आखिर क्यों दम तोड़ रही है, राजस्थान की लोकप्रिय लोककला `बहरूपिया`, अब दर-दर ठोकरे खानें को मजबूर बहरूपिया का परिवार
Bahrupia news Merata: रियांबड़ी उपखण्ड मुख्यालय के गल्ली मोहल्लों में इन दिनों बहरूपियों ने दिखाई अपनी कला. कला ऐसी की हर कोई रहजाता है दंग. कला ऐसी की पहले दिन रावण का रूप धारण कर लिया, दूसरे दिन नारद मुनि का तों तीसरे दिन डाकू मंगलसिंह का रूप, फिर डायन का रूपधारण कर आमजन का कर रहे मनोरंजन.
Folk art Bahrupia in Merata: दौसा जिले के एक गांव के बहरूपिया कलाकार जुगनू ने जानकारी देते हुए बताया की बहरूपिया कला हमारे पूर्वजों की कला है, जिसको राजा महाराजाओं के जमाने मे बहुत ही लोकप्रिय हुआ करती थी. हमारे पूर्वजों को उस समय राजा महाराजाओं द्वारा मान सम्मान दिया जाता था. आमजन में खासा इज्जत हुआ करती थी.
ज्यो-ज्यो समय बितता गया बहरूपिया कला की कद्र भी कम होती गई, आज के समय मे बहरूपिया कलाकार को अपने परिवार का पालन पोषण करना भी मुश्किल हो गया है. बहरूपिया कलाकार जब रूप धारण कर लोगों का मनोरंजन करता है, लोग उसकी कला का मजाक उड़ाते हैं. बोलते हैं, इतना हटाकटा है, मेहनत-मजदूरी करके कमाकर अपने परिवार का पालन पोषण कर सकता है, उसको तिरस्कार भरी नजर से भी देखा जाने लगा है. आज के दौर मे बहरूपिया कला अब धीरे-धीरे दम तोड़ते हुए नजर आ रही है.
बहरूपिया सागर भाट ने बताया की एक समय था ज़ब हमारी बहरूपिया कलाकारी का डंका चारो और बजता था, राजा रजवाड़ों के समय आमजन राजा के दरबार मे हमारे पूर्वजों की कला को देखने दरबार लगाया जाता था. लोग मनोरंजन करते थे, आज दूर संचार क्रांति के समय में बहरूपिया कला से लोगों का मोह भंग होता जा रहा है.
बहरूपिया को अपने परिवार को साथ लेकर चलने से घूमकड़ सी जिंदगी जीने को मजबूर हो गया है. अपने परिवार को साथ लेकर चलने से छोटे बड़े बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है. जिससे पिछड़ेपन का शिकार हो जाते हैं, अब ये कलाकार इस बहरूपिया कला को छोड़ने को मजबूर होते जा रहे हैं. बहरूपिया कला को जीवंत रखने के लिए सरकार को भी जमीनी स्तर पर इस कला को सरंक्षण देना चाहिए, जिससे ये लोककला जीवंत रह सके. आने वाली नई पीढ़ियां भी इस बहरूपिया कला को जान सकें.
Reporter- Damodar Inaniya