world sparrow day: आज विश्व गौरेया दिवस. इस खास अवसर कुछ खास है आपके लिए. इन्हें हमे सबको मिलकर बचाना है. तो आईए कुछ अच्छा करते हैं. हर साल गौरेया दिवस पर गौरेया के संरक्षण को लेकर लाख दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इस पक्षी को बचाने के कोई खासे प्रयास नहीं किए जाते हैं.


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एक समय में दीवारों की दरारों में, बस और रेलवे स्टेशन की छतों में और घरों के आंगन में चहचहाती गौरैया सामान्य तौर पर नजर आ जाती थी.लेकिन अब धीरे-धीरे शहरों से गौरेया गायब होने लगी हैं. गौरैया के संरक्षण के लिए कई अभियान चलते हैं. बावजूद इसके गौरैया की तादाद लगातार कम होती जा रही है.


 लेकिन प्रतापगढ़ जिले का एक थाना ऐसा भी है जो गौरेया का घर बना हुआ है. जिले के रठांजना थाने में आज से करीब 13 साल पहले थाने में कार्यरत थाना अधिकारी प्रवीण टांक की पहल पर थाने में गौरैया के लिए विशेष घरौंदे बनाए गए थे. इनकी इस अनूठी पहल ने थाने में गौरैया की खूबसूरत चहचाहट को जिंदा कर दिया.


आज भी रठांजना थाने में गौरेया के घर बने हुए हैं. यह घर इस थाने की खूबसूरती को बड़ा ही रहे है साथ ही साथ गौरेया के संरक्षण का भी काम कर 13 साल बीतने के दौरान कई थाना अधिकारी बदले लेकिन प्रवीण टांक द्वारा शुरू की गई मुहीम आज भी ज़िंदा है। प्रतापगढ़ जिले में अब यह थाना गौरेया घर के नाम से जाना जाता है.


13 साल पहले रठांजना में थानेदार रहे प्रवीण टाक ने अपने निजी खर्च पर थाने के अंदर सागवान की लकड़ी से गौरैय के लिए घर बनवाकर,पक्षियों के लिए विशेष अभियान चलाया था. आज भी 13 साल पहले लगे पक्षियों के घर गौरैया से सरोबार है. गौरैया मनुष्य के साथ सालों से रह रही है,लेकिन अब कुछ दशकों से गौरैया शहरों के इलाकों में दुर्लभ पक्षी बन गई हैं.


 उनकी आबादी में भी भारी गिरावट आई है. हालांकि, गांव के लोग अभी भी गौरैया की आवाज सुनकर महसूस कर रहे हैं. लेकिन शहरी इलाकों में समस्या कुछ ज्यादा ही गंभीर है.


13 साल पहले जब दाने पानी की तलाश में गौरेया थाने के बाहर लगे परिंडों में पंहुचती तो उन्हें देख और उनकी चचाहट के सुकन से प्रभावित हो कर प्रवीण टांक ने गौरेया घर बनवा कर पूरे थाने में इन घरों को लगवा दिया जहां आज भी गौरेया रहती है.


सामान्य रूप से रहने में बाधा बन गई. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, खेतों में कृषि रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग, टेलीफोन टावरों से निकलने वाली तरंगें,घरों में सीसे की खिड़कियां इनके जीवन के लिए प्रतिकूल नहीं हैं. साथ ही जहां कंक्रीट की संरचनाओं के बने घरों की दीवारें घोंसले को बनाने में बाधक हैं. 


वहीं, घर गांव की गलियों का पक्का होना भी इनके जीवन के लिए घातक है.क्योंकि ये स्वस्थ रहने के लिए धूल स्नान करना पसंद करती हैं जो नहीं मिल पाता है. ध्वनि प्रदूषण भी गौरैया की घटती आबादी का एक प्रमुख कारण है.


इस तरह इनकी घटती आबादी को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने 2002 में इसे लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल कर दिया. इसी क्रम में 20 मार्च 2010 को विश्व गौरैया दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया. इसके बाद इनके संरक्षण और लोगों को जागरूक किया जाने लगा.


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