Ashwini Vaishnaw BJD Support BJP: सीएम नवीन पटनायक के लिए ओडिशा के सियासी गलियारों में एक बात कही जाती है कि वह एक तीर से कई निशाने लगाते हैं. 2019 में पर्याप्त संख्या होने के बावजूद उन्होंने पार्टी की जगह बीजेपी के उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला कर सबको हैरान कर दिया था. तब पूर्व आईएएस अश्विनी वैष्णव पहली बार राज्यसभा पहुंच सके थे. एक बार फिर वही फैसला दोहराकर BJD ने खुद को एनडीए खेमे के करीब ला दिया है. इस दांव से नवीन बाबू ने न सिर्फ पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी से अपनी दोस्ती जाहिर की है बल्कि मोदी लहर से अपने राज्य को बचाने की भी तैयारी कर ली है.


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दरअसल, बीजेपी राष्ट्रीय राजनीति में हावी है और विपक्ष शासित सरकारों पर लगातार हमले करती रहती है, लेकिन इस तटीय राज्य में वह आक्रामक नहीं है. पटनायक और मोदी भी एक दूसरे को मित्र बताते हुए आभार ही जताते हैं. नवीन बाबू का अंदाज दिखाता है कि वह मोदी सरकार से संबंध बनाकर चलना चाहते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अध्यक्ष खरगे आरोप लगाते रहते हैं कि बीजेपी और बीजेडी दोनों मिलकर ओडिशा में सरकार चला रहे हैं. 


तब मोदी ने किया था फोन?


हां, मीडिया रिपोर्ट की मानें तो जून 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी ने ओडिशा के सीएम को फोन किया था. इसके बाद बीजेडी ने मूल रूप से जोधपुर के रहने वाले वैष्णव को समर्थन देने की घोषणा की थी. तब भाजपा के पास ओडिशा असेंबली में पर्याप्त नंबर नहीं था लेकिन वैष्णव निर्विरोध चुने गए.


इस बार दो कैंडिडेट पटनायक की पार्टी से हैं और एक वैष्णव फिर से मैदान में हैं. अगर तीन कैंडिडेट ही रहते हैं तो चुनाव की जरूरत ही नहीं होगी. माना जा रहा है कि अश्विनी का नाम घोषित करने से पहले 2019 की तरह बीजेपी और बीजेडी में बात हुई होगी. 


इसी महीने मोदी गए थे ओडिशा


जरा दिमाग दौड़ाइए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब किसी विपक्ष शासित राज्य में जाते हैं तो वहां की सरकार पर हमले या तंज का कोई मौका नहीं छोड़ते. हालांकि कुछ दिन पहले जब वह ओडिशा गए थे तो सीएम नवीन पटनायक को अपना मित्र बता आए. IIM संभलपुर के इवेंट में नवीन बाबू ने भी मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में देश आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ रहा है. बाद में पीएम ने रैली भी की और 35 मिनट बोले लेकिन केंद्र की उपलब्धियों और योजनाओं की चर्चा ही करते रहे. उन्होंने बीजू जनता दल के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला.


लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेडी और भाजपा गठबंधन की अटकलें लगाई जाने लगी है. अब रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के लिए सीएम पटनायक ने 'नवीन' दांव चला है. बीजद (BJD) ने ओडिशा में राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अश्विनी वैष्णव को समर्थन देने की घोषणा की है. ऐसे में मोदी-पटनायक की दोस्ती की चर्चा फिर होने लगी है. 


पहले भाजपा की लिस्ट फिर...


भाजपा ने आज सुबह ही केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की उम्मीदवारी की घोषणा की. इसके फौरन बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक बयान जारी कर कहा कि बीजू जनता दल आगामी राज्यसभा चुनाव में राज्य के रेलवे और दूरसंचार विकास के व्यापक हित के लिए केंद्रीय रेल, संचार और सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव की उम्मीदवारी का समर्थन करेगा. मंगलवार को ही बीजद के दो उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल किया था लेकिन तीसरी सीट खाली रखी गई थी. 


अश्विनी का ओडिशा कनेक्शन


मोदी - नवीन की मित्रता से पहले अश्विनी वैष्णव का ओडिशा कनेक्शन भी जानना जरूरी है. 1999 में जब विनाशकारी चक्रवाती तूफान आया था तब अश्विनी बालेश्वर में कलेक्टर हुआ करते थे. तब उनका सेवा और समर्पण भाव राज्य के लोगों ने देखा था. उन्होंने तकनीक के इस्तेमाल से लोगों की जान बचाने में पूरी ताकत झोंक दी थी. राहत कार्य के लिए वह खुद ग्राउंड पर उतरे थे. पिछले साल जब बालासोर रेल हादसा हुआ तब भी उन्होंने ग्राउंड पर उतरकर 50 घंटे में रेल सेवा बहाल करा दी. वह रातभर कर्मचारियों का हौसला बढ़ाने के लिए जमीन पर रहे. 


