Sriganganagr: भागवत कथा के समापन पर, कृष्ण सुदामा की मित्रता के प्रसंग पर बहे भक्तों के आंसू
श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ विधानसभा के जैतसर में चल रही भागवत कथा के समापन पर कथावाचक ने कहा कि ``स्व दामा यस्य स: सुदामा`` अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है.भागवत कथा के दौरान श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन किया गया.
Sriganganagar: श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ विधानसभा के जैतसर में चल रही भागवत कथा के समापन पर सुंदर झांकियों ने सबका मन मोहा. श्रीकृष्ण गौशाला जैतसर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के समापन पर कथावाचक मनोजानंद शास्त्री ने कहा कि मनुष्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है, तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्त रूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं. गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जब कि संत सद्भाव में जीता है, यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ. संतोष सबसे बड़ा धन है.
भागवत कथा के दौरान श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन किया गया. कथावाचक ने कथा के दौरान श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे. "पानी परात को हाथ छूवो नाहीं, नैनन के जल से पग धोये, श्रीकृष्ण ने अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए के द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटकर जल भरे नेत्रों से सुदामा का हालचाल पूछने लगे. उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती. कथावाचक ने सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. कथावाचक ने कहा कि ''स्व दामा यस्य स: सुदामा'' अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है.
सुदामा की मित्रता भगवान के साथ नि:स्वार्थ थी, उन्होंने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया. भागवत कथा के अंतिम दिन कथा में सुदामा चरित्र का वाचन हुआ, तो मौजूद श्रद्धालुओं के आखों से अश्रु बहने लगे. उन्होंने कहा श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं, जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की. कथा समापन के दौरान उद्योगपति नागर गर्ग, भामाशाह राजकुमार सारस्वत, राजेंद्र सेतिया, सुरेश मौर, ओमप्रकाश चुघ, दीनबंधु शर्मा, सोहनलाल मंगवाना, अशोक गोयल, मोहित शर्मा, सुशील सारस्वत, वेदप्रकाश सेतिया, सुरेंद्र शर्मा, सुभाष चन्द्र हर्ष ने मंगल आरती में भाग लिया.
Reporter - Kuldeep Goyal
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