नई दिल्‍ली: नेहरू घराने से जिस भी नेता की करीबी रही वह अच्‍छे पदों पर रहे. राजनीति में उन्‍होंने ऊंचा मुकाम पाया. यह भी कह सकते हैं कि एक समय में मंत्री, मुख्‍यमंत्री बनने के लिए इस परिवार का करीबी होना एक लाइसेंस की तरह काम करता था. लेकिन उत्‍तर प्रदेश में एक नेता ऐसे भी हुए हैं, जो जवाहरलाल नेहरू के दोस्‍त होने के बाद भी सांसद का चुनाव हार गए थे, लेकिन उन्‍होंने मुस्लिम होने का फायदा नहीं उठाया था. बात हो रही है गाजीपुर के शौकतुल्लाह शाह अंसारी की. जिनकी गिनती राष्‍ट्रीय स्‍तर के नेताओं में होती थी, वे नेहरू के बेहद करीबी भी थे. 


खुद नेहरू ने की थीं अंसारी के लिए सभाएं 


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गाजीपुर के एक बेहद संपन्‍न परिवार में जन्‍मे शौकतुल्‍लाह शाह अंसारी को कांग्रेस ने 1957 में यूपी की रसड़ा सीट से मैदान में उतारा था. अंसारी ने इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए जवाहरलाल नेहरू के कहने पर हामी भरी थी. इससे पहले वे हैदराबाद की बीदर सीट से सांसद रह चुके थे. रसड़ा में उनके खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सरजू पांडेय मैदान में थे. अंसारी को जिताने के लिए खुद नेहरू ने भी उनके लिए सभाएं की थीं. 


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मस्जिद में वोट मांगने से कर दिया था इनकार 


प्रचार के दौरान एक दिन जब अंसारी शुक्रवार के दिन मस्जिद के पास से गुजर रहे थे तो उनसे कहा गया कि वे मस्जिद में नमाज अता कर लें. साथ ही नमाज के बाद लोगों से वोट देने की अपील कर लें. इस पर अंसारी ने कहा कि जुम्‍मे का दिन है इसलिए नमाज अता करने के लिए तो मस्जिद में जरूर जाऊंगा लेकिन वोट नहीं मांगूंगा. वे सेक्‍यूलर नेता थे और मस्जिद जाकर वोट मांगना उन्‍हें गंवारा नहीं था. खैर, इस सीट पर जमीनी पकड़ न होने के कारण अंसारी को हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन उन्‍होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. 


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केंद्र में उन्‍हें मंत्री बनाना चाहते थे नेहरू


यहां तक कहा जाता है कि नेहरू इन चुनावों के बाद अंसारी को केंद्र में मंत्री बनाना चाहते थे. इसलिए उन्‍होंने उन्‍हें चुनाव लड़ने के लिए कहा था. हालांकि लोकसभा चुनाव में हार के बाद नेहरू ने उन्‍हें ओडिशा का गवर्नर नियुक्‍त करा दिया था. 


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