धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं राजस्थान के ये 5 दुर्लभ जीव, अगर नहीं बचाया, तो फोटो में देखेगी आने वाली पीढियां

Rajasthan 5 Most Endangered Animals: राजस्थान में 5 प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं, जो चिंता का विषय है. यदि हम नहीं बचाएंगे, तो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को वन्यजीवों को केवल तस्वीरों में ही दिखा पाएंगे. यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.

अंश राज Oct 02, 2024, 12:58 PM IST
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गोडावण

गोडावण, एक विलुप्तप्राय प्रजाति, की संख्या अब केवल 40 से 100 के बीच बची है. प्रधान मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जीवी रेड्डी ने कहा कि वन विभाग पिछले 7-8 वर्षों से इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए गंभीरता से विचार कर रहा है, लेकिन मात्र विचार से काम नहीं चलेगा, जमीनी स्तर पर कार्रवाई की आवश्यकता है. उनके शब्दों में कहें तो - "विचार ज्यादा और काम कम होगा तो कैसे काम चलेगा?" यह बयान वन्यजीव संरक्षण में तेजी लाने और वास्तविक कार्रवाई करने की आवश्यकता को दर्शाता है.

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राजस्थान के बाघ

राजस्थान में बाघों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है, जो अब 60-70 के बीच है. बघेरे जैसी अन्य प्रजातियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है. हालांकि, वन विभाग की अथक मेहनत के बावजूद बाघों की संख्या में वृद्धि धीमी है, लेकिन, जंगलों पर बढ़ते मानव दबाव और अतिक्रमण ने वन विभाग के लिए चुनौतियाँ बढ़ा दी हैं. आबादी के बढ़ते दबाव के कारण लोग जंगलों में अतिक्रमण कर रहे हैं, जिससे वन्यजीवों के आवास को खतरा हो रहा है. वन संरक्षण में आमजन का सहयोग न मिलने से वन विभाग को अपनी योजनाओं को अमल में लाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. इससे वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

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राजस्थान का चींटीखोर

राजस्थान में चींटीखोर (पेंगोलिन) की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है. पहले यहाँ आसानी से दिखने वाली यह प्रजाति अब कहीं नहीं दिखाई देती. विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी कमी और विलुप्तता के कारण इसे लुप्त प्रजाति के रूप में माना जा रहा है.

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राजस्थान में सियागोश

राजस्थान में सियागोश (केरकल) की संख्या अलार्मिंग रूप से घटकर 50-80 तक पहुंच गई है, जिससे इसकी विलुप्तता का खतरा मंडरा रहा है. राज्य की वाइल्डलाइफ को बचाने के लिए तत्काल संरक्षण प्रयास आवश्यक हैं.

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राजस्थान में चौसिंगा की संख्या

राजस्थान में चौसिंगा की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है. 2015 में हुई गणना में इसकी संख्या 300 थी, लेकिन तब से इसकी स्थिति और भी खराब हो गई है. .की संख्या में यह गिरावट चिंताजनक है और इसके संरक्षण के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है.

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