राजा रहबर जमाल, डोडा: कौन कहता है कि सपने पूरे नहीं होते, सिर्फ इरादे मजबूत होने चाहिए, फिर रास्ते खुद निकलते हैं. ऐसा ही एक सपना था जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के भद्रवाह के दूरदराज गांव की रहने वाली संगीता भगत का, जो अपने क्षेत्र के लोगों के लिए कुछ करना चाहती थीं. लेकिन सिस्टम का हिस्सा ना होने और प्राइवेट सेक्टर में नौकरी के चलते वो कुछ नहीं कर पा रही थीं.


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अपने सपनों को पूरा करने और लोगों की मदद करने के लिए संगीता भगत ने बेंगलुरू की मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर डीडीसी चुनाव में हिस्सा लिया और जीत दर्ज करके अपना राजनीतिक सफर शुरू किया.


लोगों की सेवा करना था संगीता का सपना


बता दें कि संगीता भगत को बचपन से ही लोगों की सेवा करने की इच्छा थी. इसी के चलते उन्होंने बेंगलुरू की एक मल्टीनेशनल कंपनी की सीनियर मैनेजर की नौकरी छोड़कर राजनीतिक करियर चुना. संगीता भगत 7 साल बाद अपने गांव लौटीं और चुनाव जीतकर अपना सपना पूरा किया.


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छोटे से गांव से मल्टीनेशनल कंपनी तक का सफर


संगीता का गांव दीग्गी जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के भद्रवाह से 12 किलोमीटर दूर स्थित है. उन्होंने 12वीं क्लास तक जम्मू में पढ़ाई की, उसके बाद ग्रेजुएशन और एमसीए की पढ़ाई पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी (पीटीयू) से पूरी की. इसके बाद साल 2012 में वो नौकरी के चलते बेंगलुरू शिफ्ट हो गई थीं.


जान लें कि संगीता अपने माता-पिता की पहली संतान हैं, इसके अलावा संगीता के 3 भाई और 2 बहनें हैं. पिता रिटायर्ड बैंकर हैं और मां एनएचपीसी में नौकरी करती हैं. इन चुनावों में संगीता ने जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले की भाला सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. अपनी कामयाबी का श्रेय संगीता अपने परिवार, वोटरों और बीजेपी हाई कमान को देती हैं.


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अपनी प्राथमिकताओं को साझा करते हुए संगीता ने कहा कि सरकारी स्कूलों का आधुनिकीकरण करना, ग्रामीण बच्चों को अच्छे अवसर देना, बेहतर सड़कें, पानी, बिजली, लोगों को विभिन्न योजनाओं के लिए जागरूक करना और उन्हें लाभ दिलाना है.


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