मणिपुर का नाम आते ही जेहन में एक ऐसा खूबसूरत राज्य आता है जो चारों तरफ से पर्वतों से घिरा है. मणिपुर को नॉर्थ ईस्ट का गहना भी कहा जाता है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस राज्य को नफरत की आग ने तबाह किया हुआ है. सड़कों पर जली हुईं गाड़ियां, जलकर राख हो चुके घर, चारों तरफ डरा देने वाला सन्नाटा और सेना-सुरक्षाबलों की तैनाती... मैतेई और नगा-कुकी समुदाय के बीच छिड़े गृहयुद्ध में अबतक 60 लोगों की जान जा चुकी है और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. 


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इसमें 1700 घरों को आग लगाकर खाक किया जा चुका है. मणिपुर में सेना, सीआरपीएफ और असम राइफल्स के 105 कॉलम तैनात हैं. सेना ने वहां शेल्टर हाउस बनाए हैं जिनमें करीब 35 हजार लोगों को रखा गया है. मणिपुर के दो समुदाय एक दूसरे के दुश्मन बन गए हैं और इस दुश्मनी की दो वजह हैं. 


पहली वजह - करीब 55 फीसदी आबादी वाले मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने का फैसला, जिसका 40 फीसदी आबादी वाला कुकी-नगा समुदाय विरोध कर रहा है. कुकी-नगा समुदाय मणिपुर की आबादी का करीब 40 फीसदी है और इसे आजादी के बाद से ही ST का दर्जा हासिल है. जबकि आजादी के बाद मैतेई समुदाय से ST का दर्जा छीन लिया गया था. जिसकी वापसी की मांग वो कर रहे हैं.


दूसरी वजह - गवर्नमेंट लैंड सर्वे, जिसके तहत बीजेपी की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने रिजर्व्ड फॉरेस्ट यानी आरक्षित वन क्षेत्र को आदिवासी ग्रामीणों से खाली करवाने का अभियान चलाया हुआ है. जिसका कुकी-नगा समुदाय विरोध कर रहा है. जबकि सरकार का कहना है कि आरक्षित वन क्षेत्र में म्यांमार से घुसपैठ करके आए लोगों ने कब्जा जमा लिया है. जिसके खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है.


मंदिर-मस्जिद में तोड़फोड़
हालात के सामान्य होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन हालात उतने सामान्य है नहीं. क्योंकि 3 और 4 मई को दो दिन तक चली नॉन-स्टॉप हिंसा और दंगों की आग में सिर्फ गाड़ियां और मकान नहीं जले हैं. मणिपुर के पूरे सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा है. हिंदू बहुल मैतेई समुदाय पर चर्च जलाने के आरोप लग रहे हैं और ईसाई बहुल कुकी-नगा समुदाय के लोगों पर हिंदू मंदिरों में तोड़-फोड़ और आगजनी के आरोप हैं.


सरकार ने किया मुआवजे का ऐलान
दंगा पीड़ितों में भी दोनों ही समुदाय के लोग शामिल हैं, जिनके लिए सरकार ने मुआवजे का ऐलान भी कर दिया है. मृतकों के परिवारों को सरकार 5 लाख रुपये की मदद देगी. जिनके घर जला दिये गये, उनको मुआवजा भी देगी और घर भी बनवाकर देगी. इस सरकारी मदद में कोई भेदभाव भी नहीं होगा. यानी मुआवजा सभी पीड़ितों को मिलेगा चाहे वो मैतेई हो या कुकी.


असली गुनहगार कौन?
मणिपुर में भड़के जातीय संघर्ष की आग भले ही मैतेई समुदाय को ST दर्जा दिए जाने की मांग पर भड़की हो. लेकिन इसकी चिंगारी बहुत पहले से सुलग रही थी. दरअसल, मणिपुर के पहाड़ी और जंगल के इलाकों में कई विद्रोही गुट तैयार हो चुके हैं, जिनको म्यांमार में बैठे विद्रोही संगठनों का समर्थन हासिल है.


विद्रोही गुटों को कुकी समुदाय के लोग भी समर्थन करते हैं, जो मणिपुर के जंगलों में सरकारी जमीन पर अफीम की खेती करते है, जिसके खिलाफ सरकार ने मार्च महीने में मुहिम छेड़ी थी. इसका कुकी समुदाय ने हिंसक विरोध किया था और अब भी मैतेई समुदाय को ST दर्जे का विरोध तो सिर्फ एक बहाना माना जा रहा है. असली वजह तो मणिपुर में विद्रोही गुटों के काले-कारोबार पर एक्शन है.


सूत्रों के मुताबिक, मणिपुर में हिंसा के पीछे सीमापार म्यांमार में बैठे विद्रोही गुट हैं, जिनके भड़काने पर कुकी विद्रोही गुटों ने हिंसा फैलाई. इसका एक सबूत ये भी है कि सबसे ज्यादा हिंसा मणिपुर के उन जिलों में फैली है, जिनकी सीमा म्यांमार से जुड़ती है.


आम जनता में घुसे विद्रोही
जानकारी के मुताबिक कुकी विद्रोही गुटों के सदस्यों ने आम जनता में घुसकर मैतेई समुदाय को निशाना बनाया. इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि मणिपुर में हिंसा के दौरान पुलिस से हाथापाई और पुलिस थानों पर हमले करके दंगाइयों ने हथियारों की लूट मचाई है. 


पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक पुलिस की कस्टडी से 1041 हथियार और 7460 अन्य गोला-बारुद लूटा गया है. अब आशंका ये भी है कि कुकी विद्रोही गुट अन्य राज्यों में भी हिंसा भड़काने की साजिश रच सकते हैं क्योंकि पूर्वोत्तर के कई राज्यों में कुकी समुदाय के लोग रहते हैं. मणिपुर सरकार ने इस हिंसा की उच्च स्तरीय जांच के आदेश भी दिये हैं.