Khatu Shyam Ji: माना जाता है कि बाबा श्याम के दरबार से कभी भी कुछ मांगा हुआ खाली नहीं जाता है. इस खाटूवाले से मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है. इसी के चलते होली से पहले आने वाली आमलकी एकादशी पर बाबा श्याम के दरबार में भक्तों का तांता लगता है. 


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यहां आमलकी एकादशी पर लगे मेले में पूरी दुनिया से लाखों लोग आते हैं और बाबा श्याम के मंदिर में धोक लगाते हैं. आमलकी एकादशी पर बाबा का विशेष पूजा की जाती है. इसके लेकर बाबा के दरबार और खाटू नगरी को दुल्हन की तरह सजा दिया जाता है. आमलकी एकादशी पर बाबा की पूजा की एक पुरानी कथा है. 


भीम के पोते और घटोत्‍कच के बेटे बाबा श्याम 
कहते हैं कि जब लाक्षागृह की घटना से बचने के लिए पांडव वन में भटक रहे थे, तब वे हिडिंबा नाम की एक राक्षसी से मिले. वहीं, हिडिंबा भीम को देखते ही उससे प्यार करने लगी और इसके बाद मां कुंती ने दोनों की शादी करवा दी. दोनों को एक बेटा हुआ, जिसका नाम घटोत्‍कच रखा गया. बता दें कि बाबा श्याम  भीम के पोते और घटोत्‍कच के बेटे थे, जिसका नाम बर्बरीक था. 


बर्बरीक देवी का उपासक थे और उनकी पूजा से उन्हें तीन दिव्‍य बाण मिले. इन बाणों में इतनी शक्ति थी, कि इनका वार कभी खाली नहीं जाता था और बर्बरीक को कोई हरा नहीं सकता था. 


 साधु ने मांगा शीश
एक बार कि बात है जब महाभारत का युद्ध हो रहा था तो बर्बरीक अपने एक बाण से पूरा युद्ध को बार में ही खत्म करने जा रहे थे. वहीं, रास्ते में बर्बरीक को भगवान कृष्ण मिल जाते हैं, जो एक ब्राह्मण बनकर आए थे. उन्होंने वहीं बर्बरीक से उसका सिर दान में मांग लिया, क्योंकि भगवान कृष्ण जानते थे कि बर्बरीक एक बाण से ही युद्ध समाप्‍त कर सकता है.हालांकि बर्बरीक ये बात जान चुका था कि शीश मांगने वाले कोई साधारण साधु नहीं हैं. 


कटे सिर से बाबा श्याम ने पहाड़ी से देखा युद्ध
इसके बाद ही बर्बरीक ने साधु से अपने असली रूप में आने की विनती की. इस पर भगवान कृष्ण को देखते ही बर्बरीक ने अपना शीश उन्हें दान में दे दिया और उसने महाभारत युद्ध देखने की इच्छा रखी. इसके चलते भगवान कृष्ण ने उनका शीश युद्ध के स्थान पर एक ऊंची पहाड़ी पर रख दिया और वहां से बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा. लोगों का कहना है कि उस वक्त भगवान कृष्ण ने ही बर्बरीक के कटे सिर का वरदान दिया था कि वह श्‍याम नाम से पूजा और जाना जाएगा.  


इसके बाद खाटू नगरी में बाबा श्याम का शीश मिला, जिसके बाद ये खाटू श्‍याम के नाम से पूजा जाने लगा. जिस बाबा श्याम का शीश मिला उस दिन फाल्‍गुन के महीने की शुक्‍ल पक्ष की एकादशी थी इसलिए तब से होली के पहले आने वाली एकादशी को खाटू धाम में मेला लगता है. 


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