S Jaishankar: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि हिंद महासागर में  अशांति पैदा करने वाले बदलाव होने की आशंका है और भारत को इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है. इस इलाके में चीन की बढ़ती समुद्री गतिविधियों को लेकर चिंताओं के बीच जयशंकर ने यह बयान दिया है. एक थिंक टैंक के कार्यक्रम में जयशंकर ने किसी देश का नाम लिए बिना कहा कि भारत के पड़ोस में जो कॉम्पिटिशन देखा गया है, वह निश्चित रूप से हिंद महासागर में भी होगी.


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'विलाप करने का औचित्य नहीं'


विदेश मंत्री ने एक प्रश्न के उत्तर में पड़ोस में कॉम्पिटिशन के बारे में बात की और कहा, 'इस बारे में विलाप करने का कोई औचित्य नहीं है'. क्योंकि भारत को प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत है और वह वास्तव में यही करने का प्रयास कर रहा है. उन्होंने कहा कि भारत हिंद महासागर में प्रतिस्पर्धा के लिए उसी तरह तैयार है, जिस तरह वह बाकी पड़ोस में प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार है. 


जयशंकर ने कहा, 'मुझे लगता है कि हिंद महासागर में समुद्री मौजूदगी की नजर आ रही है, जो पहले नहीं थी. इसलिए यह एक विध्वंसकारी परिवर्तन के लिए तैयार है. मुझे लगता है कि हमें इसका पूर्वानुमान लगाने (और) हमें इसके लिए तैयारी करने की जरूरत है.' चीन धीरे-धीरे हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, जिसे पारंपरिक रूप से भारतीय नौसेना का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है.


जयशंकर ने सेंटर फॉर एयरपावर स्टडीज (सीएपीएस) में जसजीत सिंह स्मारक व्याख्यान देने के बाद एक सवाल का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की. विदेश मंत्री ने भारत की समुद्री पहल ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के पीछे के कारणों को भी समझाया, जिसे नौ साल पहले शुरू किया गया था. 


पड़ोसियों को दी सहायता का किया जिक्र


उन्होंने बताया कि भारत ‘सागर’ की व्यापक नीतिगत रूपरेखा के अंतर्गत हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ सहयोग कर रहा है. भारत की ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने सफल सहयोगात्मक दृष्टिकोण के विभिन्न उदाहरणों का हवाला दिया और कहा कि इनका उद्देश्य पड़ोसियों को आर्थिक रूप से और अधिक करीब लाना है. उन्होंने विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान विभिन्न पड़ोसी देशों को भारत की ओर से दी गई सहायता के साथ-साथ आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को दिए गए समर्थन का जिक्र किया.


जयशंकर ने कहा, ‘‘कम से कम अपने पड़ोस में, हमने दिखाया है कि हममें खड़े होने, अपने हितों को आगे बढ़ाने, अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता है. मैं अक्सर कहता हूं कि हम उनसे अधिक संसाधन जुटाते हैं और निश्चित रूप से उनसे बेहतर प्रदर्शन करते हैं. इसलिए मुझे लगता है कि इस मामले में हमारा रिकॉर्ड बहुत मजबूत है.’’ विदेश मंत्री ने पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की भी विस्तृत जानकारी दी. 


'रिश्तों को संभालना आसान नहीं'


उन्होंने कहा, ‘‘हमने महसूस किया कि हमारे इतिहास, पड़ोसियों के आकार, हमारे पड़ोसियों और हमारे समाजशास्त्र को देखते हुए, इन रिश्तों को संभालना आसान नहीं है.” जयशंकर ने भारत के कई पड़ोसियों के साथ ‘‘राजनीतिक स्तर पर उतार-चढ़ाव’’ का जिक्र किया और कहा कि ये ‘‘वास्तविकताएं’’ हैं जिन्हें स्वीकार करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि आज हमारे पास ज्यादा संसाधन हैं, ज्यादा क्षमताएं हैं, हम भौगोलिक रूप से केंद्र में हैं और हमारा आकार बहुत बड़ा है.’’ 


जयशंकर ने कहा,‘‘समय-समय पर हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हमारे कुछ पड़ोसियों के यहां ऐसे मौके आए हैं जब हम राजनीतिक मुद्दा बन गए हैं.’’ विदेशमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि वैश्विक परिदृश्य बदल गया है और आगे भी बदलता रहेगा. उन्होंने कहा, ‘‘भारत की प्राथमिक चिंताएं और चुनौतियां भी उस परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं. हम प्रतिस्पर्धा के नए रूपों पर विचार कर रहे हैं जो उच्च स्तर पर पहुंच और अंतर-निर्भरता का लाभ उठाते हैं.'


(पीटीआई इनपुट के साथ)