Salman Rushdie Book Controversy: सलमान रुश्दी की चर्चित किताब सैटेनिक वर्सेज एक बार फिर भारतीय बाजार में उपलब्ध हो गई है. यह किताब 36 साल पहले, 1988 में पहली बार प्रकाशित हुई थी और तभी से विवादों का केंद्र रही है. इस उपन्यास पर ईशनिंदा के आरोप लगे थे और इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए.


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1989 में इस किताब के चलते सलमान रुश्दी के खिलाफ फतवा जारी हुआ, और उनके जीवन पर कई बार हमले भी हुए. अब जब यह किताब फिर से बाजार में आई है, तो एक बार फिर से विवाद खड़ा हो गया है.


पुरस्कार और प्रतिबंध की कहानी


सैटेनिक वर्सेज ने अपने समय में कई पुरस्कार भी जीते. इसे 1988 में बुकर प्राइज के लिए नामांकित किया गया था और उसी साल व्हाइटब्रेड अवॉर्ड भी मिला. लेकिन इन उपलब्धियों के बावजूद, किताब पर विवाद गहराता गया.


1989 में इस किताब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की खबरें सामने आईं. हालांकि, नवंबर 2024 में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सैटेनिक वर्सेज पर प्रतिबंध लगाने का कोई सरकारी दस्तावेज मौजूद नहीं है. यह खुलासा इस बात का संकेत था कि विवाद की जड़ें ज्यादा गहरी हैं और यह महज एक किताब से जुड़ा मुद्दा नहीं है.


धर्मगुरुओं का विरोध और धमकियां


किताब के दोबारा बाजार में आने के साथ ही मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि वे भारत में सैटेनिक वर्सेज को बिकने नहीं देंगे. कुछ मौलानाओं ने इसे ईशनिंदा करार देते हुए धमकी भरे बयान भी दिए हैं.


धर्मगुरुओं का आरोप है कि इस किताब की सामग्री धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती है. इसके चलते वे इसे भारत में बैन कराने की मांग कर रहे हैं.


पुस्तक प्रेमियों का अलग मत


जहां एक तरफ धर्मगुरु किताब का विरोध कर रहे हैं, वहीं पुस्तक प्रेमियों का रुख बिल्कुल अलग है. उनका मानना है कि हर किसी को अपनी पसंद की किताब पढ़ने का अधिकार है. उनका कहना है कि सैटेनिक वर्सेज को पढ़कर ही इसके बारे में सही राय बनाई जा सकती है.


पुस्तक प्रेमी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है और किसी किताब को केवल विरोध के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए.