APP Victory in Rajendra Nagar Bypoll: राजेंद्र नगर विधानसभा के चुनाव आम आदमी पार्टी के दुर्गेश पाठक ने बाजी मार ली. राघव चड्ढा की ये सीट आप की ही झोली में गिरी. यानी बीजेपी के तमाम दांव-पेच चाहे वो बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा हो या पानी की समस्या को लेकर आप को घसीटना, सब फेल हो गये.


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बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता (Adesh Gupta) के नेतृत्व और प्रत्याशी राजेश भाटिया (Rajesh Bhatia) की मेहनत पर पानी फिर गया. आदेश गुप्ता ने प्रचार में केंद्र के मंत्रियों से लेकर दिल्ली के बड़े-बड़े नेताओं को राजेंद्र नगर में उतारा, उसका भी कोई फायदा पार्टी को नहीं मिला.


दिल्ली बीजेपी के नेतृत्व पर सवाल


आपको बताते चलें कि आदेश गुप्ता को दिल्ली बीजेपी की कमान जून 2020 में सौंपी गई थी. उनके खिलाफ हवा और हलचल तो उस समय भी तेज थी लेकिन आक्रामक बैठकों के दौर ने शायद उस हलचल को दबा दिया था. लेकिन इस उपचुनाव में हार के बाद जिस तरीके से विश्लेषण सामने आ रहे हैं वो आदेश गुप्ता की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं.


लगातार दूसरे मौके पर फेल रहे प्रदेश अध्यक्ष


पिछले साल हुए निगम के चुनावों में भी बीजेपी 6 सीटों पर कुछ ख़ास नहीं कर पाई वहां भी आप अपना दमखम दिखा गयी. ये लगातार दूसरा चुनाव था जब आदेश गुप्ता के नेतृत्व में बीजेपी को बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा. कहा जा रहा है कि दिल्ली में जमीनी कार्यकर्ताओं का छूटता साथ और झुग्गी झोपड़ियों में अतिक्रमण के डर को बीजेपी संभाल ही नहीं सकी.


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खिसकती ज़मीन की बड़ी वजह ये भी!


बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और अन्य प्रदेश स्तर के नेताओं को इस चुनाव से एक सीख तो ज़रूर मिलेगी की केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से कुछ नहीं होता, अपनी बात और खुद को भी हर वर्ग के व्यक्ति तक पहुंचाना भी बेहद जरूरी होता है. जो बीजेपी केजरीवाल के खिलाफ अपने पोल-खोल अभियान की सफलता के कसीदे गढ़ रही थी शायद वहां भी जिला स्तर के कार्यकर्ताओं की मेहनत उस समर्थन को वोटों में तब्दील नहीं कर पाई.


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'आम कार्यकर्ता के लिए समय नहीं'


बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए शायद बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व ‘नॉट ईज़ी टू रीच’ होना भी इस चुनावी हारों के बड़े कारणों में से एक माना जा सकता है. अब अंदरखाने ऐसी चर्चा है कि बीजेपी को दिल्ली में अपनी खिसकती ज़मीन बचाने के लिए हर स्तर पर एक बड़े परिवर्तन की जरूरत है


बीजेपी इस हार से सबक जरूर लेगी और मंथन भी करेगी. क्यूंकि अगर ऐसा नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं होगा की दिल्ली में बीजेपी की हाल कांग्रेस जैसा होगा. बूथ से लेकर जिले और प्रदेश स्तर तक के कार्यकर्ता को फिर से जोड़ना बीजेपी के लिए चुनौती भरा काम होने जा रहा है.


ऐसे में लगातार हार के बाद निराश कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए भी नेतृत्व को पहल करनी पड़ेगी. वहीं बीजेपी प्रदेश नेतृत्व को बैठकों की अधिकता को छोड़कर जनता के बीच जाने की वजह और रास्ता भी ढूंढना होगा.


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(इनपुट: आदित्य प्रताप सिंह)