Ram Mandir Ayodhya: अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का करोड़ों लोगों ने सपना देखा था. और यह सपना अब साकार होने जा रहा है. अयोध्या में भगवान श्रीराम का वर्षों बाद आगमन होगा. इस भव्य आयोजन के हजारों लोग साक्षी बनेंगे. देश की तमाम हस्तियों को इस आयोजन का निमंत्रण दिया गया है. 


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45 साल बाद अयोध्या पहुंचे डॉ. सुभाष चंद्रा


रामलला के पधारने को लेकर सभी अतिथि उत्साहित हैं. इन खास अतिथियों में Essel ग्रुप के चेयरमैन और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा का नाम भी शामिल है. राम मंदिर के भव्य आयोजन में शामिल होने के लिए डॉ. सुभाष चंद्रा अयोध्या पहुंच चुके हैं. ज़ी न्यूज से खास बातचीत में उन्होंने भगवान राम और रामराज्य पर विस्तार से बात की.


..तब मन में पीड़ा थी


डॉ. सुभाष चंद्रा ने बताया, जब वे युवा थे तब अयोध्या आए थे. 45 साल बाद आज फिर वे अयोध्या आए हैं. युवाकाल में जब वे अयोध्या आए थे, तब उनके मन में पीड़ा थी. उन्होंने कहा कि जिस रामायण को पढ़कर, रामलीला को देखते हुए हम बड़े हुए, अयोध्या के बारे में कथाएं सुनीं, जिस जगह भगवान श्रीराम का जन्म हुआ.. उस जगह पर विदेशी आततायी ने हमला किया और मंदिर को ध्वस्त कर दिया. हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया. लेकिन जब हमारा वक्त आया तो हमने इसे फिर से क्यों नहीं खड़ा किया?


किसी ने नहीं दिया इस सवाल का जवाब


उन्होंने कहा कि इस सवाल का जवाब उन्हें तब किसी ने नहीं दिया था. राजनीति से जुड़े मित्रों से भी इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि सुभाष तुम नहीं समझोगे.. ये राजनीति है.. तुम बच्चे हो अभी. तब मैं ये पीड़ा लेकर यहां (अयोध्या) से गया था. आज जब मैं यहां आया हूं तो मन में एक उल्लास है. मन में भावना है कि मैं स्वतंत्र हूं, मेरा देश स्वतंत्र है, मेरे देश के नागरिक स्वतंत्र हैं. रामराज्य में भी सबको बोलने की आजादी थी. तब आजादी होते हुए भी कोई किसी को कष्ट नहीं देता था. लेकिन 40-50 वर्षों में आज से 15 साल पहले हमने जो माहौल देखा, वो दुखदायी था. वो स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कह देते थे.


कोई एक्सप्लेनेशन नहीं देता..


ब्रिटिश शासन काल का जिक्र करते हुए सुभाष चंद्रा ने कहा कि उस वक्त जो मुद्रा थी, उसपर भी भगवान की मूर्ति बनी हुई थी. ऐसी बहुत सी चीजें थीं जिनको आजादी के बाद हटा दिया गया. इस बारे में कोई एक्सप्लेनेशन नहीं देता. उन्होंने यह भी कहा कि राम मंदिर को तोड़ने वाला भारत का मुस्लिम नहीं था. विदेशी आततायी ने मंदिर को तोड़ा और उसकी जगह मस्जिद का निर्माण किया. 


..पीएम मोदी के हाथों होना था


राम मंदिर के लिए रास्ता निकालने के लिए अब तक राजनीतिक समझ नहीं हो पा रही थी? इस सवाल के जवाब में सुभाष चंद्रा ने कहा कि एक बार नहीं, कई बार प्रयास हुए. जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने ताला खुलवाया था. वे चाहते थे कि इसे मंदिर का स्वरूप वापस दिया जाए. लेकिन 1947 के बाद भी देश में ऐसे जयचंद हुए हैं, जो देश को आगे बढ़ता नहीं देखना चाहते, इस देश को खुशहाल देखना नहीं चाहते. ऐसे ही लोगों ने राजीव गांधी को ऐसा करने से रोक दिया. अब इसे कुदरत.. धर्म.. सृष्टि.. का एक डिजाइन कह लीजिए कि यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों होना था.


ये सरकार धार्मिक है..


इस सरकार में मंदिर निर्माण को कैसे देखते हैं? इस सवाल पर सुभाष चंद्रा ने कहा कि जब इस देश का संविधान बना था, उसमें धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं था. जिस राज्य में.. जिस देश में धर्मपरायण सरकार नहीं होगी, वहां लोग भी धर्मपरायण नहीं होंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये सरकार धार्मिक है, धर्मपरायण है. इंडस सिविलाइजेशन (सिंधु घाटी सभ्यता) से आने वाले लोगों ने कभी लड़ाई नहीं की बल्कि सभी को अपनाया है. सभी धर्मों को, सभी बाहर से आने वालों को अपनाया है.


मुस्लिम भाइयों को समझना चाहिए..


भारत के मुस्लिम समाज का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा कष्ट अगर आज किसी को होना चाहिए तो भारत के मुस्लिम समाज को होना चाहिए. हमारे मुस्लिम भाइयों को यह समझना चाहिए कि उनके बुजुर्गों को टॉर्चर किया गया और मुस्लिम बनाया गया. यहीं के लोगों को कन्वर्ट कर मुस्लिम बनाया गया. हिन्दू ने मंदिर टूटने पर कभी लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि यह कहा कि हम घर में तुलसी का पौधा लगाकर पूजा कर लेंगे. हिन्दू समाज का लड़ाई में कभी विश्वास नहीं रहा, यही कारण है कि हमारी संस्कृति बची रही और आगे बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि राम की अच्छाइयों को जीवन में अपनाना चाहिए. घर में झगड़ा करने वाले राम की पूजा कर, राम भक्त नहीं कहला सकते.