लाइम स्टोन किंग खाटू कलां अब कहलाएगा बड़ी खाटू, विदेशों में है पहचान
नागौर में कई जगह सैंड स्टोन की खानें हैं. इसमें भी बड़ी खाटू इलाके के पत्थर की खास मांग रहती है. यहां के रैनबो पत्थर की अलग पहचान है, जो विदेशों में भेजा जाता है. खास तौर पर अरब देशों में इसकी बहुत डिमांड रहती है.
Jayal: मारवाड़ी में कहावत बहुत प्रसिद्ध है ‘सियाळे खाटू भलो, उनाळे अजमेर, नागीणों नित रो भलो, सावण बीकानेर’. मतलब यह है कि बड़ी खाटू गांव में सर्दी के मौसम में कड़ाके की सर्दी का असर भी इतना नहीं होता, जितना जिले के दूसरे हिस्सों में होता है.
आमतौर पर यहां आसपास के इलाके से अधिकतम और न्यूनतम तापमान चार डिग्री तक ज्यादा होता है. इसका कारण यह है कि यह गांव चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा है. इसके चलते सर्दी में उत्तर की ओर से आने वाली बफीर्ली ठंडी हवाएं गांव की आबादी को जिले के अन्य हिस्सों की अपेक्षा कम प्रभावित करती हैं. वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी कवि की इन पंक्तियों को बिलकुल सटीक साबित करता है.
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खाटू को लेकर अनेक विद्वानों का कहना है कि रेत की अपेक्षा पत्थर देर तक गर्म रहता है. इस इलाके में सर्दी में भी अधिकांश समय धूप खिली रहती है. रेतीले इलाकों में शाम ढलते ही सर्दी का असर तेज हो जाता है. जबकि खाटू में पहाड़ियों का पत्थर देर तक गर्म रहता है. इससे रात को भी सर्दी का असर कम रहता है. इसलिए बड़ी खाटू का पारा 4 डिग्री कम रहता है.
स्टोन कटिंग की फैक्ट्रीज लगी हुई
सम्पूर्ण राजस्थान के आर्थिक दृष्ठी से महत्वपूर्ण स्थानों में से एक बड़ी खाटू राज्य के नागौर जिले की जायल तहसील का एक गांव है. यह जिला मुख्यालय से 60 कि॰मी॰ तथा तहसील मुख्यालय से 21 कि॰मी॰ दूरी पर स्थित है. बड़ी खाटू ग्राम पंचायत है, जिसमें लम्बे समय से लाइम स्टोन का खनन कार्य किया जाता रहा है. यहां से अच्छी गुणवत्ता का चूना पत्थर काफी मात्रा में किशनगढ़ मार्बल मंडी के अलावा देश के कई अन्य स्थानों पर निर्यात किया जाता है. भवन निर्माण में यहां का पत्थर अति उत्तम है. मकानों की छतों पर यहां की पट्टियां लगाई जाती है. वर्तमान में यहां पर कई स्टोन कटिंग की फैक्ट्रीज लगी हुई हैं, जहां पर पत्थर की कटाई की जाती है. पत्थर की लिरियां मकानों के सामने सुन्दर डिजाइन बनाने के लिए उपयोग में ली जाती है. बड़ी खाटू की पहाड़ियों पर चेजा पत्थर का बहुतायत से खनन होता है, जिसकी विदेशों में भी मांग है.
खिलौने और मूर्तियां भी बनाई जाती यहां
नागौर में कई जगह सैंड स्टोन की खानें हैं. इसमें भी बड़ी खाटू इलाके के पत्थर की खास मांग रहती है. यहां के रैनबो पत्थर की अलग पहचान है, जो विदेशों में भेजा जाता है. खास तौर पर अरब देशों में इसकी बहुत डिमांड रहती है. इसके कारण ही यह क्षेत्र पत्थर की मंडी के रूप में विकसित है. यहां प्रचूर मात्रा में पत्थर का कारोबार होता है. गांव में चारों ओर, घरों की आंतरिक साज-सज्जा की सामग्री के अलावा कई प्रकार के खिलौने और मूर्तियां भी बनाई जाती हैं. यहां के पत्थर व्यवसायी बताते हैं, कि खाटू का यह पत्थर देश भर के कई स्मारकों, भवनों और हवेलियों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, इटली सहित अन्य देशों में इंटीरियर डिज़ाइनिंग में उपयोग किया जा रहा है. ऐसा माना जाता है कि इस पत्थर के उपयोग से बिजली की खपत भी कम होती है. वर्तमान समय में यहां से प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये का पत्थर विदेशों में निर्यात किया जाता है. यह पत्थर अपनी खूबसूरती और चमक के अलावा भवनों को ठंडा रखने के लिए भी विख्यात है. साथ-ही-साथ इस पत्थर पर एसिड का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता.
