Science News: प्रकृति से जब जब खिलवाड़ किया जाता है तो वह अक्सर बिना सूचनाएं दिए अपनी अहमियत बताती है. हाल ही में कुछ वॉलंटियर्स इंग्लैंड के जंगलों में चमगादड़ों की खोज में निकले थे.  वो हर पेड़ और उसकी डाली को  ध्यान से देख रहे थे, ताकि ज्यादा से ज्यादा वन्य जीवों के बारे में जानकारियां हासिल कर पाए. तभी उन्हें पेड़ के ऊपर ऐसा जीव दिखा, जो आमतौर पर पानी और जमीन पर पाया जाता है. जहां  उनकी संख्या काफी  ज्यादा थी. जो एक बड़े भौगौलिक परिवर्तन की तरफ संकेत कर रहा है. इस घटना के बाद अब वैज्ञानिक ये पता लगाने की कोशिश कर रहे कि  आखिर ये जीव इतनी ऊंचाई पर चढ़े कैसे थे?


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 इस अजीब गरीब घटना ने पूरी दुनिया के जीव  वैज्ञानिकों को सकते में डाल दिया है. जिसके बाद वह यह पता लगाने की कोशिश कर रहे है कि . ये मेंढक आखिर इतनी ऊंचाई पर चढ़े कैसे थे?


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3 मीटर की ऊंचाई पर मिले



मामले में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के सीनियर रिसर्चर डॉ. सिलवियु पेट्रोवैन ने कहा कि, ब्रिटेन में नेशनल डॉरमाउस मॉनिटरिंग प्रोग्राम और बैट ट्री हैबिटेट प्रोजेक्ट चल रहा है.  इसी प्रोजेक्ट के दौरान कॉमन टोड्स (मेंढक) के पेड़ों पर होने का पता लगा. आमतौर पर जमीन या पानी में रहने वाले 50 मेंढक पेड़ों के ऊपर बने छोटे घोंसलों या फिर खोखले हिस्सों में मिले. इनकी सामान्यता ऊंचाई जमीन से 1.5 मीटर तक थी, लेकिन एक मेंढक तो 3 मीटर ऊपर मिला. वैसे तो ये प्रोजेक्ट दूसरे जीवों पर था, अगर विस्तार से अध्ययन किया जाए तो ये और ज्यादा ऊपर भी मिल सकते हैं.


भारी होता है शरीर



एक वैज्ञानिक ने बताया कि,मेंढक का शरीर ठीक-ठाक भारी होता है, साथ ही पेड़ भी एकदम सीधे थे, ऐसे में ये समझ नहीं आ रहा कि वो इतने ऊपर कैसे पहुंचे थे. इसके अलावा पानी में रहने वाला यह जीव  तनों और घोंसलों में खास दिलचस्पी नहीं रखता है.  इस वजह से उनके इस विकास ने कई सवाल खड़े किए हैं. ऐसे में  हमें यह सोचने पर मजबूर होना पड़ सकता है कि, आखिर प्रकृति हमें किस नए बदलाव  की पर संकेत दे रहा रही है. 
 
कहीं इंसानों के लिए मुसीबत तो नहीं?



वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ये परिवर्तन ऐसे ही होता रहा, तो आने वाले दिनों में मेंढक पक्षियों की तरह पेड़ के ऊपरी हिस्से में ही मिलेंगे। हालांकि एक सवाल ये भी है कि मेंढकों का ये विकास कहीं इंसानों के लिए नई मुसीबत तो नहीं बनने वाली है?


पेड़ पर घोंसला बनाने वाला मेंढक  



लेकिन एक खास बात यह भी है कि कुछ साल पहले एशिया में इस तरह के मेंढक की यह एकमात्र प्रजाति  पाई गई है, जो कीटों और गर्मी से बचने के लिए घोंसला बनाता है. इसे‘राकोफोरस जटेरालिस’ प्रजाति के मेंढक के नाम से जाना जाता है, जो  सिर्फ कर्नाटक और केरल के दक्षिण पश्चिमी घाट में पाया जाता है.