'नेहरू के डर की वजह से सेना को नहीं मिला वाजिब हक', पूर्व नेवी चीफ ने बताया कैसे बढ़ती गई नाराजगी
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'नेहरू के डर की वजह से सेना को नहीं मिला वाजिब हक', पूर्व नेवी चीफ ने बताया कैसे बढ़ती गई नाराजगी

Odisha Assault Case: ओडिशा में सेना के अधिकारी और उसकी मंगेतर के साथ पुलिस हिरासत में मारपीट के मामले पर पूर्व नौसेना प्रमुख अरुण प्रकाश ने अपनी राय जाहिर की है.

'नेहरू के डर की वजह से सेना को नहीं मिला वाजिब हक', पूर्व नेवी चीफ ने बताया कैसे बढ़ती गई नाराजगी

Odisha Army Officer Case: पिछले दिनों, भुवनेश्‍वर की एक घटना ने पूरे देश को हिला दिया. ओडिशा पुलिस ने कथित तौर पर आर्मी के ऑफिसर और उनकी मंगेतर के साथ बदतमीजी और मारपीट की. जब मीडिया के जरिए मामला सामने आया तो आम जनता के साथ-साथ पूर्व सैनिकों ने भी पुलिस के रवैये पर सवाल उठाए. जिस तरह का व्यवहार एक सैन्य अधिकारी और एक महिला के साथ हुआ, उसने देश के लिए जान की बाजी लगाने वालों को भी नाराज कर दिया.

पूर्व नौसेना प्रमुख अरुण प्रकाश के मुताबिक, सेना के प्रति सिविल प्राधिकारियों और पुलिस द्वारा दिखाई जा रही बढ़ती उदासीनता और अनादर गंभीर चिंता का कारण है. वह वर्तमान स्थिति के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हैं. प्रकाश ने 'हिंदुस्तान टाइम्स' में एक लेख लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की है.

'आम नागरिक पुलिस के पास जाने से डरता है'

पूर्व नेवी चीफ लिखते हैं कि ओडिशा की घटना से आम नागरिक को हैरानी नहीं हुई होगी, क्योंकि वह पुलिस के ऐसे बर्ताव का आदी है. उनके मुताबिक, भारतीय पुलिस ने अंग्रेजों वाली मानसिकता बरकरार रखी है. फर्क बस इतना है कि पहले पुलिस ब्रिटिश हुकूमत के आदेश पर लाठी चलाती थी, अब वह अपने राजनीतिक आकाओं के लिए ऐसा करती है.

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प्रकाश कहते हैं कि पुलिस के कामकाज में IAS और IPS जैसे दो केंद्रीय कैडर के अधिकारियों का महती दखल रहता है. उनके मुताबिक, पुलिस पर लोगों का भरोसा इतना कम हो गया है और उनका व्यवहार इतना आक्रामक है कि आम नागरिक मदद के लिए पुलिस के पास जाने में झिझकते हैं.

'सेना को नहीं मिला बराबरी का दर्जा'

पूर्व नौसेना प्रमुख के अनुसार, आज सिविल अधिकारियों और मिलिट्री के बीच जैसे तनावपूर्ण रिश्ते हैं, उसकी बुनियाद आजादी के समय डाली गई थी. अपने लेख में वह लिखते हैं कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मन में यह डर था कि एक नए देश पर सेना का कब्जा हो जाएगा. इस डर के चलते शीर्ष सैन्य नेतृत्व का दर्जा कम हो गया, जबकि स्वतंत्रता के बाद नौकरशाहों और पुलिस, दोनों की स्थिति और वेतन में भारी इजाफा हुआ.

प्रकाश के अनुसार, राज्य के पदानुक्रम (hierarchy) में सेना की स्थिति में लगातार गिरावट आती रही. वह स्वतंत्रता के बाद की सरकारों द्वारा देश के सशस्त्र बलों को औपचारिक मान्यता देने में विफलता को एक और चूक बताते हैं. पूर्व नेवी चीफ के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार से विरासत में मिली 49 ग्रुप ए सेवाओं के अलावा, तीन नई अखिल भारतीय सेवाएं - आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा - संविधान के अनुच्छेद 312 द्वारा बनाई गई थीं. लेकिन, सशस्त्र बलों, उनके प्रमुखों और वरिष्ठ नेतृत्व के कार्यों, जिम्मेदारियों और स्थिति का संविधान में कहीं भी, संसद के अधिनियम में या सरकार के कार्य नियमों में कोई जिक्र नहीं मिलता है.

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'सैन्य अधिकारियों से ज्यादा वेतन पाते हैं नौकरशाह'

वह लिखते हैं कि एक के बाद एक वेतन आयोगों ने अन्य सेवाओं की तुलना में सेना के वेतन को लगातार कम किया है. पूर्व नौसेना प्रमुख के अनुसार, चूंकि वेतन सरकार के पदानुक्रम में वरिष्ठता तय करने का आधार बनता है, इसलिए सैन्य अधिकारियों को बार-बार उन नागरिक और पुलिसकर्मियों द्वारा पीछे छोड़ दिया जाता है, जो पहले रैंक/वरीयता में उनके बराबर या कनिष्ठ थे. इससे सैन्य अधिकारियों की सार्वजनिक छवि/प्रतिष्ठा पर असर पड़ा.

पूर्व नौसेना प्रमुख के अनुसार, पिछले दशक में नेहरूवादी विरासत के आखिरी निशान भी मिट गए हैं. वह 2016 और 2019 में पाकिस्तानी क्षेत्र में सीमा पार से जवाबी हमले, 2020 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का गठन और सैन्य मामलों के विभाग के गठन को महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में गिनते हैं. प्रकाश ने उम्मीद जताई कि शायद ये दो कदम सेना की स्थिति/प्रतिष्ठा में सुधार लाएंगे, लेकिन अब तक यह उम्मीद पूरी नहीं हुई है.

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