राजस्थान से अलग भीलिस्तान की मांग पर क्या होगा कांग्रेस-बीजेपी का रूख, समझें गणित
राजस्थान(Rajasthan) में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव ( Rajasthan Assembly Election 2023) होने हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( Ashok Gehlot)नई जिलों की घोषणा कर बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेल चुके हैं. लेकिन इस बीच अलग भीलिस्तान (Bhilistan) राज्य का मुद्दा गर्माता दिख रहा है. गुजरात (Gujarat)से शुरु हुई ये मांग राजस्थान में आगामी चुनावों पर क्या असर डाल सकती है, समझातें हैं आपको...
Rajasthan Politics : राजस्थान में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नई जिलों की घोषणा कर बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेल चुके हैं. लेकिन इस बीच अलग भीलिस्तान राज्य का मुद्दा गर्माता दिख रहा है. गुजरात से शुरु हुई ये मांग राजस्थान में आगामी चुनावों पर क्या असर डाल सकती है, समझातें हैं आपको...
गुजरात में अलग आदिवासी राज्य बनाने की मांग लंबे वक्त की जाती रही है. जिसे एक बार फिर से आम आदमी पार्टी के डोडियापाड़ा से विधायक चैतर वसावा ने बुलंद किया है. वसावा के मुताबिक गुजरात के साथ ही राजस्थान-मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में अलग भीलिस्तान राज्य बनाने के लिए आंदोलन होगा.
अपनी बात को समझाने के लिए ट्वीटर पर पर एक मैप भी वसावा ने शेयर किया. जिसे अंग्रेजों के जमाने का बताया गया. वसावा के मुताबिक पहले आदिवासी समाज के लिए अलग भीलिस्तान प्रदेश था. जिसमें गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाके आते थे.
चैतर वसावा के मुताबिक आदिवासियों के जल-जगंल और जमीन के अधिकार छीने जा रहे हैं. आदिवासी समाज को कुछ नहीं मिल रहा है. ऐसे में संविधान की अनुसूची पांच का उल्लंघन हो रहा है. इसलिए भीलिस्तान की मांग तेज की जाएगी.
आपको बता दें कि चैतर वसावा को आम आदमी पार्टी की तरफ से हाल ही में राजस्थान का सह प्रभारी भी बनाया गया था. चैतर पहले आदिवासी नेता छोटू वसावा की पार्टी भारतीय ट्राइबल पार्टी में शामिल थे. आम आदमी पार्टी में शामिल हो गये. हाल ही में चैतर वसावा ने बीजेपी सांसद मनसुख वसावा को सार्वजनिक बहस का चैलेंज दिया था. लेकिन ये बहस टल गयी थी.
भीलिस्तान की मांग का राजस्थान पर क्या असर हो सकता है
राजस्थान के दक्षिणी राजस्थान में भील जनजाति की आबादी बहुत ज्यादा है. जिसमें भी उदयपुर के बाद बांसवाड़ा, डूंगरपुर, राजसमंद वो जिलें है जहां आदिवासियों की जनसंख्या बहुत ज्यादा है. राजनीतिक गणित की बात करें तो उदयपुर संभाग में 28 सीटें हैं.
उदयपुर संभाग की 28 में से 16 सीटों पर भील जाति के वोटर्स का दबदबा रहता है. ऐसे में इस इलाके में अगर भीलिस्तान का मुद्दा गर्माता है. तो बीजेपी कांग्रेस दोनों की मुश्किल बढ़ सकती है. जिसका आप पार्टी फायदा लेने की कोशिश करेगी. हालांकि अभी तक भीलिस्तान के मुद्दे पर ना तो बीजेपी और ना ही कांग्रेस की तरफ से कोई बयान आया है.
याद दिला दें कि ये भील समाज वहीं हैं, जिन्होनें महाराणा प्रताप के साथ मुगलों के खिलाफ युद्ध किया था. परंपरागत तौर पर तीरंदाज भील समाज बहुत अच्छा योद्धा माना जाता है.