Kheenvsar: नागौर जिले के खींवसर उपखंड मुख्यालय स्थित खींवसर फोर्ट में ऑफिसर इंचार्ज अपेक्स सेंटर एनिमल डिजीज डायग्नोसिस प्रोफेसर डॉक्टर ऐके कटारिया, पूर्व वेटरनरी कॉलेज एचओडी बीकानेर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गायों में फैले लंपी वायरस से गोवंश को बचाने के उपाय बताए.


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कटारिया 34 सालों से पशुओं में होने वाली बीमारियों पर भविष्य वाणी करना और उनके बचाव पर शोध कर रहे हैं. कटारिया ने अन्नदाता चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा किए गए संक्रमित गायों के इलाज के बारे में धनंजय सिंह खींवसर से जानकारी ली और उनका गायों को बचाने इस प्रयास के लिए धन्यवाद किया. 


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कटारिया ने बताया कि लंबी वायरस गोवंश के लिए बहुत खतरनाक बीमारी है. इस बीमारी में ऐसा पशुधन जो सारे रूप से कमजोर हो, वह जिस की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है, ऐसे पशु इस बीमारी के ज्यादा शिकार हो रहे हैं. इस बीमारी के लक्षण पांव में सूजन आना, बुखार खाना पीना छोड़ना वह नाक से पानी निकलना आदि हैं. 


वायरस के फैलने का मुख्य कारण मच्छर मक्खी जैसे कीट
इस वायरस से संक्रमित होने के 7 दिन बाद यह लक्षण गोवंश में नजर आते हैं. इसके बचाव के लिए अभी तक कोई विशेष इलाज भी नहीं मिल पाया है. ऐसे में घरेलू इलाज के साथ-साथ साफ सफाई गोवंश के लिए अति आवश्यक है. गाय के शरीर पर पड़ने वाले घाव की समय-समय पर साफ सफाई अति महत्वपूर्ण है. गायों में तेजी से इस वायरस के फैलने का मुख्य कारण मच्छर मक्खी जैसे कीट हैं, जो संक्रमण को एक गाय से दूसरे गाय तक पहुंचा रहे हैं. कटारिया ने बताया कि स्वस्थ गाय को गोट फॉक्स टीका लगाकर कुछ हद तक इसे बचाया जा सकता है. इस दौरान पशु चिकित्सक शौकत खान भी मौजूद रहे.


सन 1885 में अफ्रीकन देशों में थी फैली
ऑफिसर इंचार्ज अपेक्स सेंटर एनिमल डिजीज डायग्नोसिस प्रोफेसर डॉक्टर ऐके कटारिया ने बताया कि इस बीमारी का नाम लंपी स्किन डिजीज है. यह बीमारी लगभग सन 1885 में अफ्रीकन देशों में हुई थी. सबसे पहले यह बीमारी कजाकिस्तान देश में करीब 100 साल पहले हुई थी. अपने देश में यह बीमारी 100 साल बाद आई है, जिसके बाद यह बीमारी मिडिल ईस्ट में आई और 2019 में यह बीमारी बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान, चाइना, वियतनाम पहुची, जिसके बाद यह अगस्त 2019 में भारत के उड़ीसा में पहला केस मिला. यह इस बीमारी की हिस्ट्री है. बीमारी बहुत पुरानी है. यह मुख्य रूप से गोवंश को प्रभावित करती है.


यह आने वाले दिनों में भैंसों और ऊंटों में भी फैल सकती है. जैसे मनुष्य में कोरोना महामारी के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं थी. वैसे ही गायों में फैले इस वायरस के बारे में अभी तक ज्यादा जानकारियां नहीं जुटा पाए हैं. इसके लक्षण नाक से पानी आना, पांव में सूजन, चारा नहीं खाना, चमड़ी पर गांठों का उभरना, बुखार आना है. 15 से 20 दिनों तक यह पशुओं में पिक मोड में रहता है, जिसके बाद धीरे-धीरे इसका असर कम होने लगता है.


छोटे बच्चों को भी इस वायरस ने काफी प्रभावित किया
साथ ही बताया कि संक्रमित गाय के दूध को हम उबालकर इस्तेमाल कर सकते हैं. दूध के उबालने के बाद वायरस का असर खत्म हो जाता. वहीं कटारिया ने बताया कि जैसे मनुष्य में फैले करना वायरस का असर बच्चों पर कम हुआ क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक थी, वैसे ही गायों में भी इस वायरस का असर छोटे बच्चों पर कम हुआ है लेकिन जिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम थी. ऐसे में छोटे बच्चों को भी इस वायरस ने काफी प्रभावित किया है.


नस्ल का असर होता है, जो नस्ल हाइब्रिड नस्ल है. उनमें यह वायरस ज्यादा प्रभाव करेगा लेकिन यहां पर जो एकदम देसी नस्ल है. उस नस्ल में भी इस वायरस ने काफी अपना प्रभाव दिखाया है. वहीं खींवसर से बताया कि अन्नदाता चैरिटेबल ट्रस्ट बहुत ही अच्छा कार्य कर रही है जैसा कि मुझे यहां का फीडबैक मिला और मैंने क्षेत्र में जाकर देखा और जानकारी ली.


अब तक 3000 मेडिकल किट किए जा चुके वितरित 
अन्नदाता चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक धनंजय सिंह खींवसर ने बताया कि अब तक करीब 3000 मेडिकल कीट का वितरण किया जा चुका है, जिसमें संक्रमित गायों के लिए आवश्यक दवाइयों का एक किट बनाया गया है. साथ ही वह स्वयं डॉक्टर्स की टीम के साथ क्षेत्र में जाकर गायों का इलाज करवा रहे हैं. साथ ही जब तक गायो में यह रोग ठीक नहीं हो जाता जब तक इसी प्रकार गौवंश की सेवा करने की भी धनंजय सिंह खींवसर ने बात कही.


Reporter- Damodar Inaniya


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