अनूपगढ़ में जीने की आस छोड़ चुके ओमप्रकाश को मिली जिंदगी तो रो पड़ी मां, बोली- भगवान हैं डॉक्टर
डॉक्टर को धरती पर भगवान का दर्जा दिया जाता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है मंगलवार को राजस्थान में श्री गंगानगर के अनूपगढ़ कस्बे के राजकीय चिकित्सालय के एमडी चिकित्सक डॉ. राहुल जैन ने. डॉक्टर जैन मूल रूप से श्रीगंगानगर के निवासी है.
Anupgarh, Sriganganagar News: डॉक्टर को धरती पर भगवान का दर्जा दिया जाता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया मंगलवार रात्रि को कस्बे के राजकीय चिकित्सालय के एमडी चिकित्सक डॉ. राहुल जैन ने. डॉक्टर जैन मूल रूप से श्रीगंगानगर के निवासी है.
अभी कुछ ही समय पहले उन्होंने अनूपगढ़ में कार्यभार ग्रहण किया है. सोमवार रात्रि उन्होंने डेढ़ घंटे से अधिक समय तक अथक प्रयास कर एक जाने की जान बचाई तो अहसास हुआ कि भगवान को डॉक्टर का दर्जा क्यों दिया जाता है.
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इस डेढ़ घंटे में मरीज ओम प्रकाश के परिजनों ने सैकड़ों बार ही भगवान को याद किया लेकिन जब डॉक्टर राहुल जैन पुत्र प्रदीप जैन ने कहा कि उनका पुत्र अब खतरे से बाहर है तो मरीज ओम प्रकाश के मां ने राहत की सांस ली और उन्होंने डॉक्टर जैन का आभार प्रकट करते हुए लाखों दुआएं दी. डॉक्टर जैन ने भी कहा कि आज एक जान बचा कर वास्तव में अंदरूनी खुशी महसूस हो रही हैं.
डॉ राहुल जैन मंगलवार रात्रि ऑन कॉल ड्यूटी पर थे. चक 12 एबी निवासी ओमप्रकाश को परिजन बहुत ही गंभीर हालात में चिकित्सालय लाए, उसकी हालात को देखते हुए उनके परिजनों को भी उसके बचने की आस बहुत कम थी लेकिन डॉ जैन तथा नर्सिंग कर्मियों की टीम ने तुंरत प्रभाव से बिना जांच के उसका इलाज शुरु कर उसकी जान बचा ली. ओमप्रकाश सहित उसके परिजनों ने डॉ. जैन का आभार प्रकट किया.
मरीज का फटा फेफड़ा, गंभीर अवस्था में पहुंचे अस्पताल
जानकारी के अनुसार चक 12एबी निवासी ओमप्रकाश को उसके परिजन देर रात्रि गंभीर हालात में अस्पताल लाये. मरीज को सांस आने में काफी समस्या आ रही थी. उक्त समय ड्यूटी पर कार्यरत नर्सिंगकर्मी सुरेंद्र तथा नर्सिंग ऑफिसर बृजलाल ने मरीज की गंभीर हालात को देखते हुए तुरंत प्रभाव से डॉक्टर को अस्पताल आने को कहा. डॉ. जैन भी बिना समय गवाए दो ही मिनट में अस्पताल पहुंच गए, जिस समय डॉ. जैन अस्पताल पहुंचे तो मरीज का ऑक्सीजन लेवल 35-38 के बीच में चल रहा था.
ऑक्सीजन लेवल अप-डाउन हो रहा था
मरीज की हालात बिगड़ती जा रही थी, ऐसे में रेफर करना उसको बिना प्रयास किए मौत के मुंह में ढकेलने जैसा था. जांच करने पर महसूस हुआ कि उसके लेफ्ट साइड़ का फेफड़ा फट गया है. डॉ. जैन से बताया इस स्थिति को मेडिकल भाषा में न्यूमोयोरक्स कहते है, जिसमें इलाज शुरु करने से पहले मरीज का एक्स-रे करवाना होता है. रोग की पुष्टि होने पर उसका इलाज शुरु करना होता है. जिसमें 50-60 मिनट से अधिक का समय लग जाता है. डॉ. जैन ने बताया कि मरीज के पास इतना समय नहीं था, ऑक्सीजन लेवल अप-डाउन हो रहा था.
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पीबीएम में सीखा गया आज आया काम
डॉ. जैन ने बताया कि मरीज की हालात को देखते हुए तुरंत प्रभाव से उसको इलाज देना जरूरी था. फेफडे की फटे होने की स्थिति की पुष्टि करने के लिए उन्होंनें बीकानेर में सिखाए गए ज्ञान को अपनाने का निर्णय लिया, जिसमें बिना जांच के इस तरह के मरीज गंभीर मरीज की जान बचाई जा सके. उन्होंने बताया कि उनके 7 वर्ष के कैरियर में यह पहला अवसर था कि उन्होंनें इस तकनीक से मरीज का इलाज किया है. उन्होंनें क्लिनिकली सिरंज से पुष्टि की. जब तक चेस्ट ट्यूब की व्यवस्था हो पाती, कैनुला की सहायता से मरीज के फेफड़ की हवा को बाहर निकाला, जिससे उसका ऑक्सीजन लेवल 94 से 96 तक आ गया. मरीज को सांस लेने में आसानी महसूस होने लगी. पुष्टि होते ही चेस्ट ट्यूब डाल कर मरीज का आगे का इलाज दिया गया.
डॉ जैन से बताया कि बीकानेर पीबीएम में बिना जांच रिपोर्ट के गंभीर रोगी को बचाने के तरीके सीखे होने के कारण आज मरीज की जान बच पाई, उन्होंने कहा कि वह भी मरीज की जान बच जाने से संतुष्ट महसूस कर रहे हैं.
Reporter- Kuldeep Goyal