Mount Abu: माउंट आबू के गांधी वाटिका उद्यान में लगी गांधी जी की प्रतिमा हो या फिर नक्की झील के पीछे के भाग की तरफ में लगी गांधी जी की दांडी यात्रा का स्टैचू.दोनों ही अपने लगने के बाद दोनों ही निरंतर विवादों में रहे है.स्थिति यह आन पड़ी है की नक्की झील स्थित गांधी वाटिका में गांधी जी की प्रतिमा से उनके चेहरे का हूबहू ही मिलान नहीं होने के कारण उसे चारों ओर पर्दे में ढक कर रखना पड़ रहा है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

चश्मा व लाठी को किसी ने क्षतिग्रस्त किया 
तो अब गत वर्ष 2 अक्टूबर को गांधी जी की दांडी यात्रा के स्टैचू के अनावरण के बाद कुछ समय के उपरांत गांधी जी की हाथ की कलाई चश्मा व लाठी को किसी ने क्षतिग्रस्त कर दिया था.मामला प्रशासन के संज्ञान में आने के बाद उसमें कुछ विशेष परिवर्तन तो नहीं हुआ. अलबत्ता प्रशासन ने उसे मूर्ति को ही ढककर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी.


प्रतिमा का पर्दा भी फिर से फट गया
अब रविवार को पुनः ढकी हुई प्रतिमा का पर्दा भी फिर से फट गया है और प्रतिमा पहले के जैसे गांधी जी के टूटे हुए हाथ की कलाई चश्मा व बिना लाठी के दिखाई दे रही है.यह स्थिति दर्शाती है कि हम अपने महापुरुषों की आत्मकथा स्टैचू व मूर्तियों को लगाने में तो अपनी प्राथमिकताएं तय कर लेते हैं.



सवाल?
लेकिन उनके समय गुजर जाने के बाद बाकी बचे हुए पीछे समय में उनकी सार संभाल के प्रति पूरी तरह से लापरवाह रहते हैं यह उन सभी महापुरुषों की मूर्तियां व उनके ऐतिहासिक योगदान के साथ एक तरह का माहौल नहीं और क्या है.क्या हमें गांधीजी सिर्फ 2 अक्टूबर वह 30 जनवरी को ही याद करने का एक विषय बन गए हैं. उसके बाद पीछे की स्थिति में हमारा योगदान क्या.


यह भी पढ़ें:शिक्षा मंत्री ने हॉमलोन से परेशान पीड़िता का चुकाया पैसा,घर नीलाम होने से बचाया