Salim Chisti Dargah: एक बार फिर मुगल काल की एक इमारत सवालों के घेरे में है. एक बार फिर एक मुग़लिया इमारत के नीचे प्राचीन मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. इतिहास के पन्नों में ये दर्ज है कि आगरा के पास मौजूद फतेहपुर सीकरी का निर्माण अकबर ने 16वीं शताब्दी में किया था. इस जगह को यूनेस्को ने हेरिटेज साइट का दर्जा भी दे रखा है. लेकिन विश्वप्रसिद्ध फतेहपुर सीकरी उस वक्त विवादों में घिर गयी, जब अदालत में एक याचिका दायर कर ये दावा किया गया कि.- इसे मुगल सम्राट अकबर ने नहीं बनवाया. बल्कि फतेहपुर सीकरी का निर्माण मुगलकाल से पहले ही हो चुका था. यही नहीं, दावा ये भी किया गया है कि फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद माता कामाख्या का मंदिर है. 


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असल में फतेहपुर सीकरी स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह माता कामाख्या मंदिर का गर्भगृह है तो सवाल ये है कि, फतेहपुर सीकरी को आखिर किसने बनवाया? और क्या फतेहपुर सीकरी में बनी सलीम चिश्ती की दरगाह को कामाख्या मंदिर तोड़कर बनवाया गया था?  ये है फतेहपुर सीकरी का मशहूर जामा मस्जिद...भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक..जहां रोज़ाना हज़ारों सैलानी इकट्ठा होते हैं...जहां मुसलमान इबादत भी करते हैं.


सलीम चिश्ती की दरगाह


फतेहपुर सीकरी मस्जिद परिसर में बनी सलीम चिश्ती की दरगाह... वो सलीम चिश्ती जिसके आगे अकबर भी सजदा करते थे... क्योंकि, कहा जाता है कि, सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से ही अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई थी. लेकिन, एडवोकेट अजय प्रताप सिंह ने आगरा के सिविल कोर्ट में ये दावा करते हुए एक शूट फाइल किया है कि, फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद और सलीम चिश्ती की दरगाह माता कामख्या मंदिर को तोड़कर बनवाई गई थी. और उससे भी बड़ा दावा ये कि, फतेहपुर सीकरी को अकबर ने नहीं बनवाया था. 


आगरा का नंबर आया


अयोध्या..काशी और मथुरा के बाद आगरा का नंबर आया....तो इस खबर का सुर्खियों में आना स्वभाविक था. लिहाज़ा, सच की पड़ताल करने के लिए हमारी टीम पहुंची दिल्ली से 221 किलोमीटर दूर फतेहपुर सीकरी. फतेहपुर सीकरी के 177 फीट ऊंचे बुलंद दरवाज़े से होते हुए हमने हर उस जगह का मुआयना किया, जिसका ज़िक्र अजय प्रताप सिंह ने अपनी याचिका में किया है. सबसे पहले हम पहुंचे सीकरी की जामा मस्जिद, जिसके दरों-दीवारों...खंभों... छज्जों...और गुंबद पर हिंदू वास्तुकला की छाप दिखाई दी. सबसे पहले आपको दिखाते हैं, जामा मस्जिद की छत या कहें छज्जे क्या कहते हैं..


हिन्दू मंदिर की वास्तुकला


वैसे ब्रिटिश वास्तुकला इतिहासकार EB Havell ने भी फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद की वास्तुकला को हिन्दू मंदिर की वास्तुकला बताया था. यही नहीं, जिस दीवान ए खास परिसर में ये मस्जिद मौजूद है, वहां पर मौजूद एक खंबे की कलाकृति को हिन्दू कलाकृति बताते हुए EB HAVELL ने लिखा था कि..
- इस खंभे की कलाकृति भगवान विष्णु के सिंहासन जैसी है
- जबकि, अपनी किताब INDIAN ARCHITECTURE ITS PSYCHOLOGY, STRUCTURE, AND HISTORY FROM THE FIRST MUHAMMADAN INVASION TO THE PRESENT DAY के पेज नंबर 166 पर मस्जिद के खंबे और उसकी छत दोनों को हिंदू प्रतीक करार दिया था.
- EB Havell ने मस्जिद की वास्तुकला के बारे में बताते हुए लिखा था की The pillars and whole structure of the roof are strictly Hindu.


