Rajsamand News: कन्हैयालाल हत्याकांड के दोनों जाबांजों को अब तक नहीं मिली सुरक्षा, डर के साए में जीने को हैं मजबूर
Rajsamand News: राजस्थान के राजसमंद जिले में हुए कन्हैयालाल हत्याकांड मामले में आरोपियों को पकड़वाने के लिए जिन दो जांबाजों ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की, उन्हें आज डर के साय में जीना पड़ रहा है. दोनों को सरकारी नौकरी तो मिली, लेकिन सुरक्षा अभी तक नहीं.
Rajasthan News: कन्हैयालाल हत्याकांड को दो साल पूरे हो चुके हैं. इन दो सालों में उदयपुर के कन्हैयालाल के परिवार के अलावा भी कई परिवारों ने बहुत कुछ देखा और सहन किया. बता दें कि इस हत्याकांड का गवाह कन्हैयालाल की दुकान पर काम करने वाला एक व्यक्ति को उस घटना ने पैरालिसिस का शिकार बना दिया, तो वहीं दूसरे हैं राजसमंद जिले के वो दो जांबाज युवा, जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर कन्हैयालाल के आरोपियों को पकड़वाने में पुलिस की मदद की थी. यह दोनों जांबाज युवा आज भी डर के साए में जीने को मजबूर है. इन्हें अभी तक कोई सुरक्षा नहीं मिली है.
पूर्ववर्ती गहलोत सरकार में मिली नौकरी
बता दें कि भीम के पूर्व विधायक सुदर्शन सिंह रावत की पहल पर पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने इन दोनों को नौकरियां दिलवाई थी. इन्हें सुरक्षा के लिए हथियार लाइसेंस का वादा भी किया गया था. जानकारी के अनुसार, प्रह्लाद सिंह चुंडावत को उपखंड कार्यालय देवगढ़ में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पद पर और शक्ति सिंह चुंडावत को तहसील कार्यालय देवगढ़ में कनिष्ठ लिपिक के पद पर ज्वाइनिंग मिल गई, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से हथियार के लाइसेंस दोनों को अब तक नहीं मिल पाए. आज दोनों को सरकारी नौकरी मिलने से आर्थिक संबल तो मिला है, लेकिन इनके मन में अज्ञात डर बना हुआ है.
सुरक्षा के लिहाज से नहीं मिला कुछ
शक्ति सिंह और प्रहलाद ने बताया कि कन्हैयालाल के हत्यारों को पकड़वाने का उन्हें गर्व है. उन्होंने बताया कि सरकार की ही सुरक्षा एजेंसियों ने यह माना कि मुझे व मेरे साथ प्रह्लाद को भी सुरक्षा मिलनी चाहिए और हथियार लाइसेंस भी आवश्यक बताया था फिर सुरक्षा, हथियार लाइसेंस का वादा भी किया था. लेकिन आज तक उन्हें सुरक्षा के लिहाज से कुछ नहीं मिला. आतंकी रियाज और गौस मोहम्मद को पकड़वाने के लिए हमने हमारी जान की बिलकुल भी परवाह नहीं की, लेकिन इसके बाद प्रशासन या सरकार तक को हमारी कोई फिक्र नहीं है. तभी तो ना सुरक्षा मिली ना ही हथियार लाइसेंस. सरकारी नौकरी मिलने से तो आर्थिक संबल मिला, लेकिन अज्ञात डर हमेशा मन में रहता है.
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