Earth Day: पृथ्वी पर पर्यावरण प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है. औद्योगिक विकास ने मौसम के तंत्र में भारी बदलाव किया है.ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी पर खतरा बढ़ता जा रहा है. औषधियां व जीवों की प्रजातियां नष्ट होने के कगार पर पहुंच गई है.वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर हालात नहीं सुधरे तो पृथ्वी पर सातवा महाविनाश भी हो सकता है.


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आज पृथ्वी दिवस है. इस दिन हम कुछ कार्यक्रम आयोजित कर पृथ्वी को उसी रूप में लाने की बात तो करते हैं लेकिन उसे हकीकत में कभी नहीं करते यही वजह है की जिस तेजी से पृथ्वी पर इंसान ने विकास किया है, उसी तेजी से पृथ्वी पर संकट भी बढ़ा है.


बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि व प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के साथ बिगड़ता पर्यावरण पृथ्वी की सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है. पिछले 300 साल में औद्योगिक विकास के साथ पृथ्वी के पर्यावरण में जबरदस्त असंतुलन हुआ है. ग्रीन हाऊस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन से पृथ्वी के वायु मण्डल का संतुलन बिगड़ने लगा है.


ओजोन परत को भी नुकसान पहुंच रहा है.ओजोन परत को नुकसान से पृथ्वी की सतह पर सूर्य की हानिकारक पैराबैंगनी किरणों का आगमन हुआ तो जीव जन्तुओं व पादपों में अनुवांशिक दोष पैदा होने का कहर हो सकता है. पृथ्वी का औसत सतही तापमान भी लगातार बढ़ता जा रहा है.


 जिससे पर्यावरविद् बेहद चिंतित है. जलवायु मॉडल संकेत कर रहे हैं कि वर्ष 2040 तक इसमें 5.5 डिग्री सेन्टीग्रेड तक की तापवृद्धि हो सकती है. ग्लोबल वार्मिंग से विश्व के ग्लेशियर खतरे में आ जाएंगे.समुद्री जल स्तर में बढ़ोतरी की आशंका रहेगी.भारत में भी छह हजार किमी फैली तटीय रेखा ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से संकटग्रस्त हो सकती है.


जानकारों का कहना है की बढ़ती जनसंख्या से प्राकृतिक संसाधनों पर बेहद दबाव बड़ा है. इस कारण पर्यावरण असंतुलन होने लगा. जल संसाधन के अत्यधिक विदोहन से जल संकट विश्व के लिए चुनौती बन गया है. इसके अलावा इंसान ने अपने पैर जंगलों तक पसार लिए हैं,जिससे जंगलों व अन्य जीवों का वज़ूद भी खतरे में है.


 वैश्विक तापवृद्धि के कारण विश्व स्तर पर जलवायु में बदलाव के संकेत मौसम में हो रहे परिवर्तन देने लगे हैं, जिससे भारत के साथ राजस्थान भी अछूते नहीं है.शुष्क वातावरण वाले पश्चिम राजस्थान में आद्र्वता के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई. मानसून पैटर्न में बदलाव हो रहा है.


प्रकृति में खुद इंसान के कारण पैदा हुई विभिन्न समस्याओं से पृथ्वी पर मानव जीवन बद से बदतर होता जा रहा है. मनुष्य पर्यावरण के उपभोग के एवज में उसके संरक्षण से दूर हो रहा है. जिसके परिणाम स्वरूप वैश्विक ताप वृद्धि दुनिया के सामने हैं. पृथ्वी पर भूकंप,सुनामी,चक्रवात,अतिवृष्टि जैसी विध्वंसकारी घटनाओं में इजाफा होने लगा है. वनस्पतियों पर भी इसका विपरित प्रभाव हो रहा है.


 अनेक महत्वपूर्ण औषधीय पादपां की किस्में लुप्त होती जा रही है. मनुष्य को स्वार्थ की प्रवृति छोड़कर विज्ञान की प्रगति की दिशा में पर्यावरण को संरक्षित करने की जरूरत है.


पृथ्वी की गहराई में दबे हुए अत्यधिक जहरीले कार्बनिक रसायनों का दोहन भी पृथ्वी के असंतुलन का कारण है. इन रसायनों की पृथ्वी की सतह पर मात्रा बढ़ने से सतह पर मौजूद संसाधन जहरीले होते जा रहे हैं. इससे पृथ्वी में मौजूद गैसों में विश्रण से पृथ्वी पर भूकम्प की घटनाएं भी बढ़ी हैं. पिछले 50 करोड़ वर्षों में पृथ्वी पर 6 बार महाविनाश की स्थितियां आई, जब अधिकतर प्रजातियां लुप्त हो गई. समय रहे नहीं चेते तो सातवां महाविनाश पृथ्वी के जीवन को खतरे में डाल सकता है.


मनुष्य स्वार्थ के लिए पृथ्वी को खोखला कर दिया है, पृथ्वी के गर्भ के अपार संसाधनो को निकालने में जुटे मनुष्य ने पृथ्वी पर मौजूद पेड़ पोधो, वनो और पहाड़ियों को भी छलनी कर दिया है. वनों की अंधाधुंध कटाई से जंगलो का अस्तित्व ख़त्म हो रहा है, मनुष्य जंगलो में घुस गया है, जिससे जीव-जन्तुओ का जीवन खतरे में हैं.


पृथ्वी को बचाने के लिए पेड़-पौधों में वृद्धि, वन क्षैत्र बढ़ाने व पर्यावरण संरक्षण के लिए आमजन को जागरूक होना होगा. पृथ्वी दिवस को मनाने की सार्थकता इसी में है कि पृथ्वी से जुड़े तमाम मुद्दों को हर व्यक्ति गंभीरता से ले और प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग रोकें. और ये फर्ज़ इस पृथ्वी पर रहने वाले हर इंसान का है.


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