UP Nikay Chunav Result 2023 BJP wins up urban local body polls: उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में मिली शानदार जीत से यूपी में ट्रिपल इंजन की सरकार बन गई है. लोकसभा और विधानसभा के बाद निकाय चुनावों में भी बीजेपी ने झंडा गाड़ा तो पीएम मोदी ने फौरन सीएम योगी समेत बीजेपी कार्यकर्ताओं को बधाई दी. अब निकाय चुनाव के नतीजों का विश्वेषण हो रहा है, जिसमें समाजवादी पार्टी को लगे तगड़े झटके की असल वजह का खुलासा हुआ है. जानकारों का मानना है कि निकाय चुनाव में सपा को 2022 वाली गलती दोहराना भारी पड़ गया. सपा के इस सियासी ब्लंडर का बीजेपी ने भरपूर फायदा उठाया.


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इस तरह बिगड़ा सपा का खेल


नतीजों से गदगद बीजेपी (BJP) ने राज्य के और तेजी से विकास का वादा किया है. बीजेपी ने एक ओर सपा प्रत्याशियों में सेंधमारी की तो बीएसपी ने मुस्लिम कार्ड खेलकर सपा की साइकिल की हवा निकाल दी. नगर निगम में क्लीन स्वीप तो नगर पालिका की 199 सीटों में से बीजेपी 94, सपा 39, बीएसपी 16, कांग्रेस 4 और 46 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत ली है. वहीं नगर पंचायत की 544 सीटों में 202 पर बीजेपी, 89 सीटों पर सपा, 39 पर बीएसपी, कांग्रेस 16 और 98 सीटों पर निर्दलीयों ने कब्जा जमाया है.


सपा ने दोहराई 2022 विधानसभा चुनाव वाली गलती


सपा को 2022 वाली गलती दोहराना निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा भारी पड़ा. जिसका बीजेपी ने भरपूर फायदा उठाया. दरअसल सपा ने कई ऐसे उम्मीदवारों को खड़ा किया था जो निकाय चुनाव के समीकरण में कहीं से भी फिट नहीं बैठ रहे थे. बरेली में सपा ने जिसे अपना कैंडिडेट बनाया उसने तो नामांकन ही वापस ले लिया तो सपा को मजबूरी में निर्दलीय प्रत्याशी आईएस तोमर को समर्थन देना पड़ा. रायबरेली में भी कुछ ऐसा ही सीन देखने को मिला जहां नगर पालिका सीट पर बगावत का खामियाजा सपा ने उठाया. पश्चिमी यूपी में तो SP-RLD गठबंधन होने के बावजूद दोनों ने अपने प्रत्याशियों को उतार दिया.


हर सीट पर योगी की अलग रणनीति


सपा को पस्त करने के लिए सीएम योगी ने ऐसा चक्रव्यूह रचा जिसे कोई भी पार्टी भेद नहीं पाई. बीजेपी की रणनीति एक-एक सीट के जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए तय हुई. शुरुआत 2017 में जीती गई नगर निगम की 14 सीटों से हुई. कहां, कौन भारी पड़ सकता है, उसे देखते हुए उम्मीदवार चुने गए. बीजेपी की एक रणनीति दूसरे दलों के प्रभावशाली और जिताऊ उम्मीदवारों को अपने पाले में लाना था. शाहजहांपुर नया नगर निगम बना था. बीजेपी यहां भी कामयाब रही. क्योंकि बीजेपी ने सपा की घोषित प्रत्याशी और 40 साल से समाजवादी पार्टी के साथ रहे पूर्व सांसद राममूर्ति वर्मा की बहू अर्चना वर्मा को ऐन मौके पर अपने पाले में कर लिया. इसी तरह से नगर पालिका में भी जगह जगह दूसरी पार्टियों के नेताओं को बीजेपी में शामिल करवाकर पार्टी ने जीत का जो टारगेट रखा था उसे हासिल कर लिया.


योगी का फॉर्मूला और जीत का जातीय समीकरण


इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी की लैंड स्लाइड विक्ट्री में सीएम योगी की बड़ी भूमिका रही है. उन्होंने ताबड़तोड़ जनसभाएं कीं. दोनों डिप्टी सीएम समेत उनकी पूरी कैबिनेट और सारे विधायक जगह-जगह जाकर सरकार की उपलब्धियां गिनाते रहे. बीजेपी को शहरी जनाधार वाली पार्टी माना जाता है. इस माइंड सेट से इतर बीजेपी ने ग्रामीण इलाकों में भी पैठ बनाई. 


बीजेपी की इस धमाकेदार जीत में अहम भूमिका सवर्ण मतदाताओं की भी रही. शहरी इलाकों में ब्राह्मण, वैश्य, कायस्थ, पंजाबी मतदाता निर्णायक भूमिका में है, जिसके चलते बीजेपी ने सवर्ण उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का दांव चला वो पूरी तरह कामयाब रहा. मेयर के लिए बीजेपी 5 ब्राह्मण, 4 वैश्य प्रत्याशी उतारकर शहरी सीटों के समीकरण को पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया. दरअसल विपक्षी दल आरोप लगाते हैं कि बीजेपी सवर्णों की राजनीति करती है और सर्वण वोटर ही बीजेपी के कोर वोटर्स हैं, इन आरोपों को काउंटर करते हुए योगी ने प्रदेश की कानून व्यवस्था और माफिया राज के खात्मे के साथ प्रदेश की बहन-बेटियों की सुरक्षा पर फोकस किया. बीजेपी ने महिलाओं के लिए 'सहभोज' का आयोजन किया. जिसमें मुस्लिम और दलित महिलाओं को खास तौर कर बुलाया गया था. बीजेपी के जीत में महिला मतदातओं की अहम भूमिका रही. योगी ने विकास की नींव पर चुनाव प्रचार आगे बढ़ाया. वहीं कई इलाकों में सवर्ण वोटरों के समर्थन ने बीजेपी को एकतरफा जीत दिला दी.