नई दिल्ली: केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट को बताएगी कि अनुसूचित जाति और अनूसूचित जनजाति (एससी- एसटी) के कथित उत्पीड़न के मामलों में फौरन मामला दर्ज करने और गिरफ्तारी रोकने से जुड़े न्यायालय के आदेश से उनके संरक्षण के उद्देश्य से बनाया गया कानून कमजोर होगा. सरकारी सूत्रों ने कहा कि इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाने वाली अपनी पुनर्विचार याचिका में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के यह कहने की उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति( अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के प्रावधान कमजोर होंगे.सूत्रों के अनुसार, मंत्रालय यह भी कह सकता है कि नवीनतम आदेश से कानून का डर कम होगा और इसके फलस्वरूप उल्लंघन के और मामले सामने आ सकते हैं. 


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केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में दायर करेगी पुनर्विचार याचिका 
इससे पहले केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने 30 मार्च (शुक्रवार) को कहा था कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक कानून पर आए सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के संदर्भ में सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है, ऐसे में आंदोलन कर रहे विभिन्न संगठन अपने आंदोलन वापस लें.


गहलोत ने कहा था, ‘‘ भारत सरकार अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के कल्याण के लिए संकल्पित है. सुप्रीम कोर्ट  ने एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून को लकर जो फैसला दिया है उसके संबंध में केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया है.’’  उन्होंने कहा था, ‘‘इस मुद्दे को आंदोलन करने वाले सभी संगठनों और लोगों से मेरा अनुरोध है कि वे केंद्र सरकार इस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में वे अपने आंदोलन वापस लें.’’ 


लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान और केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत के नेतृत्व में राजग के एससी और एसटी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी.


(इनपुट - भाषा)