Rajsamand News: सावन भादो माह में मेवाड़ की प्रसिद्ध गवरी धार्मिक नृत्य खेली जाती है. प्रसिद्ध गवरी धार्मिक नृत्य को देखने के लिए एक गांव से दूसरे गांव में ग्रामीण पहुंचते हैं. मेवाड़ में गवरी का इतना क्रेज रहता है कि जिस गांव में गवरी खेली जाती है उस गांव के लोग ज्यादातर अपना काम छोड़ वहां पहुंचते हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

धार्मिक गवरी नृत्य के कलाकारों को देखने के लिए एक जगह पर लगभग 1500 से 2000 तक के लोग जुट जाते हैं. वहीं गवरी करने वाले कलाकार का कहना है कि गवरी को भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह माना जाता है. यह भी बताया गया है कि मेवाड़ क्षेत्र में किये जाने वाले गवरी नृत्य भील जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य है.


गवरी नृत्य के दौरान इसमें मांदल और थाली के प्रयोग के कारण इसे राई नृत्य के नाम से जाना जाता है. सबसे खास बात यह है कि गवरी खेलने वालों की टीम में महिला कलाकार कोई भी नहीं होती है. लेकिन पुरूष महिला की वैशभूषा में जरूर नजर आते हैं.


गवरी नृत्य करने वालों की टीम में सभी पुरूष होते हैं. मेवाड़ का प्रसिद्ध गवरी धार्मिक नृत्य के बारे में कुछ विस्तार से जानना चाहा तो राजसमंद के गाडरियावास गांव में खेली जा रही गवरी के बची में पहुंच. इस दौरान गवरी कलाकार किशन और ग्रामीण दर्शक नर्बदा शंकर पालीवाल का कहना है कि गवरी खेलने वाले सभी सदस्यों को लगभग सवा महीने तक कठोर नियमों का पालन करना होता है. 


जैसे पैरों में चप्पल जूते नहीं पहना, हरी सब्जी का सेवन नहीं करना. सवा महीने तक बिस्तर को त्यागना और मांस मदिरा का सेवन नहीं करना सहित कई नियमों का पालन करना होता है. गवरी कलाकार किशन का कहना है कि गवरी को भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह से जोड़कर देखा जाता है.


ग्रामीण दर्शक नर्बदा शंकर पालीवाल बताते हैं कि इस प्रथा का सिर्फ एक ही मकसद होता है कि गांव में खुशहाली बनी रहे. बताया जाता है कि इस परम्परा के अनुसार आदिवासी समाज लगभग सवा माह तक भगवान शंकर और माता पार्वती की आराधना करते हैं. बताया यह भी जाता है कि भादो माह में भगवान शंकर के साथ माता पार्वती धरती पर भ्रमण के लिए आती हैं. आदिवासी भील समाज में माता पार्वती को बहन बेटी के रूप में मानते हैं, जिसके चलते गवरी धार्मिक नृत्य में कई नाट्यों के द्वारा आदिवासी भील समाज से जुड़े लोग उन्हें प्रसन्न करने के लिए गवरी खेलते हैं और सवा महीने तक कठोर नियमों का पालन करते हैं.


ये भी पढ़ेंः Rajasthani Sanganeri Print: 16वीं शताब्दी से जुड़ा है सांगानेरी प्रिंट, राज परिवारों के लिए किया गया था शुरू, मोम-जड़ी बूटियों का होता था प्रयोग


राजस्थान की ताज़ा ख़बरों के लिए ज़ी न्यूज़ से जुड़े रहें! यहाँ पढ़ें Rajasthan News और पाएं Latest Rajasthan News हर पल की जानकारी। राजस्थान की हर खबर सबसे पहले आपके पास, क्योंकि हम रखते हैं आपको हर पल के लिए तैयार। जुड़े रहें हमारे साथ और बने रहें अपडेटेड!