राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को कहा कि अयोध्या में बने राम मंदिर को इतिहासकार आने वाले समय में भारत की अपनी सभ्यतागत विरासत की खोज में एक मील का पत्थर मानेंगे. 75वें गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि यह कई मायनों में देश की यात्रा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है.


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'बड़े नजरिए से देखा जाएगा"


उन्होंने कहा, "इस हफ्ते की शुरुआत में हम सबने अयोध्या में भगवान राम मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक समारोह देखा. भविष्य में जब इस घटना को बड़े नजरिए से देखा जाएगा, तब इतिहासकार, भारत की सभ्यतागत विरासत की लगातार खोज में युगांतरकारी आयोजन के तौर पर देखेंगे. न्यायिक प्रक्रिया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर का काम शुरू हुआ. अब यह एक भव्य संरचना के रूप में शोभायमान है. यह मंदिर न केवल जन-जन की आस्था को व्यक्त करता है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में हमारे देशवासियों की अगाध आस्था का प्रमाण भी है."


राष्ट्रपति ने बिहार के दो बार के दिवंगत मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भी याद किया. उन्होंने कहा कि कर्पूरी ठाकुर सामाजिक न्याय के अथक समर्थक थे.राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, 'कर्पूरी जी पिछड़े वर्गों के सबसे महान पक्षकारों में से एक थे जिन्होंने अपना सारा जीवन उनके कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था. उनका जीवन एक संदेश था. अपने योगदान से सार्वजनिक जीवन को समृद्ध बनाने के लिए, मैं कर्पूरी जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं.'


'संविधान की शुरुआत का उत्सव मनाएंगे'


उन्होंने आगे कहा, 'कल के दिन हम संविधान की शुरुआत का उत्सव मनाएंगे. संविधान की प्रस्तावना "हम, भारत के लोग", इन शब्दों से शुरू होती है. ये शब्द, हमारे संविधान के मूल भाव यानी लोकतंत्र के बारे में बताती है. भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, लोकतंत्र की पश्चिमी अवधारणा से कहीं अधिक प्राचीन है. इसीलिए भारत को "लोकतंत्र की जननी" कहा जाता है."


राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि देश 'अमृत काल' के शुरुआती वर्षों में है, जो स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर बढ़ रहा है. राष्ट्रपति ने कहा, "यह एक युगांतरकारी परिवर्तन का कालखंड है. हमें अपने देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का सुनहरा अवसर मिला है. हमारे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हर नागरिक का योगदान अहम होगा. 


उन्होंने कहा, 'इस संदर्भ में मुझे महात्मा गांधी का स्मरण होता है. बापू ने ठीक ही कहा था, जिसने केवल अधिकारों को चाहा है, ऐसी कोई भी प्रजा उन्नति नहीं कर सकी है. केवल वही प्रजा उन्नति कर सकी है जिसने कर्तव्य का धार्मिक रूप से पालन किया है.' 


(एजेंसी इनपुट के साथ)