Shiv Sena का मोदी सरकार पर वार- `सोवियत संघ की तरह टूट जाएगा देश`
शिवसेना (Shiv Sena) ने बीजेपी (BJP) की अगुवाई वाली केंद्र सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि केंद्र और राज्यों के बीच संबंध बिगड़ रहे हैं.
मुंबई: शिवसेना (Shiv Sena) ने बीजेपी (BJP) की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के पर तीखा हमला करते हुए कहा है कि केंद्र और राज्यों के बीच संबंध बिगड़ रहे हैं. साथ ही कहा है कि हमारे देश के राज्यों को सोवियत संघ की तरह टूटने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. शिवसेना के मुखपत्र सामना (Saamna) में प्रकाशित हुए आर्टिकल में कहा गया है, 'यदि केंद्र सरकार को यह एहसास नहीं है कि वे राजनीतिक लाभ के लिए लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, तो हमारे देश में भी राज्यों को सोवियत संघ की तरह टूटने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. साल 2020 की ओर देखें तो यह साल केन्द्र सरकार की क्षमता और साख पर सवालिया निशान लगा रहा है.'
कैलाश विजयवर्गीय के बयान पर पीएम को घेरा
मराठी न्यूज पेपर में आगे कहा गया है, 'किसान दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे हैं, लेकिन सत्तारूढ़ सरकार को आंदोलन की परवाह नहीं है. इस सरकार की विफलता का कारण बिखरा हुआ और कमजोर विपक्ष है. लोकतंत्र का पतन शुरू हो गया है और इसके लिए बीजेपी या मोदी-शाह जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि विपक्षी दल सबसे अधिक जिम्मेदार हैं. मौजूदा स्थिति में सरकार को दोष देने के बजाय, विपक्ष को आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है.'
सामना में लिखा है कि बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने यह कहकर सनसनीखेज खुलासा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विशेष प्रयास किये. इसमें कहा गया, 'क्या होता है जब प्रधानमंत्री राज्य सरकारों को अस्थिर करने में विशेष रुचि लेने लगते हैं? प्रधानमंत्री पूरे देश के होते हैं. जबकि जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें नहीं हैं, वे भी राष्ट्रीय हित की बात करते हैं.'
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मुखपत्र के जरिए पार्टी ने आरोप लगाया है, 'मध्य प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बनाई है. बिहार में युवा राजद नेता तेजस्वी यादव ने बीजेपी को टक्कर दी. कश्मीर घाटी में अस्थिरता जारी है. चीनी सैनिकों ने भारत की सीमाओं पर प्रवेश कर लिया लेकिन देश उन्हें वापस नहीं धकेल सका. इसकी बजाय इस मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए राष्ट्रवाद का इस्तेमाल किया गया. पंजाब के किसानों पर जोर-जबरदस्ती का इस्तेमाल शुरू हो गया है.'
'घुसपैठ से ध्यान हटाने को राष्ट्रवाद का सहारा'
सामना में छपे लेख में आरोप लगाया गया है कि जब केंद्र चीनी सैनिकों को सीमा से पीछे नहीं हटा सका तो उसने इस संकट से ध्यान हटाने के लिए राष्ट्रवाद का एक नया चाबुक चलाया. इसके लिए चीनी सामान के बहिष्कार को बढ़ावा दिया गया.' इतना ही नहीं आर्टिकल में COVID-19 के प्रकोप के बाद आर्थिक संकट से निपटने के लिए केंद्र द्वारा दिए गए राहत पैकेज को लेकर भी बात की गई. इसमें कहा गया, 'पूरी दुनिया मुश्किल में थी लेकिन अमेरिका ने आर्थिक संकट से जूझ रहे अपने नागरिकों को एक अच्छा पैकेज दिया. प्रत्येक अमेरिकी नागरिक के बैंक खाते में हर महीने 65,000 रुपये मिले. ब्राजील और यूरोप में भी ऐसा ही हुआ था, लेकिन साल खत्म होने तक भी भारतीय नागरिकों के हाथ खाली हैं.'