें पेंशन, बीपीएल जैसी सुविधाएं मिली है, लेकिन इलाज के नाम पर उन्हें अब तक कुछ नहीं मिला है.ऐसे में उन्हें अपने बच्चों के साथ ही अपनी और अपनी पत्नी के भविष्य को लेकर चिंता सताने लगी है. साथ ही उनके मन में तरह - तरह के सवाल भी उठने लगे हैं, जिनका शायद किसी के पास कोई जवाब नहीं है.
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि भंवरलाल और उनकी संतानों की इस परेशानी को समझे और उनकी मदद करे. बच्चों के इलाज के लिए भी सरकार को पहल करनी होगी, तभी इनकी लाचारी खत्म हो सकेगी.उम्मीद है कि पीड़ितों की और राज्य सरकार का ध्यान जाएगा और वो इन लाचार जिंदगियों के साथ साथ पीड़ितों के मां-बाप की आर्थिक स्थिति को समझते हुए इलाज के अलावा भविष्य में जीवन यापन का रास्ता प्रशस्त करेगी.