मोदी और नवीन की दोस्ती


पिछले साल सितंबर में नवीन पटनायक ने मोदी सरकार को 10 में से 8 नंबर दिए थे. नवीन पटनायक मोदी सरकार की विदेश नीति और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन से काफी प्रभावित हैं. उन्होंने खुलकर कहा है कि भाजपा की इस सरकार में भ्रष्टाचार बहुत कम है. 


बेहद शांत और सरल स्वभाव के नवीन बाबू ने दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने संबंध को 'दोस्ताना' बताया था. हालांकि ओडिशा की सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी राज्य में बीजेपी को मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानती है. गौर करने वाली बात यह है कि पहले पटनायक की पार्टी केंद्र पर ध्यान न देने का आरोप लगाती थी लेकिन अब वे कहते हैं कि मोदी सरकार में केंद्र से ओडिशा के विकास और कल्याण के लिए अच्छा सहयोग मिलता है. 


विपक्ष के मोर्चे में नहीं आए पटनायक


पटनायक की खास बात यह है कि वह भाजपा सरकार पर तीखे हमले से बचते रहे हैं. कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल आरोप लगाते हैं कि बीजेडी और बीजेपी मिली हुई हैं. जब विपक्ष ने बीजेपी सरकार को हटाने के लिए I.N.D.I.A मोर्चा बनाया तो नवीन बाबू दूर अलग खड़े दिखे. यूपीए सरकार में पटनायक संघीय ढांचे को लेकर सवाल उठाते थे लेकिन मोदी सरकार से वह खुश हैं. पहले वह यूपीए और एनडीए से दूर रहने की बातें करते थे लेकिन पिछले राज्यसभा चुनाव में ही पटनायक ने बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन देकर वो पैटर्न बदल दिया. 


इतना ही नहीं, मोदी से दोस्ती के कारण जब भी बीजेपी को जरूरत पड़ी, बीजेडी समर्थन में खड़ी दिखी- 
1.  राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास कराने में बीजेडी ने सरकार का साथ दिया.
2. अनुच्छेद 370 हटाने के लिए भी बीजेडी ने भाजपा का समर्थन किया.
3. पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से पहले ही बीजेडी ने वॉकआउट कर दिया था. 
4. दिल्ली में उपराज्यपाल के अधिकार बढ़ाने वाले बिल का विरोध किया लेकिन विरोध में वोटिंग नहीं की बल्कि वॉकआउट किया.


5. एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर भी नवीन बाबू साथ रहे.


दोस्ती की बड़ी वजह कांग्रेस विरोध


राजनीतिक एक्सपर्ट कहते हैं कि बीजेडी शुरू से ही भाजपा के करीब रही है. बीजेडी का उदय भी कांग्रेस विरोध से हुआ है. पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए नवीन बाबू भी कांग्रेस से दूर ही रहे हैं. दो दशक पहले बीजेपी के समर्थन से ही नवीन बाबू सीएम बने थे. गठबंधन टूटा लेकिन लगाव बना रहा. जब भी एनडीए मुश्किल में होता, नवीन पटनायक संकटमोचक बनकर आ जाते. 


वैसे 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने केंद्रपाड़ा की रैली में बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा पर पटनायक पर निशाना साधा था. तब उन्होंने ओडिशा की तुलना बंगाल से कर दी थी. 2018 में एक रैली में कथित भ्रष्टाचार को लेकर पटनायक सरकार पर अटैक किया गया. हालांकि 2019 के चुनाव के बाद सीन बदल गया. राष्ट्रपति चुनाव समेत तमाम मसलों पर बीजेडी ने मोदी सरकार का समर्थन किया. बाद में पीएम ही नहीं गृह मंत्री अमित शाह ने भी तारीफ करते हुए पटनायक को 'लोकप्रिय सीएम' कहा. 


दो दशक से ज्यादा लंबी राजनीति में नवीन पटनायक ने खुद को राज्य तक ही सीमित रखा है. वह ओडिशा के ऐसे लोकप्रिय नेता हैं जो पांच बार से लगातार बीजेडी सरकार चला रहे हैं. बीजेपी को पता है कि वह केंद्र सरकार के लिए चुनौती नहीं बनने जा रहे हैं. इस कारण भाजपा और बीजेडी की दोस्ती फिलहाल पक्की लगती है.