नई दिल्‍ली: जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (Jamia Millia Islamia University) और AMU में हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई मेें फैसले में साफ तौर पर दखल देने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को संबंधित हाईकोर्ट जाने की सलाह दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मामले में जांच के आदेश दे सकते हैं. इस तरह प्रदर्शन में शामिल छात्रों की गिरफ्तारी पर रोक से सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर मना कर दिया. न्‍यायालय ने कहा कि चूंकि मामला कई राज्यों में फैला है, हमारा मानना है कि एक जांच कमिटी गठित करने से नहीं होगा. CJI ने कहा कि CAA के खिलाफ प्रदर्शन में जिन स्टूडेंट्स को चोटें आईं हैं, उन्हें हाईकोर्ट जाना चाहिए. हाईकोर्ट उनकी शिकायतों पर सुनवाई कर सकता है.


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चीफ़ जस्टिस ने की कड़ी टिप्‍पणी...


1. हम इस मामले मे पक्षपाती नहीं हैं.
2. लेकिन जब कोई कानून तोड़ता है तो पुलिस क्या करेगी?
3. कोई पत्थर मार रहा है, बस जला रहा है. हम पुलिस को FIR दर्ज करने से कैसे रोक सकते हैं?
4. यदि कोई पुलिस अधिकारी देखता है कि कुछ पत्थर आदि फेंके जा रहे हैं, तो एफआईआर दर्ज नहीं की जानी चाहिए?
5. बस में किसने आग लगाई? कितनी बसें जलाई गई?
6. हम यहां सरकार के रुख में नहीं जा रहे हैं. हम अभी CAA 2019 पर निर्णय लेने के बिंदु पर नहीं हैं.
7. जब सीनियर एडवोकेट कोलिन गोंजाल्विस ने जब जामिया के वीसी द्वारा जारी बयान का जिक्र किया तो CJI ने कहा कि "हम समाचार रिपोर्टों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचने वाले हैं."
8. सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह ने जब तेलंगाना एनकाउंटर में SC द्वारा जांच आयोग का गठित करने की बात कही तो सीजेआई ने कहा कि तेलंगाना केस में केवल एक समिति का गठन किया जाना था. यहां यह मामला नहीं है, क्योंकि यहां कई घटनाएं हुई हैं.
9. याचिकाकर्ता के एक वकील से सीजेआई ने कहा- यह कोई चिल्लाने वाला मैच नहीं है. यह आपके चिल्लाने का स्थान नहीं है. सिर्फ इसलिए कि यहां एक बड़ी भीड़ और मीडिया मौजूद है.
10. अवैध गतिविधियां नहीं हो सकती हैं. पुलिस के पास ऐसी सभी आपराधिक गतिविधियों को समाप्त करने का अधिकार है.