बड़ी खाटू का सांस्कृति वैभव और स्थापत्य कला केन्द्र
पृथ्वीराज रासो के अनुसार खाटू का नाम ’खटवन’ था. पुराना खाटू लगभग बदल गया है. अब इसे ’बड़ी खाटू’ कहते हैं. चौहान काल में खाटू एक समृद्धशाली नगर हुआ करता था. पृथ्वीराज रसो, ब्रज भाषा की एक रचना जो पृथ्वीराज चौहान के बारे में बताती है, में इसे खट्टवन तथा कान्हड़दे प्रबंध में षट्कड़ी वाड़ी भी कहा गया है.यहाँ मौजूद ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में कई इतिहासकारों और साहित्यकारों ने लिखा है. पहाड़ी पर बसा हुआ यह क़स्बा अपने आप में एक धरोहर है. यहां के प्रवेश-द्वार पर पुरातन कलाकृतियों से सजे स्तम्भ आज भी मौजूद हैं, जो अपनी वैभवशाली संस्कृति की याद दिलाते हैं. क़स्बे की पहाड़ी पर प्रतिहार, चौहान, राठौड़ और मुग़ल काल से जुड़े अनेक धरोहर और धार्मिक स्थल बने हुए हैं.
इनमें से महल, परकोटा, क़िला, सुंरगें, पहाड़ी कुआं, तालाब, छतरियां, हनुमान मंदिर, हवेलियां, दरगाह, मस्जिद, दीपापुरी महाराज का आश्रम और धुणा प्रमुख स्थल हैं. मध्यकाल में यह क़स्बा, नागौर, अजमेर, बयाना से मुलतान तक व्यापारिक मार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ था. कई युद्धों का साक्षी होने के कारण इसे रणस्थली के रूप में भी जाना जाता था. कस्बे में स्तिथ समन दीवान दरगाह में प्रतिवर्ष उर्स लगता जिसमे देश के विभिन्न प्रांतों से जायरीन आते है और अपनी इच्छा की मन्नत मांगते है. यहा स्तिथ दरगाह मस्जिद हवेलियों पर स्तिथ कलाकृतियों आदि में पौराणिक काल के इतिहास का परिचय देता है. कस्बे में स्तिथ समन दीवान दरगाह इसकी उदाहरण भी देखा जा सकता है, कस्बे में दीपापुरी महाराज का आश्रम ओर धुना भी बड़ी खाटू कस्बे के चार चांद लगाते है .
खाटू कला को अब बड़ी खाटू नाम से जाना जाएगा
बड़ी खाटू के नाम को लेकर पिछले कई दिनों से यहां निवास करने वाले निवासियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि अलग-अलग दस्तावेजों में बड़ी खाटू, खाटू, खाटू कला, खाटू कलान, बरी खाटू, खातु बड़ी, खाटू बड़ी, खाटू कलां, खातून कला, बड़ीखाटू, बड़ोडी खाटू सहित कई मिसिंग नामों से जाना जाता था. जिस कारण से दस्तावेज की प्रक्रिया पूरी करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता था लेकिन अब बड़ी खाटू के नाम से ही सभी दस्तावेज अंकित होंगे तथा कस्बे को राजस्व रिकॉर्ड में बड़ी खाटू के नाम से जाना जाएगा. वर्षों से बड़ी खाटू की पहचान अलग-अलग नाम से दर्ज की गई है. रेलवे स्टेशन पर केवल खाटू लिखा हुआ है जबकि पटवार मंडल पर खाटू कलां दर्ज है. इसी प्रकार पुलिस थाने में खाटू बड़ी लिखा हुआ है. जिस कारण से अलग अलग प्रकरणों में अलग अलग नाम परेशानी का कारण बन जाते हैं.
विकास की कमी है यहां
कस्बे में विकास के दृष्टिकोण से देखा जाये तो हालात विकट है क्योंकि यहा के वाशिन्दे आज भी मूलभूत सुविधाओं से बहुत दूर नजर आ रहे है. कस्बे में स्तिथ रेलवे स्टेशन का जुड़ाव तो देश सभी हिस्सों से है लेकिन खाटू स्टेशन पर ट्रेनों का ठहराव नहीं होता, जिसको लेकर ग्रामीणों द्वारा अनेक बार मांग भी की जा चुकी है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते आज तहसील का एकमात्र रेलवे स्टेशन पर सुविधाओं की कमी है. बड़ी खाटू रेलवे स्टेशन के विस्तार होने से यहा निकलने वाले लाइम स्टोन उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है. 11 हजार से अधिक मतदाताओं वाली ग्राम पंचायत में अनेक मुलभुत सुविधाओं की कमी है कस्बे में पानी की किल्लत सहित जगह जगह गंदगी के ढेर नजर आ जाते है. स्थानीय निवासियों द्वारा कस्बे को नगरपालिका, उप तहसील बनाने की मांग समय समय पर उठाई जा चुकी है.
Reporter - Damodar Inaniyan
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