British Empire Looted India's Gold For 121 Years: केजीएफ चैप्टर 2 की धमाकेदार सफलता के बाद सभी को ये जानने में रुचि होगी कि क्या इसमें दर्शाई गई कहानी रियल है? 1889 में अंग्रेज प्रशासन ने बिजली के प्रोडक्शन के लिए हाइड्रोपावर प्लांट (Hydropower Plant) लगाए जिससे सोने की माइनिंग (Gold Mining) में किसी तरह की दिक्कत का सामना ना करना पड़े. 


अंग्रेजों का खदान पर पूरा अधिकार 


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कर्नाटक के कोलार (Kolar) डिस्ट्रिक्ट की सोने की खदान को सोना उगलने के लिए यूज किया जाता था. अंग्रेज यहां से सोना निकाला करते थे. इतिहास के मुताबिक यहां 1700 के दशक में ही सोने की तलाश शुरू हो गई थी. इस खदान पर अंग्रेज राज (British Rule) किया करते थे. ब्रिटिश अफसर जॉन वारेन (John Warren) की रिपोर्ट के मुताबिक अंग्रेजों ने उस समय का पूरा साम्राज्य मैसूर के महाराजा को सौंप दिया था लेकिन इस सोने की खदान पर अपना पूरा अधिकार जमाया हुआ था.


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भारत को कहा गया सोने की चिड़िया 


इस भूमि ने साबित किया कि भारत (India) को सोने की चिड़िया क्यों कहा गया है. दावा किया गया है कि अंग्रेजों ने इस जगह से 900 टन सोना निकाला था. इसकी खुदाई 121 साल तक चली, जिस दौरान अंग्रेजों ने मजदूरों (Workers) का बहुत शोषण किया. मजदूरों को बहुत कुछ सहना पड़ा. कई कोशिशों के बाद आखिरकार 1875 में केजीएफ से सोना निकालने के काम की शुरुआत हुई.


कई मजदूरों की जान गई


अंग्रेजों के लालच ने कई मजदूरों की जान तक ले ली. यह देश की पहली ठीक से चलने वाली खदान (Mine) थी. कोलार भारत का पहला शहर बना जहां बिजली (Electricity) की आपूर्ति सबसे पहले की जाती थी. इस इलाके की सुविधाओं और लग्जरी को देखते हुए लोग इसे मिनी लंदन (Mini London) कहते थे. सोने की खदान पर कब्जे के बाद भी यहां के मजदूरों के जीवन में कोई सुधार नहीं आया.


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28 फरवरी 2001 को केजीएफ को किया गया बंद


भारत की आजादी के बाद भी केजीएफ कार्यकर्ता 1956 तक ब्रिटिशर्स (Britishers) के गुलाम बने रहे. समय के साथ सोना भी सतह से नीचे जाने लगा. बता दें कि केजीएफ में बनी सबसे गहरी खदान का नाम चैंपियन रीफ (Champion Reef) था. वो शाफ्ट जो सबसे गहराई तक जाता था उसका नाम गिफ्फोर्ड (Gifford's Shaft) था. शाफ्ट्स की मदद से ही मजदूर सोने को खदान से जमीन पर लाते थे. 28 फरवरी 2001 को बीजीएमएल ने केजीएफ (KGF) को बंद कर दिया.


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