Udaipur News : आपने अब तक रंगों और पानी से होली का त्यौहार मनाते हुए लोगों को देखा, लेकिन क्या कभी बंदूको और तोप की गर्जना के बीच आतिशी नजरों के साथ किसी को होली का त्यौहार मनाते देखा है. तो आइए हम आपको दिखाते हैं होली का एक ऐसा ही रंग जो उदयपुर के मेनार गांव में देखने को मिलता है. रियासत काल से चली आ रही या परंपरा आज भी मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग बदस्तूर निभा रहे हैं.


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बंदूकों की धाय धाय और तोप की गर्जना के साथ आतिशी नजारे का यह दृश्य किसी बॉलीवुड या हॉलीवुड की फिल्म का क्लाइमैक्स नहीं, बल्कि यह नजारा है उदयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर बर्ड विलेज के नाम से मशहूर मेनार गांव का. जहा मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग बीते 450 वर्षों से कुछ इसी अंदाज से होली का त्यौहार मना रहे है. होली के दूसरे दिन यानी जमराबीज की रात को मेनारिया ब्राह्मण समाज रणबांकुरे बन कर आतिशी नजारों के साथ होली का जश्न मनाते हैं. जिसे देखने के लिए देश भर से बड़ी संख्या में लोग मीनार गांव पहुंचते हैं. समाज के युवा रियासत काल से चली आ रही इस परंपरा को आज भी बदस्तूर आगे बढ़ा रहे हैं.


 



दरअसल मान्यता है कि महाराणा प्रताप के पिताजी उदय सिंह के समय मेनार गांव से आगे मुगलों की एक चौकी हुआ करती थी. मुगलों की इस चौकी से मेवाड़ साम्राज्य की सुरक्षा को खतरा था. मुगलों के सम्भावित आक्रमण से मेवाड़ की रक्षा करने के लिए मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग रणबांकुरे बन कर मुगलों की चौकी पर धावा बोल देते है और उसे पूरी तरह से तहस-नहस कर देते है. हालांकि इस हमले में मेवाड़ की रक्षा में समाज के कुछ लोग भी शहीद हो जाते हैं. उसके बाद से ही समाज के लोग मुगल चौकी पर अपनी जीत के जश्न को इसी आतिशी अंदाज के साथ मना रहे है. इस जश्न में उस हमले का का चित्रण दर्शाया जाता है. गांव में मेनारिया समाज के लोग अलग-अलग खेमो  में बट जाते हैं और उसके बादशुरू होता है आतिशी नजारों के साथ होली मनाने का जश्न. यह जश्न पूरी रात चलता है और लोग भी इसे देखने के लिए पूरी रात डटे रहते हैं.