नई दिल्ली: (Republic Day 2021) आप सबने भी बचपन से यही सब देखा सुना होगा. देश  26 जनवरी को गणतंत्र दिवस (Republic Day 2021) या रिपब्लिक डे के तौर पर मनाता आया है. ऐसे में  कोई उन्हें अगर ये बताता है कि संविधान तो 26 नवंबर 1949 को ही स्वीकार कर लिया गया था तो उनके मन में भी सवाल उठता है कि फिर आखिर  26 जनवरी को ही क्यों लागू किया गया? अगर 26 नवम्बर से ही लागू हो जाता, तो उसी दिन हर साल रिपब्लिक डे (Republic Day 2021) मनाया जाता. ऐसे में रिपब्लिक डे 26 जनवरी को ही क्यों मनाने के लिए चुना गया? ये जानने की दिलचस्पी स्वाभाविक ही है.


17 साल तक 26 जनवरी को क्यों मनाते थे स्वतंत्रता दिवस


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दरअसल ये फैसला एक खास दिन यानी 26 जनवरी की यादों को ताजा रखने के लिए लिया गया था. ये दिन भारत के राजनैतिक स्वतंत्रता की लड़ाई में थोड़ा खास था. 1885 में कांग्रेस ने अपनी स्थापना के बाद पहली बार पूर्ण स्वराज की मांग 1930 में की थी और पहला स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी 1930 को प्रतीकात्मक तौर पर मनाना करना शुरू कर दिया था. 31 दिसम्बर 1929 को पंडित नेहरू ने रावी नदी के तट पर लाहौर अधिवेशन में तिरंगा फहराकर 26 जनवरी की तारीख का ऐलान किया था, तब से 1947 में 15 अगस्त के देश आजाद होने तक 17 साल प्रतीकात्मक रूप से सभी 26 जनवरी को ही ध्वजारोहण करके स्वतंत्रता दिवस मनाते रहे थे. ऐसे में इस दिन की याद को रखना जरूरी समझा गया.


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26 नवंबर की जगह 26 जनवरी को क्यों मनाते हैं गणतंत्र दिवस (Republic Day)


इसीलिए 26 नवंबर 1949 को संविधान को स्वीकार करने के बावजूद संविधान के नागरिकता जैसे कुछ प्रावधानों को ही लागू किया गया और आधिकारिक रूप से दो महीने के इंतजार के बाद अगले साल यानी 26 जनवरी 1950 में लागू किया गया, तब से ही 26 जनवरी को देश भर में रिपब्लिक डे मनाया जाता है. लेकिन 26 नवंबर 1949 से भी संविधान के कुछ आर्टीकल्स को लागू कर दिया गया, वो थे 5,6,7,8,9,60, 324, 366, 367, 379, 380, 388, 391, 392, 393 और 394. यूं तो संविधान सभा का जब गठन 1946 में हुआ था, उसी साल 9 दिसंबर को उसकी पहली मीटिंग हुई थी. फिर एक ड्राफ्टिंग कमेटी बनाई गई, जिसके चेयरमेन डा. भीमराव अम्बेडकर को बनाया गया और कुल 2 साल 11 महीने 18 दिन में संविधान बनकर तैयार हुआ, जिसमें बहस और कई संशोधनों के साथ 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया.


संविधान के बारे में कुछ और दिलचस्प बातें


संविधान के बारे में कुछ और दिलचस्प बातें भी जान लीजिए, संविधान की ओरिजनल कॉपी को, यहां तक कि हर पेज को करीने से सजाया संवारा शांतिनिकेतन के दो कलाकारों ने, जिनके नाम हैं बिओहर राममनोहर सिन्हा और नंदलाल बोस. कवर पेज पर सिंधु घाटी सभ्यता जैसी भारतीय महाद्वीप की कई सभ्यताओं से जुड़े प्रतीक चिन्हों को उकेरा गया. अंदर के पृष्ठों पर भी भगवान राम से लेकर गीता संदेश, महाराणा प्रताप, शिवाजी से लेकर अकबर तक के चित्र उकेरे गए हैं. संविधान में कैलीग्राफी का काम प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने किया. 24 जनवरी को संविधान की तीन कॉपिया बनवाई गईं, हाथ से लिखीं हुई और कलाकारों द्वारा सुसज्जित हिंदी और अंग्रेजी की एक एक कॉपी और तीसरी कॉपी जो अंग्रेजी में प्रिंट की हुई थी, सदस्यों ने तीनों पर साइन किए थे.