फ़तेहपुर सीकरी का इतिहास सैकड़ों साल पुराना


यही नहीं, मस्जिद के खंभों और छत के अलावा EB Havell ने यहां मौजूद आधा दर्जन से ज्यादा गुम्बदों और Liwan को भी हिंदू वास्तुकला बताया था. तो हमें भी मस्जिद की कई जगहों पर बनी कलाकृतियों को देखकर ऐसा ही आभास हुआ. तो सवाल ये है कि अगर फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद माता कामाख्या देवी का मंदिर है, तो इसे किसे बनवाया, जामा मस्जिद का क्या इतिहास है? दरगाह और मंदिर विवाद की वजह से चर्चा में आए फ़तेहपुर सीकरी का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. एक जमाने में ये इलाक़ा राजपूत शासकों के क़ब्ज़े में था. इस इलाके में प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक...


- फ़तेहपुर सीकरी में जो सीकरी शब्द है वो सिकरवार वंश के राजपूतों के नाम से जुड़ा है
- एक मान्यता ये भी हैकि सिकरवार शब्द राजस्थान के सीकर जिले से लिया गया है, वैसे सीकर शब्द का मतलब कुछ लोग धन्यवाद देना भी बताते हैं
- सिकरवार वंश के राजपूत आज भी राजस्थान के कई ज़िलों के साथ साथ आगरा, मथुरा और ग्वालियर में मौजूद हैं
- और जिस कामाख्या देवी मंदिर को लेकर विवाद है उनको सिकरवारों की कुल देवी माना जाता है
- इतिहासकारों के मुताबिक वर्ष 823 में सिकरवारों ने इस शहर को बसाया था और इसका नाम विजयपुर सीकरी रखा था
- बाद में 16वीं शताब्दी में अकबर ने गुजरात विजय के बाद इसका नाम बदलकर फ़तेहपुर सीकरी कर दिया... वैसे फ़तह का मतलब भी विजय ही होता है
- अकबर ने फ़तेहपुर सीकरी में कई छोटे-बड़े महल और बुलंद दरवाज़ा को बनवाया था


इतिहासकारों का भी मानना है कि, फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद पर हिंदू कलाकृतियां अंकित हैं जो इस बात की गवाही देती हैं कि ये मंदिर था. लेकिन, सवाल उस दरगाह को लेकर भी उठ रहे हैं जो जामा मस्दिद परिसर में बनी है. हिंदू पक्ष का दावा है कि, ये दरगाह मंदिर को तोड़कर उसके अवशेषों से बनाई गई थी. 


फतेहपुर सीकरी में हिंदू मंदिर का दावा सिर्फ जामा मस्जिद पर नहीं है, बल्कि हिंदू मंदिर के दावे में सैय्यद सलीम चिश्ती की दरगाह भी है, जो इस वक्त आपकी टीवी स्क्रीन पर दिख रही है. हिंदू पक्ष का कहना है की माता कामख्या देवी के मंदिर के टूटे अवशेषों से इस सैय्यद सलीम चिश्ती दरगाह का निर्माण किया गया है. यही नहीं दावा तो ये भी कि, दरगाह पर स्वास्तिक..कमल और कलश बना है, जो हिंदू प्रतीक हैं.  


सैयद सलीम चिश्ती दरगाह से जुड़े ऐतिहासिक साक्ष्य


दावा तब तक सिर्फ दावा ही कहलाता है.. जबतक कि कोई सबूत उसे मजबूती नहीं देता.लिहाज़ा, हमने सैयद सलीम चिश्ती दरगाह से जुड़े ऐतिहासिक साक्ष्य खंगालने शुरु किए, और हमें हाथ लगी ब्रिटिश इतिहासकार और तत्कालीन ICS अधिकारी VINCENT SMITH की साल 1917 में मुगल आक्रांता अकबर पर एक किताब लिखी थी जिसका नाम था AKBAR THE GREAT MOGUL थी. 
- इस किताब के पेज नंबर 442 पर Vincent Smith ने EB Havell की ही तरह सैयद सलीम चिश्ती की दरगाह के चिन्हों और वास्तुकला को हिन्दू करार दिया है. 
- और लिखा था की एक कट्टर मुसलमान संत की दरगाह की पूरी वास्तुकला हिन्दू है और पूरी इमारत से हिंदू भाव साफ दिख रहे हैं
- कोई भी इसके हिंदू Origin को पहचानने में गलती नहीं करेगा.


 इसके हिंदू होने का ऐतिहासिक प्रमाण


आप सोचिए कि कैसे सलीम चिश्ती दरगाह की दीवारें चीख-चीख कर इसके हिंदू होने का ऐतिहासिक प्रमाण दे रही हैं. और उससे भी बड़ी बात ये कि, तमाम ऐतिहासिक सबूत आज नहीं दर्ज किए गए बल्कि आज से 100 साल पहले ब्रिटिश काल में लिखे गए, और लिखने वाले भी हिंदू नहीं बल्कि ईसाई थी. हमने ऐतिहासिक सबूतों और ब्रिटिश लेखकों की किताबों के अलावा खुद सच की पड़ताल करने की कोशिश की. हमने सैयद सलीम चिश्ती की दरगाह को करीब से देखने का फैसला किया, और जो सामने आया, वो हैरान करने वाला था. 


