क्या है मोदी सरकार की दलील

मोदी सरकार की दलील है कि एक देश एक चुनाव बिल के जरिए चुनाव में होने वाले करोड़ों के खर्च को बचाया जा सकता है.

Zee Rajasthan Web Team
Sep 01, 2023

साल 2019 लोकसभा चुनाव में खर्च हुए 60 हजार करोड़

कई मौकों पर पीएम मोदी इसका समर्थन कर चुके हैं. जानकारी के मुताबिक साल 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये तक खर्च हो गयें.

वन नेशन-वन इलेक्शन बिल

वन नेशन-वन इलेक्शन बिल पर पीएम मोदी कह चुके हैं कि इससे देश के संसाधन भी बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी.

बार-बार की तैयारी से निजात

एक तर्क ये भी है कि भारत जैसे बड़े देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते ही हैं. जिसमे पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल होता है. लेकिन ये बिल लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी नहीं करनी होगी.

एक ही वोटर लिस्ट

बिल लागू पर चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट भी होगी. बार बार आदर्श आचार संहिता लागू होने से सरकार के विकास कार्यों में रुकावट भी नहीं आएगी.

ब्लैक मनी और रिश्वत

कालेधन और भ्रष्टाचार को रोका जा सकेगा. माना जाता है कि कई राजनीतिक दल और उम्मीदवार ब्लैक मनी का इस्तेमाल करते हैं जो इस बिल के बाद संभव नहीं होगा.

बिल के विरोध में तर्क

बिल का खिलाफत कर रहे लोगों का कहना है कि इससे देश में सत्तासीन पार्टी के पक्ष में सकारात्मक माहौल होने पर इसका असर राज्य स्तर पर दिखेगा और छोटे दलों को नुकसान होगा.

लेट रिजल्ट

चुनावों का नतीजा देर से आने का तर्क भी दिया जा रहा है, क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर चुनाव हों तो नतीजों में देरी होना पक्का है. जिससे राजनीतिक अस्थिरता आ सकता है.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का कहना है कि बिल को लागू करना संवैधानिक, ढांचागत और राजनीतिक चुनौती जैसा होगा. जिसके लिए किसी भी विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल एक भी दिन बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा या फिर राष्ट्रपति शासन लगाना होगा.

क्या सर्वसम्मति बनेगी ?

यही नहीं जहां राज्यों में सरकार बीच कार्यकाल में ही भंग होगी वहां कैसे इंतजाम होंगे और विधानसभा का कार्यकाल घटाने और बढ़ाना इसके लिए सर्वसम्मति कैसे बनेगी ये भी सोचना होगा.

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