Rajasthan Congress : राजस्थान में वैशाख के महीने में भी भले ही सूर्य की तपिश ना देखने को मिल रही हो, लेकिन राजस्थान के सियासी मौसम में तपिश दिनों दिन बढ़ती जा रही है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी योजनाओं के बल पर चुनावी मैनेजमेंट का फंडा तैयार कर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी अभी भी सचिन पायलट के मसले की उधेड़बुन में फंसी हुई है.


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दरअसल अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन कर सचिन पायलट ने राजस्थान के सियासी मौसम में नए पश्चिमी विक्षोभ की एंट्री करवा दी है, जिसके बाद से कांग्रेस आलाकमान इसे लेकर बेहद गंभीर है, पायलट भी चाहते हैं चार साल से लंबित उनके मसलों का हल अब कम से कम चुनावी साल में तो निकले, लिहाजा ऐसे में दिल्ली दरबार में कवायद तेज है. 


सचिन पायलट के तेवर को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान भी किसी रिस्क के मूड में नहीं हैं, लिहाजा ऐसे में पिछले दिनों दिल्ली में 7 मैराथन बैठकों का दौर चला. जिसमें राजस्थान के मसले, खास कर सचिन पायलट को लेकर चर्चा हुई. यह बैठकें पायलट के अनशन के अगले ही दिन यानि 12 अप्रैल से शुरू हो गई. 


पहली बैठक


खबरों के अनुसार सचिन पायलट के अनशन के अगले ही दिन इस मसले पर आलाकमान की ओर से प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को तलब कर लिया गया. उनसे सवाल पूछा गया कि वक्त रहते सचिन पायलट के अनशन को क्यों नहीं रोका गया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और महासचिव केसी वेणुगोपाल के सामने रंधावा ने अपना पक्ष रखा. जिसमें उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि पायलट ने उनके सामने कभी वसुंधरा सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर एक्शन का मसला नहीं उठाया, ना ही उन्होंने अनशन करने से पहले इस कोई जानकारी दी, जिसके बाद उन्होंने सन्देश देने के लिए पायलट पर कार्रवाई की मांग की.


दूसरी बैठक


इसके अलगे ही दिन यानि 13 अप्रैल को फिर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर इसे लेकर बैठक हुई, इस बैठक में भी केसी वेणुगोपाल मौजूद रहे. हालांकि किसी वजह से बैठक जल्द ख़त्म हो गई.


तीसरी बैठक


उसी दिन शाम को फिर बैठक हुई, इस बैठक में रंधावा ने सचिन पायलट के अनशन में मदद करने वाले कुछ विधायकों का भी ब्यौरा आलाकमान को सौंपा. जिसमें बताया गया कि आखिर कैसे उपस्थित ना होकर भी कई विधायकों ने अनशन को सफल बनाने के लिए मदद की. किस तरह गाड़ियां भर-भर कर उनके विधानसभा क्षेत्रों से लोगों को धरनास्थल पर भेजा गया. जिसके बाद इस मसले पर राहुल से चर्चा की बात कही गई.


चौथी बैठक


इसके बाद रंधावा ने राहुल गांधी से मुलाकात कर उनके सामने पूरी रिपोर्ट पेश की. रंधावा ने कहा कि अगर सचिन को कोई परेशानी थी तो प्रभारी होने के नाते पहले मेरे सामने अपनी बात रखनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. 


पांचवी बैठक


राहुल से बैठक के बाद इस मसले को सुलझाने के लिए इस मामले में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की एंट्री हुई, कमलनाथ और सचिन पायलट के रिश्ते यूपीए सरकार के दौरान के हैं, जब दोनों ही मनमोहन सरकार में मंत्री थे, लिहाजा ऐसे में कमलनाथ ने केसी वेणुगोपाल से मुलाकात की और उन्हें इस मसले को सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.


छठी बैठक


 केसी वेणीगोपाल के बाद कमलनाथ ने रंधावा से मुलाकात कर सभी पहलुओं को समझने की कोशिश की. रंधावा ने राहुल और वेणुगोपाल के सामने जो पहलु रखे वही कमलनाथ के सामने भी रखे.


सातवीं बैठक


वेणुगोपाल और रंधावा से बैठक के बाद कमलनाथ सचिन पायलट की भावना भी जानना चाहते थे, लिहाजा ऐसे में शाम को कमलनाथ और पायलट की भी मुलाकात हुई, जिसमें पायलट ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उन्होंने अपनी पार्टी का विरोध नहीं किया है, बल्कि उन्होंने पिछली सरकार में हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता से किया वादा पूरा करने की मांग की, साथ ही इस अनशन के लिए मैंने पार्टी फोरम का इस्तेमाल नहीं किया. 


कहा जा रहा है कि इस बैठक में सचिन पायलट ने भी खुल कर अपना सारा पक्ष रखा. ऐसे में माना जा रहा है कि आगामी दिनों में कुछ और बैठकों का दौर देखने को मिल सकता है. साथ ही अगर जरुरत पड़ी तो कमलनाथ सीएम गहलोत से भी मुलाकात कर सकते हैं. वहीं जिन मुद्दों को सचिन पायलट लगातार उठा रहे हैं, उसे लेकर भी सीएम गहलोत ने एक विस्तृत रिपोर्ट रंधावा के जरिए आलाकमान को भिजवाई है, जिसमें उन मसलों के मौजूदा स्टेटस कि भी जानकारी दी गई है.


कांग्रेस आलाकमान हर हाल में विधानसभा चुनाव से पहले गहलोत पायलट विवाद का एक सम्मानजनक हल निकलना चाहता है. ताकि चुनाव में कांग्रेस अपने पूरे दमखम के साथ उतर सके. जैसा कि राहुल पायलट और गहलोत दोनों को पार्टी का एसेट बता चुके हैं ऐसे में इस चुनाव में पार्टी दोनों को एसेट के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है.


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