ये तो हुई आंखों देखी... लेकिन, हकीकत से पर्दा उठाने के लिए हमने कुछ ऐसे ऐतिहासिक साक्ष्य भी खोज जिन्हें मुस्लिम इतिहासकारों ने दर्ज किया था. सैय्यद अतहर अब्बास रिज़वी और मौलवी मुहम्मद अशरफ हुसैन ब्रिटिश काल के मुस्लिम इतिहासकार थे. हमने उनकी किताब पढ़ी, जिसमें लिखा गया है कि, फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद और उसके परिसर में बनी सलीम चिश्ती की दरगाह हिंदू मंदिर तोड़कर बनवाई गई. 


सैय्यद अतहर अब्बास रिज़वी ने अपनी किताब फतेहपुर सीकरी के पेज नंबर 10 पर लिखा था की फतेहपुर सीकरी में स्थित जामा मस्जिद का निर्माण 33 खंभों से किया गया है, और इसी किताब के पेज नंबर 75 पर रिज़वी ने लिखा की ये pillars यानी खंभे हिंदू मंदिर के हैं, जिन्हें नष्ट करके मस्जिद का जामा मस्जिद निर्माण किया गया. 


भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के डायरेक्टर ओमजी उपाध्याय ने ये भी बताया कि, फतेहपुर सीकरी की मस्जिद और सलीम चिश्ती की दरगाह पर जो कलाकृतियां उकेरी गई हैं, वो हिंदू कलाकृतियां हैं. इसके पीछे उन्होंने क्या तर्क दिया, वो भी सुनिए. मामला आगरा सिविल कोर्ट तक पहुंच चुका है. हिंदू पक्ष ने कोर्ट में कानून का सहारा लेते हुए कोर्ट में दलील दी है कि किसी भी मंदिर की प्रकृति को बदला नहीं जा सकता है. एक बार वो मंदिर के रूप में प्राण प्रतिष्ठित हो गया तो वह हमेशा मंदिर ही रहेगा. 


स्थानीय मुस्लिमों से भी बात 


वहीं इस पूरे मामले ज़ी मीडिया संवाददात शिवांक मिश्रा ने स्थानीय मुस्लिमों से भी बात की, जिन्होंने ना सिर्फ कोर्ट में दायर याचिका को बेबुनियाद बताया, बल्कि ये भी दावा किया कि फतेहपुर सीकरी को अकबर ने ही बसाया था. 


ऐंकर- फ़तेहपुर सीकरी में मुग़ल शासक अकबर ने कई छोटे बड़े महल और दरगाह बनवाई थी. इसके पीछे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. 
- अकबर के दो जुड़वां बेटे थे, जिनकी मौत हो गई और उसके बाद लंबे समय तक अकबर को कोई औलाद नहीं हुई
- कई जगह मन्नत मांगने के बाद अपने मंत्रियों की सलाह पर अकबर फ़तेहपुर सीकरी में रहने वाले सूफ़ी संत सलीम चिश्ती के दरवाज़े पर पहुंचा
- माना जाता है कि सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर और जोधाबाई ने एक बेटे को जन्म दिया
- जिसके बाद अकबर ने अपने बेटे का नाम संत सलीम चिश्ती के नाम पर सलीम रखा
- आगे चलकर यही सलीम जहांगीर के नाम से जाना गया 
- फ़तेहपुरी सीकरी में जोधाबाई का भी एक महल है
- बाद में जब सूफ़ी संत सलीम चिश्ती का निधन हुआ तो उनकी दरगाह यहीं बनाई गई
- फ़तेहपुर सीकरी की पहचान माने जाने वाले बुलंद दरवाज़े को अकबर ने गुजरात की जीत के बाद बनवाया था


स्थानीय लोगों की अपनी राय है. लेकिन, फ़तेहपुरी सीकरी दरगाह और मंदिर का ये विवाद कोर्ट पहुंच चुका है. 30 मई को आगरा के सिविल कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी. आपको बताते हैं कि ये मुकदमा किस-किस के बीच है
- वादी यानी हिंदू पक्ष की ओर से माता कामाख्या स्थान, आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट और वकील अजय प्रताप सिंह ने याचिका दायर की है
- वहीं इस मामले में प्रतिवादी यानी मुस्लिम पक्ष में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी दरगाह सलीम चिश्ती और प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद के सदस्य शामिल हैं.