नागौर में एक तिरंगे को तरसता रहा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मारक, किसी ने नहीं ली सुध
Nagaur News : आजादी का सपना साकार करने में अपना सब कुछ देश के लिए न्योछावर करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मारक गांधी चौक एक अदद तिरंगे को तरसता रह गया तो वहीं दूसरी ओर आजादी के दीवानों की याद में बनाया शहीद स्मारक भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है.
Nagaur, Merta : आजादी का सपना साकार करने में अपना सब कुछ देश के लिए न्योछावर करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मारक गांधी चौक एक अदद तिरंगे को तरसता रह गया तो वहीं दूसरी ओर आजादी के दीवानों की याद में बनाया शहीद स्मारक भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है. आज जहां पूरा देश 77 वां स्वतंत्रता दिवस मना कर अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा है ऐसे में मेड़ता शहर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद में स्थापित गांधी चौक और रेन बाईपास पर शहीदों की याद में बनाया गया शहीद स्मारक पर शासन प्रशासन द्वारा राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर भी तिरंगा नहीं फहराना प्रशासनिक इच्छा शक्ति पर सवालिया निशान लगा रहा है.
स्मारक परिसर में चारों ओर कटीली घास
मेड़ता में वर्ष 2019 में बनाया गया आजादी के दीवानों का यह स्मारक आज भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है. शहीद स्मारक परिसर में चारों ओर कटीली घास और जर्जर होती दीवारें निर्माण कार्य की पोल खोल रही है.शहीद ए आजम भगत सिंह ,राजगुरु ,सुभाष चंद्र बोस,अशफाक खां सहित कई आजादी के दीवानों का स्मारक आज 77 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक अदद तिरंगे को तरसते रह गए. प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही कहें या उनके लिए राष्ट्रीय पर्व मनाना एक मजबूरी बनता जा रहा है जिसके चलते अधिकारी गण केवल मात्र अपने ही कार्यालय में ध्वजारोहण कर समारोह स्थल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं.
दिखाया आजादी का सपना
देश को गुलामी से आजादी का सपना दिखाने वाले और आजादी के सपने को पूरा करने में अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वाले शहीदों की याद में बनाए गए स्मारको पर ध्वजारोहण नही करना प्रशासनिक इच्छा शक्ति पर सवाल या निशान लग रहा है जबकि मेड़ता के मेला मैदान स्थित जुगी झोपड़ियां भी आज तिरंगे के रंग में रंगी नजर आई. या यूं कहूं कि आजादी के इस पावन पर्व पर प्रशासन द्वारा गांधी चौक और शहीद स्मारक पर ध्वजारोहण नहीं करना वीर शहीदों का अपमान ही नहीं बल्कि मेड़ता में राष्ट्रीय पर्व का आयोजन मात्र औपचारिकता बनकर रह गया है.
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