वो 3 बड़े कारण, जिसकी वजह से सचिन पायलट को नई पार्टी बनाने से पीछे खींचने पड़े कदम
Sachin Pilot New Party : सचिन पायलट ने क्यों नहीं बनाई अपनी नई पार्टी, जानिये वो तीन कारण जो सचिन पायलट के पॉलिटिकल करियर के लिए साबित हो सकते थे घातक
Sachin Pilot New Party : 11 जून की तारीख निकलने के साथ ही कांग्रेस ने बड़ी राहत की सांस ली है. कयास बाजी का दौर तेज था कि सचिन पायलट 11 जून को बड़ा सियासी धमाका कर सकते हैं और अपने पिता की पुण्यतिथि पर नई पार्टी का ऐलान कर सकते हैं, लेकिन 11 जून के साथ ही सारी अटकलें धरी की धरी रह गई. सचिन पायलट ने साफ संकेत दे दिए कि वह कांग्रेस में रहेंगे. चलिए समझते हैं कि आखिर सचिन पायलट ने कांग्रेस से अपनी राह अलग क्यों नहीं की.
दरअसल सियासी पंडितों का कहना है कि अगर सचिन पायलट अपनी नई पार्टी बनाते तो उन्हें और कांग्रेस दोनों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता. जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलता. साथ ही कम समय में पार्टी बनाना संभव नहीं था,
पहला कारण- वक्त की कमी
सचिन पायलट अगर कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाते तो उसके लिए अब थोड़ी देर हो चुकी थी. विधानसभा चुनाव के लिए अब कम समय बचा है, लिहाजा ऐसे में नई पार्टी बनाना और उसका पूरा संगठन तैयार करने में वक्त लगता. साथ ही चुनाव आयोग में नई पार्टी का आवेदन कर पूरी प्रक्रिया पूरी करने में भी वक्त लगता. ऐसे में सचिन पायलट के लिए यह फैसला घातक साबित हो सकता था.
दूसरा कारण राजस्थान में सफल नहीं रही तीसरी पार्टी
राजस्थान देश के गिने-चुने राज्यों में से है, जहां तीसरा मोर्चा सफल नहीं हो पाया है यानी भाजपा और कांग्रेस के अलावा कोई अन्य पार्टी पिछले 35 सालों में सफल नहीं हो सकी है. ऐसे में नई पार्टी बनाना सचिन पायलट के लिए एक बड़ा पॉलिटिकल डैमेज हो सकता था.
तीसरा कारण- लोगों के छिटकने का डर
सचिन पायलट को राजस्थान की सियासत में कदम रखें 25 से ज्यादा साल हो चुके हैं, इस दौरान पायलट केंद्र में मंत्री के साथ-साथ राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और साथ ही डिप्टी सीएम की भी भूमिका निभा चुके हैं. सचिन पायलट के ज्यादातर समर्थक कांग्रेसी हैं ऐसे में अगर सचिन पायलट नई पार्टी बनाते तो उनके समर्थक उनसे छिटक सकते थे. ऐसे में नई पार्टी बनाना सचिन पायलट के लिए एक बड़ा नुकसानदाय साबित हो सकता था.
गौरतलब है कि सचिन पायलट की पूर्वी राजस्थान में पकड़ मानी जाती है साथ ही कहा जाता है सचिन पायलट के गुर्जरों के साथ मीणा और जाट समाज में भी प्रभाव है और यही वोट बैंक कांग्रेस का भी माना जाता है लिहाजा ऐसे में अगर पायलट नहीं पार्टी बनाते हैं पूर्वी राजस्थान में एक स्प्लिट देखने को मिलता. जिसका खामियाजा ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि सचिन पायलट पॉलिटिकल करियर पर भी देखने को मिलता.
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