मुस्लिम अल्लाह को जान से प्यारा मानते हैं... सलमान रुश्दी की किताब पर क्यों मचा कोहराम?
Controversy on Salman Rushdie: अपनी किताबों को लेकर विवादों में रहने वाले लेखक सलमान रुश्दी की किताब `द सैटेनिक वर्सेज` को लेकर एक बार फिर विवाद गहरा गया है. दिल्ली में एक जगह पर यह किताब बिकने की वजह से मुस्लिम संगठन इसको लेकर विरोध दर्ज करा रहे हैं.
Controversy on Salman Rushdie: लेखक सलमान रुश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेज' को लेकर एक बार फिर विवाद पैदा हो गया है. मुस्लिम संगठनों ने उनकी किताब को लेकर सख्त निंदा जाहिर की करते हुए पाबंदी जारी रखने की मांग की है. ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार सलमान रुश्दी की विवादास्पद पुस्तक 'द सैटेनिक वर्सेज' राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रतिबंधित किये जाने के करीब 36 साल बाद खामोशी से भारत वापस आ गयी है. पिछले कुछ दिनों से दिल्ली मौजूद ‘बाहरीसन्स बुकसेलर्स’ में इस किताब का 'सीमित स्टॉक' बिक रहा है. इस किताब को लेकर दुनियाभर के मुसलमानों ने विरोध दर्ज कराया और मुस्लिम संगठनों ने इसे ईशनिंदा वाला माना था.
किताब बेचने वाले ने क्या कहा?
किताब की कीमत 1,999 रुपये है और यह सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में 'बाहरीसन्स बुकसेलर्स' स्टोर पर मौजूद है. किताब बेचने वाले ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा,'सलमान रुश्दी की ‘द सैटेनिक वर्सेज’ अब बाहरीसन्स बुकसेलर्स पर मौजूद है. इस अभूतपूर्व और विचारोत्तेजक उपन्यास ने अपनी कल्पनाशील कहानी और ‘बोल्ड’ थीम के साथ दशकों से पाठकों को आकर्षित किया है. यह अपने विमोचन के बाद से ही वैश्विक विवाद के केंद्र में रही है, जिसने अभिव्यक्ति की आजादी, आस्था और कला पर बहस छेड़ दी है.'
अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब ठेस पहुंचाना नहीं
देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद की उत्तर प्रदेश इकाई के कानूनी सलाहकार मौलाना काब रशीदी ने रुश्दी की किताब की भारत में फिर से बिक्री शुरू होने पर चिंता जताते हुए कहा,'अगर अभिव्यक्ति की आजादी किसी की भावना को ठेस पहुंचाती है तो वह कानूनन अपराध है. द सैटेनिक वर्सेज ईश निंदा से भरी किताब है. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसी विवादित किताब की बिक्री को किसी भी तौर पर कबूल नहीं किया जा सकता. यह संविधान की आत्मा के खिलाफ है.'
जान से प्यारे हैं अल्लाह-रसूल
रशीदी ने कहा,'मुस्लिम अल्लाह और रसूल को अपनी जान से ज्यादा प्यारा मानते हैं. ऐसे में सैटेनिक वर्सेज को वह कतई बरदाश्त नहीं करेंगे. सरकार से अपील है कि वह संविधान के मूल्यों और आत्मा की हिफाजत करे और इस किताब पर फिर से पाबंदी लगाये क्योंकि यह देश के एक बड़े तबके की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है. सरकार ने संविधान की शपथ ली है लिहाजा इस किताब पर पाबंदी लगाना उसका फर्ज भी है.'
'मुल्क का माहौल खराब होगा'
आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने भी इस विवादास्पद किताब की भारत में दोबारा बिक्री शुरू होने की निंदा करते हुए कहा,'36 साल बाद सलमान रुश्दी की किताब सैटेनिक वर्सेज पर हिंदुस्तान में लगी पाबंदी हटने की बात हो रही है. मैं शिया पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से भारत सरकार से अपील करता हूं कि इस विवादास्पद किताब पर पूरी तरह पाबंदी लगी रहनी चाहिये.' उन्होंने कहा,'क्योंकि इसमें मुस्लिम नजरियात (दृष्टिकोण) का मजाक उड़ाया गया है. भावनाओं से खिलवाड़ किया गया है. मुहम्मद साहब और उनके सहयोगियों का भी अपमान किया गया है लिहाजा इस किताब पर पूरी तरीके से पाबंदी लगनी चाहिए. अगर यह किताब बाजार में आती है तो एक बार फिर से मुल्क का माहौल खराब होने का खतरा है, लिहाजा मैं प्रधानमंत्री से अपील करूंगा कि सलमान रुश्दी की इस किताब पर भारत में पूरी तरह से प्रतिबंध लगायें.'
'जबरदस्त विरोध करेंगे मुस्लिम'
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी ने एक बयान में कहा,'सलमान रुश्दी की किताब द सैटेनिक वर्सेज पर लगाई गई पाबंदी की मुद्दत खत्म हो गई है. अब कुछ प्रकाशक भारत में इसे दोबारा छापने की योजना बना रहे हैं. साल 1988 में राजीव गांधी की हुकूमत ने इस किताब पर फौरी तौर पर पाबंदी लगा दी थी, मगर अब वो पाबंदी खत्म होने के बाद भारत में किताब के प्रचार-प्रसार के लिए तैयारियां चल रही है.' रजवी ने केंद्र सरकार से मांग की है वह इस किताब पर दोबारा पाबंदी लगाए. अगर किताब बाजार में आई मुस्लिम समाज जबरदस्त विरोध करेगा.
1988 में लगी थी पाबंदी
'द सैटेनिक वर्सेज' इस वक्त दिल्ली-एनसीआर में ‘बाहरीसन्स बुकसेलर्स’ स्टोर पर उपलब्ध है. वर्ष 1988 में इस किताब पर पाबंदी लगा दी गयी थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर में इसपर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के ज़रिए लगाई गई पाबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर कार्यवाही बंद कर दी थी और कहा था कि चूंकि अधिकारी प्रासंगिक अधिसूचना पेश करने में नाकाम रहे हैं, इसलिए यह मान लिया जाना चाहिए कि वह मौजूद ही नहीं है. यह आदेश तब आया जब सरकारी अधिकारी पांच अक्टूबर 1988 की अधिसूचना प्रस्तुत करने में नाकाम रहे, जिसमें किताब पर पाबंदी लगाई थी.
कत्ल करने का फतवा जारी हुआ
किताब छपने के कुछ समय बाद ही विवादों में आ गई थी. जिसकी वजह से ईरानी नेता रूहोल्लाह खोमैनी ने एक फतवा जारी कर मुसलमानों से रुश्दी और उसके पब्लिशर्स की हत्या करने को कहा था. रुश्दी ने लगभग 10 साल ब्रिटेन और अमेरिका में छिपकर बिताए. जुलाई 1991 में उपन्यासकार के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की उनके कार्यालय में हत्या कर दी गयी. लेबनानी-अमेरिकी हादी मतर ने 12 अगस्त 2022 को एक व्याख्यान के दौरान मंच पर रुश्दी पर चाकू से हमला कर दिया, जिससे उनकी एक आंख की रोशनी चली गई.