Sikkim Flash Flood: कुदरत के आगे किसी की नहीं चलती. कुदरत जब अपना कहर दिखाती है तो इंसान बेबस और असहाय हो जाता है. वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता. सिक्किम में बादल फटने के बाद आई तबाही भी इसका ही एक ट्रेलर है. सिक्किम में बीती रात ल्होनक झील के ऊपर अचानक बादल फटने से तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई. पानी इतनी तेज़ी से आया कि कई इलाकों में बाढ़ का पानी घुस गया. जिस वक्त ये तबाही आई उस वक्त ज्यादातर लोग नींद में थे. इसलिए लोगों को संभलने तक का मौका नहीं मिला. देखते ही देखते कई पुल बह गए, सड़कें बह गईं. बादल फटने से तीस्ता नदी में 15 से 20 फीट तक पानी बढ़ गया. बारदांग इलाके में बाढ़ के पानी में सेना के जवान और गाड़ियां भी बह गई.


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बताया जा रहा है कि रात करीब डेढ़ बजे ल्होनक झील के ऊपर बादल फटा था. इसके बाद लाचेन घाटी में तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई. नदी से लगे इलाके में ही सेना का कैंप है, जो बाढ़ की चपेट में आने के बाद बह गया, जिसमें सेना के 23 जवान लापता हैं. 7 लोगों की अब तक मौत की खबर आई है. ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने से चुंगथांग बांध से पानी छोड़ना पड़ा. जिसके बाद निचले इलाके डूबने लगे और तबाही फैलती गई. यहां सिंगताम के पास बारदांग में खड़े सेना के वाहन भी डूब गए. 


झील से जब पानी नीचे आया, तब वो अपने साथ ढेर सारा मलबा और पत्थर भी लेकर आया. हरे रंग में दिखने वाली तीस्ता नदी पीले और मटमैले रंग में बहने लगी. ये तस्वीरें इसका जीता जागता सबूत है. इस तबाही का एक बड़ा कारण ल्होनक झील भी है. वो कैसे अब मैं आपको सरल शब्दों में समझाता हूं.


-साउथ ल्होनक झील सिक्किम के हिमालय क्षेत्र के उन 14 Glacier Lakes में से एक है, जिनके फटने का खतरा पहले से था. 
-इस झील को Glacier Lake Outburst Flood यानि GLOF के प्रति बेहद संवेदनशील बताया गया था. 
-इस झील का क्षेत्रफल लगातार बढ़ता जा रहा था. क्योंकि global warming की वजह से ल्होनक Glacier पिघलता जा रहा है. 
-पिघलते Glacier से निकला पानी इसी झील में जमा हो रहा था. बीती रात जब इसके ऊपर बादल फटा तो झील की दीवारें टूट गईं और तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई.  


सिक्किम की इन तस्वीरों को देखकर ही अंदाजा हो जाता है कि तबाही कितनी बड़ी है. सिक्किम के कई इलाकों में हालात अभी भी बेहद खराब है, लगातार हो रही बारिश ने मुश्किलों को बढ़ा दिया है. NDRF की कई टीमें rescue operation में जुटी हुई है. ताकि फंसे हुए लोगों को निकाला जा सके, लापता लोगों को ढूंढा जा सके. हमने इस आपदा पर एक Report तैयार की है. जिसे देखकर आपको अंदाजा हो जाएगा कि कुदरत जब कहर ढाती है तो कैसे इंसान बेबस और असहाय हो जाता है. 


सिक्किम के रंगपो में अब सिर्फ अजीब सा सन्नाटा और चारों तरफ पानी है. बाढ़ के पानी का रंगपों पर मानों कब्जा हो गया है. गाड़ियां पानी में डूब गई हैं. बाढ़ का पानी घरों की पहली मंजिल तक कब्जा कर चुका है. सिक्किम से जो वीडियो आ रहे हैं उनमें तबाही साफ-साफ नजर आ रही है. हर तस्वीर में कुदरत का कहर दिख रहा है.  बाढ़ में सेना के 23 जवान भी लापता हैं. जिन्हें ढूंढने के लिए बड़ा अभियान शुरू किया गया है.


सिंगताम में भी नदी उफान पर है. ऐसा लग रहा है पानी हर चीज पर कब्जा कर लेना चाहता है. नदी के साथ बह रही सड़क का पूरा हिस्सा पानी में समा गया है. प्रशासन ने तीस्ता नदी के आसपास के इलाके जलपाईगुड़ी, मेखलीगंज में रह रहे लोगों के लिए चेतावनी जारी की है. लोगों से अपील की जा रही है कि वो नदी के पास ना जाए. सिक्किम में बिगड़े हालात के बीच सीएम प्रेम सिंह तमांग भी बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत-बचाव का जायजा लेने पहुंचे. मुख्यमंत्री ने रेस्क्यू ऑपरेशन को तेज करने के निर्देश दिए हैं. फिलहाल रेस्क्यू ऑपरेशन में NDRF की 3 टीमें लगी हैं.


रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद अबतक 4 हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकाला गया है. हांलाकि अब भी सिक्किम और पश्चिम बंगाल में मौसम खराब है. भारी बारिश की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कत आ रही है. मौसम विभाग के मुताबिक सिक्किम में सबसे ज़्यादा 12cm बारिश दर्ज हई है. बिगड़े हालात के बीच सिलीगुड़ी से सिक्किम जाने वाली सड़कों को बंद कर दिया गया है. सिलीगुड़ी से कलिम्पोंग जाने वाली सड़क भी बंद है. बाढ़ प्रभावित इलाकों में स्कूल-कॉलेज भी बंद कर दिए गए है. कुदरत के कहर ने सिक्किम को कभी ना भूलने वाला दर्द दिया है.


प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए जल, जंगल, वन्य जीव और वनस्पति, इन सभी का संरक्षण जरूरी है. लेकिन आप खुद सोचिए, क्या हम ऐसा कर रहे हैं. पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन की वजह से कही बाढ़ है तो कही सूखा है. आपने भी इसपर ध्यान दिया होगा कि अब प्राकृतिक आपदा ज्यादा आती है. भारत में भी इस वर्ष कुदरत ने कई बार कहर ढाया है. 22 जुलाई को शिमला में बादल फटा था. जिसकी वजह से चंबा-पठानकोट नेशनल हाइवे पर landslide हुआ था. इसी वर्ष 25 जुलाई को शिमला के रामपुर में बादल फटने से कंदार गांव में मकान और मवेशी बह गए थे.


इसी वर्ष 24 अगस्त को मंडी में बादल फटने से 51 लोग फंस गए थे. मंडी में भी भीषण तबाही हुई थी. Climate change का असर अब साफ साफ नजर आने लगा है. हम सब अपनी पृथ्वी को बचाने की बातें तो करते हैं, लेकिन क्या हम सच में इसको लेकर गंभीर हैं.